ग्रामीण पत्रकारिता का बदलता स्वरूप

ग्रामीण पत्रकारिता का बदलता स्वरूप

एक समय था जब समाचार सिर्फ शहरों तक सीमित रहते थे। गांव की तरफ कभी-कभार ही समचार पत्र-पत्रिकाओं की नजर जाया करती थी। वो भी अपने पत्र-पत्रिका के प्रसार को बढ़ाने या बरकरार रखने के लिए। टेलीविजन की तो ये हालत थी कि कभी गांव-देहात की खबर आ गई तो गांव का भाग्य समझा जाता था। पंूजीगत लाभ न मिलने के कारण या दर्शकों की कमी होने के कारण समाचार चैनलों ने भी कभी गांवों की ओर रुख नहीं किया। पर जैसे-जैसे विकास हुआ वैसे-वैसे टीवी चैनलों की सोच भी बदली। ये महरबानी बाजारू प्रतियोगिता से हुई या फिर बढ़ती मांग की वजह से इसे कहना मुश्किल होगा। पर जो हो रहा है, वह गांव-देहात के लिए अच्छा ही है।

देश के वैश्वीकरण ने पत्रकारिता को जो उपहार दिया वो शायद कोई भी नहीं दे सकता। क्योंकि तब तक समाचार पत्र-पत्रिकाएं और रेडियो ही लोगों तक समाचार पहुंचाया करते थे। टीवी सेट इतने थे नहीं और जो थे भी वहां बिजली की समस्या और आखिरी में सब ठीक रहे भी तो समाचार सुबह या शाम को ही नसीब होते थे। वैश्वीकरण से हर क्षेत्र में सुधार आया। कम्प्यूटर, बैंकिंग सेवाएं, बिजली पानी, सड़क, परिवहन, सेटेलाइट, उत्पादन कंपनियां और भी बहुत कुछ। ऐसे में पत्रकारिता जगत पीछे कैसे रहता। निजी समाचार चैनलों ने भी दखल दिया। हाल ये हुआ कि 24-24 घंटों का प्रसारण किया जाने लगा। विकास होने के चलते बिजली की उपलब्ध्ता भी बढ़ी और इलैक्ट्राॅनिक क्रांति से उत्पाद सस्ते हो चले। ऐसे में टेलीविजन सस्ते हो चले। जो टेलीविजन आज से 20 साल पहले 20 हजार से अधिक की कीमत का मिलता था आज वह 12 सौ में मिलने लगा। केबल नेटवर्क सैकड़ों चैनल मुहैया कराने लगे। फिर डीटीएच आ गया। समचार चैनलों की बाजार में टिके रहने की और लाभ अर्जित करने की प्रतियोगिता ने गांवों की ओर मोड़ दिया और वहां अवसर तलाश करने को मजबूर कदया दिया। हालात और बदले और तो चैनल क्षेत्रीय भाषाओं या बोलियों में प्रसारित किए जाने लगे। मलयालम, कन्नड़, तमिल, भोजपुरी, हरियाणवी, बंगाली आदि। ग्रामीण क्षेत्र को इसका बहुत लाभ हुआ। जो पढ़े लिखे नहीं थे और क्षेत्रीय भाषा अथवा बोली के अलावा अन्य नहीं जानते थे उन्हें एक दोस्त के रूप में समाचार चैनल मिल गया जो पूरी तरह उन्हीं पर केन्द्रित रहने लगा। ये विकास की बड़ी सीढ़ी साबित हुआ। लोग घर से निकल कर अपनी बात कहने के लिए बाहर बेझिझक आने लगे।

आज यह स्थिति है कि हर कोई गांवों की ओर देख रहा है। टीवी चैनलों के राष्ट्रीय चैनलों के साथ क्षेत्रीय चैनल भी खुल रहे हैं। बिजिनेसमेन गांवों की ओर आकर्षित हो रहे हैं। अखबार ग्रामीण संस्करण निकाल रहे हैं। शहर के शोर से दूर लोग गांवों में जमीन लेकर शांति से रहना पसंद कर रहे हैं। सड़कें गांवों से जुड़ रही हैं। खरीद-फरोख्त में बिचैलिए कम होते जा रहे हैं। आॅनलाइन शाॅपिंग गांवों तक डिलीवरी देने की होड़ में लग गए हैं। औसतन कहें तो गांव बदल रहे हैं। गांव अब गांव नहीं रह गए।

