शोध साहित्य

साहित्य पुनरावलोकन

साहित्य पुनरावलोकन क्या है? इसके विभिन्न तत्वों का विस्तार से वर्णन करें।

साहित्य पुनरावलोकन में पुनरावलोकन शब्द दो शब्द से मिल कर बना है – पुनः और अवलोकन। अवलोकन का अर्थ है जांच-पड़ताल करना। साहित्य पुनरावलोकन के अंतर्गत हम अपने शोध विषय से संबंधित पहले से मौजूद किसी साहित्य या शोध पत्रिका का अध्ययन करते है। इसके अंतर्गत हम इस बात का अध्ययन करते है कि हमारे द्वारा चुने गए क्षेत्र में कितना काम हो चुका है एवं किस प्रकार का काम हुआ है, अभी शोध का नया ट्रेड क्या है आदि का। किसी भी प्रकार के शोध में साहित्य पुनरावलोकन करने के पीछे जो प्रमुख कारण है उसका वर्णन हम निम्न प्रकार से कर सकते है :-

ज्ञान की खाई (Knowledge gap) ढूंढने के लिए:- वैसे तो साहित्य पुनरावलोकन करने के कई कारण है लेकिन उन कारणों में सबसे पहला और प्रमुख नॉलेज गैप ढूंढना है। नॉलेज गैप ढूंढने का अर्थ है उस क्षेत्र में कौन-कौन सा काम हो चुका है किस क्षेत्र में काम होना अभी बाँकी है। अगर हम सही ढंग से साहित्य पुनरावलोकन किए बिना अपना शोध शुरू कर देते है तो हो सकता है हम जो काम आज करें कोई और उस काम को पहले ही कर चुका हो। इस पर उस काम की पुनरावृति हो जाएगी इसलिए शोध कार्य में शोध समस्या ढूंढने के लिए साहित्य पुनरावलोकन करना अत्यंत आवश्यक है।Define Concept :- साहित्य पुनरावलोकन के द्वारा ही हम अपने कान्सैप्ट को सही तरीके से समझ सकते है और अपना एक नया कान्सैप्ट दे सकते है। साहित्य पुनरावलोकन के द्वारा हम यह जान सकते है हमने जो शोध समस्या चुना है उस समस्या पर कहीं कोई काम हुआ है या नहीं। अगर उसपर कोई काम हुआ है तो किस विधि से हुआ है। इस बात का अध्ययन कर हम यह चुन सकते है कि मुझे अपने शोध के लिए कौन सा विधि चुनना आसान होगा।

 

साहित्य पुरावलोकन के दौरान हम इस बात का अध्ययन करते है कि हम जिस क्षेत्र में शोध करना चाह रहे है उस क्षेत्र में इससे पहले क्या-क्या शोध हो चुका है और हमारी शोध उस क्षेत्र में कैसे उपयोगी साबित होगा अर्थात हमारी शोध ज्ञान की खाई को कैसे भरेगा। साहित्य पुरावलोकन के मदद से हम अपनी शोध सीमा निर्धारित करते है।

जब हम अपने शोध के लिए साहित्य पुनरावलोकन कर रहे होते है तो हमारे पास जो सबसे बड़ा प्रश्न उठता है वह यह है कि हम कितने समय पीछे तक के साहित्य का पुरावलोकन करेंगे। इसके लिए जो एक मानक पैमाना है वह यह है कि जब हम मास्टर के लिए साहित्य पुरावलोकन कर रहे होते है तो हम पिछले 10 सालों के साहित्य का पुरावलोकन करते है एवं पीएचडी के लिए हमे इससे पहले के साहित्य का भी पुरावलोकन करना चाहिए।

संबंधित साहित्य के सर्वेक्षण से तात्पर्य उस अध्ययन से है जो शोध समस्या के चयन के पहले अथवा बाद में उस समस्या पर पूर्व में किए गए शोध कार्यों, विचारों, सिद्धांतों, कार्यविधियों, तकनीक, शोध के दौरान होने वाली समस्याओं आदि के बारे में जानने के लिए किया जाता है।

संबंधित साहित्य का सर्वेक्षण मुख्यत: दो प्रकार से किया जाता है :-

प्रारंभिक साहित्य सर्वेक्षण(Preliminary survey of literature)