अब बात करते हैं पत्रकारिता की। पत्रकारिता में भी पिछले 20 वर्षों में भारी परिवर्तन देखने को मिला। जहां एक ओर आज से 20 वर्ष पहले पत्रकारिता एवं जनसंचार के दो-चार संस्थान हुआ करते थे, वहां आज के समय लगभग-लगभग हर बड़े शहर में पत्रकारिता संस्थान है जैसे दिल्ली, मद्रास, मुंबई, कोलकाता, लखनऊ, भोपाल आदि। देश के तमाम विश्वविद्यालयों में भी पत्रकारिता के पाठ्यक्रम संचालित किए जा रहे हैं।

पत्रकारिता का अपना जुनून है। जोखिम भरा कॅरियर होने के बावजूद युवा इस क्षेत्र में आकर देश की सेवा करते हैं। देश के बड़े-बड़े भ्रष्टाचार को पत्रकारों ने ही उजागर किया है। हम कह सकते हैं कि पत्रकारिता संस्थान और पत्रकारों की बढ़ती मांग और पूर्ति से पत्रकारिता जगत में तमाम आयाम खुले। जैसे, राजनीतिक पत्रकारिता, खेल, अपराध, सामाजिक, विज्ञान, सांस्कृतिक, ग्रामीण, कारोबार, पर्यावरण, फोटो आदि। इन सभी कॅरियर क्षेत्रों में एक ग्रामीण पत्रकारिता। हालांकि यह कारोबार या राजनीतिक पत्रकारिता जितना आकर्षक न हो लेकिन सम्मान जनक जरूर है। क्योंकि यह ग्रामीणों पर पूरी तरह केन्द्रित होता है। उन्हें मिलने वाली सुविधा, सरकारी योजनाएं, वहां घट रही घटनाएं, अपराध, मिलने वाला राशन, किसी योजना का प्रचार-प्रसार, भ्रष्टाचार, चोरी-डकैती आदि बहुत सार मुद्दों को उठाया जाने लगा।

आज ग्रामीण पत्रकारिता का महत्व ये है कि देश की राजनीति में ग्रामीण मुद्दों पर चुनाव लड़ा जाने लगा है। इसमें शौचालय, जल हैंडपंप, मनरेगा, किसान कर्ज आदि शामिल हैं। यही कारण है कि अब पत्रकारों का रुझान ग्रामीण पत्रकारिता की ओर बढ़ रहा है। यहां सम्मान ज्यादा है। जितना शहर में पत्रकारों को सम्मान की नजरों से देखा जाता है, उससे कहीं ज्यादा ग्रामीण क्षेत्र में पत्रकारों का सम्मान है। ग्रामीण पत्रकारिता का भविष्य अन्य पत्रकारिता के क्षेत्रों से ज्यादा हैं। ग्रामीण विकास के लिए यह अच्छी बात है और इसे यूं ही बढ़ते रहना चाहिए।

ग्रामीण पत्रकारिता: हर गांव एक खबर होता है

डॉ. महर उद्दीन खां |

भारत गांवों का देश है। शिक्षा के प्रसार के साथ अब गांवों में भी अखबारों और अन्य संचार माध्यमों की पहुंच हो गई है। अब गांव के लोग भी समाचारों में रुचि लेने लगे हैं। यही कारण है कि अब अखबारों में गांव की खबरों को महत्व दिया जाने लगा है। अखबारों का प्रयास होता है कि संवाददाता यदि ग्रामीण पृष्‍ठभूमि का हो तो अधिक उपयोगी होगा। हर गांव एक खबर होता है और इस एक खबर के अंदर अनेक खबरें होती हैं। पत्रकार यदि समय समय गांव का दौरा करते रहें और वहां के निवासियों के निरंतर सम्पर्क में रहे तो उन के पास कभी खबरों का टोटा नहीं होगा। गांव के नाम पर कई पत्रकार नाक भौं सिकोड़ने लगते हैं मगर ऐसा ठीक नहीं। माना गांव में पत्रकारों को वह सब नहीं मिलता जो शहरों में मिलता है। अगर आप को गांव जाने का चस्का एक बार लग गया तो फिर आप के लेखन की दिशा ही बदल जाएगी।

सामान्य रुटीन समाचारों के अतिरिक्त गांव में समाजिक सरोकारों से जुड़े ऐसे समाचार होते हैं जो पाठकों को नया अनुभव देते हैं। समय-समय पर गांवों में विभिन्न सरकारी योजनाएं चलती रहती हैं इन याजनाओं से गांवों में आए बदलाव के साथ साथ योजना में भ्रष्‍टाचार के समाचार भी गांव के हित में होते हैं। अगर इन योजनाओं पर पत्रकार पैनी नजर रखेंगे तो योजना का जो लाभ मिल रहा है वह और अधिक मिलने लगेगा क्यों कि जब योजना लागू करने वालों को पता चलेगा कि इस पर पत्रकार की नजर है तो वह गलत काम करने से पहले सोचेगा और गलत काम करने से बचेगा।

शहरी करण के बढ़ते प्रभाव के कारण गांवों में क्‍या बदलाव आ रहा है यह भी जनरुचि का विषय है। इसे हम चाहें तो कई भागों में बांट सकते हैं जैसे खान पान और पहनावे में बदलाव, सामाजिक सम्बंधों में बदलाव, युवाओं में बदलाव और महिलाओं पर शहरीकरण का असर आदि। आज बढ़ते पर्यावरण प्रदूषण पर काफी चिंता जताई जा रही है मगर यह चिंता केवल शहरों तक ही सीमित है। पर्यावरण प्रेमी अभी तक अहा ग्राम जीवन भी क्या है पर ही अटके हैं जबकि आज गांव के नदी नाले, तालाब पोखर और चरागाह सब प्रदूषण की चपेट में हैं। इस समस्या पर पत्रकार ही सरकार और समाज का ध्यान आकृष्‍ट कर सकते हैं बशर्ते कि वह गांव जाना आरंभ कर दें।

गांव में रहने वालों के पास लोक साहित्य का अनूठा खजाना होता हैं लोगों से मिल कर इस बारे में जानकारी ली जाए आरै फिर उस का उपयोग पत्रकारिता में किया जाए तो समाचार अधिक रोचक हो जाएगा। गांवों में प्रचलित मुहावरे और लाकोक्तियां समाचार में सोने पर सुहागा का काम करती हैं। ग्रामीण रिपोर्टिंग से नीरसता का भाव पैदा होता है मगर ऐसा है नहीं यह हमारी सोच है जबकि ग्रामीण रिपोर्टिंग शहरी रिपोर्टिंग से कहीं अधिक सरल होती है तथा अगर मन से काम किया जाए तो पाठक उसे पढना भी पसंद करता है।

गांव के बारे में रिपोर्ट लिखते समय सावधानी यह बरतनी होगी कि समाचार किसी के पक्ष या वरोध में न हो जाए। दरअसल गांवों में गांव प्रधान के चुनाव को ले कर हर गांव में गुटबंदी हो गई है। एक गुट दूसरे को नीचा दिखाने की जुगत में रहता है और इस के लिए वह पत्रकार को मोहरा बना सकता है। सावधानी यह बरतनी है कि अगर प्रधान के बारे में कोई समाचार मिले तो उसे देने से पहले प्रधान का पक्ष भी जान लेना जरुरी है। प्रधान या पंचायत अधिकारी कोई सूचना नहीं दे रहे हैं तो इस के लिए आरटीआई का सहारा लिया जा सकता है।