प्रारंभिक साहित्य सर्वेक्षण शोध कार्य प्रारंभ करने के पहले शोध समस्या के चयन तथा उसे परिभाषित करने के लिए किया जाता है। इस साहित्य सर्वेक्षण का एक प्रमुख उद्देश्य यह पता करना होता है कि आगे शोध में कौन-कौन सहायक संसाधन होंगे।

व्यापक साहित्य सर्वेक्षण(Broad survey of literature) – व्यापक साहित्य सर्वेक्षण शोध प्रक्रिया का एक चरण होता है। इसमें संबंधित साहित्य का व्यापक अध्ययन किया जाता है। संबंधित साहित्य का व्यापक सर्वेक्षण शोध का प्रारूप के निर्माण तथा डाटा/तथ्य संकलन के कार्य के पहले किया जाता है।

साहित्य पुनरावलोकन के तत्त्व 

शीर्षक – शीर्षक का मुख्य काम होता है पाठक शीर्षक देख कर यह समझ जाए कि इसे पढ़ने की जरूरत है या नहीं। शीर्षक में मुख्यतः उपयोगी तत्व का पता चल जाए। शिरसहक से यह पता चले कि यह किसी चीज का पुनरावलोकन है। शीर्षक जितना संभव हो सके उतना छोटा हो लगभग आठ से बारह शब्द । शीर्षक में प्रयुक्त शब्द संदिग्ध न हो।लेखकों की सूची – लेखकों की सूची के अंतर्गत हम लेखकों का नाम देते है। अगर लेखकों की संख्या एक से ज्यादा हो तो लेखकों का नाम हम सूची के रूप में लिखते है।सारांश – इसके अंतर्गत मूल्यांकन का सारांश लिखते है। सारांश लिखने के लिए हम वर्तमान काल का प्रयोग करते है। विधि एवं सामाग्री कों भूतकाल में लिखते है और निष्कर्ष को वरमान काल में लिखते है। सारांश की लंबाई हम 200 से 250 शब्द तक रखते है।विषय सूची – लिखे गए पुरनावलोकन के लिए विषय सूची बनाई जाती है जिसमें यह दर्शाया जाता है कि इस पुरनावलोकन में किस-किस विषय पर चर्चा किया गया है।परिचय – साहित्य पुरनावलोकन के परिचय वाले भाग में संदर्भ के बारे में चर्चा, किस चीज के बारे में पुरनावलोकन किया जा रहा है इसकी चर्चा होती है। इसमें मुख्यतः तीन तत्व होते है –विषय पृष्ठभूमि– इसके अंतर्गत शोध विषय के ऐतिहासिक और सामान्य बातों की चर्चा की जाती है।समस्याएँ – समस्याएँ के अंतर्गत शोध समस्याएँ के बारे में चर्चा करते है।,जिस समस्या के लिए शोध किया जा रहा है।प्रेरणा/प्रामाणिकता – इसके अंतर्गत इस बात की चर्चा की जाती है कि इस शोध को करने की प्रेरणा कहाँ से मिली।

परिचय वाले भाग की लंबाई बॉडी के लंबाई का 10 से 20 प्रतिशत तक होता है।

बॉडी : सामाग्री और मुख्य बातें- यह पुरनावलोकन का मुख्य भाग होता है। इसके अंतर्गत सामाग्री और मुख्य बातें की चर्चा करते है। यह पूरे टेक्स्ट का 70 से 90 प्रतिशत तक होता है।निष्कर्ष : इसके अंतर्गत परिचय में जो प्रश्न पूछा गया था उसका निष्कर्ष दिया जाता है। जो प्रश्न अनुतरित्त रह गया उसके बारे में भी चर्चा की जाती है। यह पूरे टेक्स्ट का लगभग 5 से 10 प्रतिशत तक होता है।संदर्भ सूची – इसके अंतर्गत किताब एवं पत्रिकाओं की सूची दी जाती है जिसे साहित्य पुरनावलोकन के दौरान पढ़ा गया होता है। इसके लिए APA(American Physiological Association)  फॉर्मेट का इस्तेमाल किया जाता है।

Comments

Popular posts from this blog

शोध प्रारूप का अर्थ, प्रकार एवं महत्व

अभिप्रेरणा अर्थ, महत्व और प्रकार

वित्तीय प्रबंध की प्रकृति, क्षेत्र तथा उद्देश्य