खेत खलिहान से जुड़ी यानि कृषि पत्रकारिता भी ग्रामीण पत्रकारिता का एक अंग है। भारत अभी भी एक कृषि प्रधान देश है और अब अखबारों में भी कृषि पत्रकारिता पर ध्यान दिया जाने लगा है। पत्रकारिता के माध्यम से हम किसानों को कृषि से जुड़ी महत्वपूर्ण जानकारियां दे सकते हैं । इस के लिए सरकारी साधनों के अतिरिक्त पत्रकार के लिए अध्ययन करना भी महत्वपूर्ण होता है। सरकार की ओर से किसानों को नए बीज, खाद और खर पतवार नाशक की जानकरी समय समय पर दी जाती रहती है मगर वह किसान के पास सही समय पर नहीं पहुंच पाती एसे में पत्रकार ही किसान की मदद कर सकते हैं यही नहीं पत्रकार किसान की इस बारे में भी मदद कर सकते हैं कि किस उर्वरक का अधिक प्रयोग हानि कारक हो सकता है। इस सब को देखते हुए सरकार ने एक किसान चैनल भी आरंभ किया है इस चैनल में कृषि से सम्बंधित जानकारी के लिए भी पत्रकारों की आवश्‍यकता रहती है।

खेती किसानी से सम्बंधित ग्रह नक्षत्रों की चाल मौसम के बारे में भविश्यवाणी और हवाओं के रुख के बारे में घाघ आदि कवियों की अनेक कविताएं और उक्तियां गांवों में प्रचलित हैं मगर अब ये धीरे-धीरे लुप्त हो रही हैं जबकि आज भी मौसम विभाग की भविष्‍यवाणी के मुकाबले ये लोकोक्तियां अधिक सठीक बैठती हैं। कृषि से जुड़े पत्रकार इन सब की जानकारी रखेंगे और इनका उपयोग करेंगे तो किसान और समाज दोनों के हित में होगा। पशु पक्षी भी मौसम की भविष्‍यवाणी अपने क्रिया कलापों से करते हैं जानकार लोग इनके आधार पर किसानों को सलाह भी देते हैं। खेती किसानी से जुड़े पत्रकार अगर समय-समय पर ऐसी जानकारियों पर प्रकाश डालते रहें तो यह भी किसानों के हित में होगा। अंधविश्‍वास या टोटके कह कर इन बातों को नकारा नहीं जा सकता।

आज किसान के लिए बहुराष्‍ट्रीय कंपनियां नए नए बीज ले कर आ रही हैं जो उत्पादन बढाने में महत्व्पूर्ण योगदान तो करते हैं मगर उन के बारे में कई प्रकार की अन्य बातें भी सुनने को मिलती हैं। उदाहरण स्वरुप बीटी कपास और बीटी बैंगन के बारे में कहा जा रहा है कि ये स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हैं। अब इस माहौल मे कृषि से जुड़े पत्रकार का यह दायित्व हो जाता है कि वह अध्ययन कर सही स्थिति किसान और समाज के सामने लाए।

दिल्ली में पत्रकारिता करते समय देखा गया कि हिंदी और अंग्रेजी के बड़े अखबारों में एक पत्रकार ऐसा भी रखने का चलन है जो खेती किसानी के बारे में विशेष योगयता रखता हों समय समय पर इन की रिपोर्ट अखबारों में छपती रहती हैं। इस प्रकार के समाचार न केवल किसान या गांव के लोग पढ़ते हें बल्कि शहरी पाठक और अन्य पत्रकार भी ऐसे समाचारों का अध्ययन कर अपनी जानकारी में इजाफा करते देखे गए हैं। पत्रकारों के लिए खेती किसानी की रिपोर्टिंग में र्प्याप्त अवसर हैं बशर्ते कि इनका लाभ उठाया जाए।

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Comments

  1. यह लेख पढ़ कर एक अलग ही ऊर्जा शरीर में पनप गयी और किसानी पत्रकारिता के बारे मे जानने के लिए उत्सुक कर रही है ।

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