आनंद श्री कृष्णन की आत्मकथा

परिचय:

मेरा नाम आनंद श्रीकृष्णन है । मेरा जन्म 21 दिसंबर 1991 को जमशेदपुर के Tata कंपनी के अस्पताल में हुआ था । मैं अपने घर का सबसे छोटा लड़का हूं । मेरे परिवार में मुझे जोड़कर पांच लोग हैं । मेरी मां का नाम रंजीत सिंह है मेरे पिताजी का नाम बसंत सिंह है मेरी एक बड़ी बहन है उसका नाम सुरभि है मेरा एक बड़ा भाई है उसका नाम कल्याण श्रीकृष्ण है और मैं हम तीनो भाई बहन का जन्म जमशेदपुर के Tata कंपनी के अस्पताल में ही हुआ है मैं मेरे नाना जी उस समय में Tata कंपनी में काम करते थे उनका नाम स्वर्गीय महेश्वर प्रसाद सिंह था यही वजह थी कि हम तीनो भाई बहन का जन्म वहां के ही अस्पताल में हुआ क्योंकि माना जाता है की मायके में ही बच्चा होने पर अच्छी परवरिश होती है कहीं ना कहीं यह सत्य भी है हम सभी लोगों को हमारे नानी घर में शुरुआती 1 से 2 साल रहने का मौका मिला जहां पर नानी घर में बहुत ही अच्छे तरीके से हम लोगों के साथ व्यवहार करने के साथ-साथ हम लोगों का रखरखाव हम लोगों का परवरिश किया गया वैसे तो इतनी सेवा प्राप्त करके हम सब बहुत ही कृतज्ञ हैं इसके लिए तहे दिल से अपने नानी घर के परिवारों को धन्यवाद देता हूं मेरा दादी घर बिहार के मुंगेर जिला के एक छोटे से गांव विषय में है वहां मूल रूप से हमारे तीन पुष्ट रहते आए हैं मेरे दादाजी को चार बेटे और तीन बेटा था जिसमें मेरे पिताजी सबसे बड़े बेटे थे मेरे दादाजी पंडित स्वर्गीय युगल किशोर सिंह जी संगीत के ज्ञाता थे इसलिए वह अपने घर की बहू का नाम रो से ढूंढ रहे थे जिसका नाम रो से शुरू होगा ऐसा सोचते हुए ही उन्होंने हमारी मम्मी का चयन किया था साथ ही हमारी मम्मी के अंदर कई सारे गुण होने की वजह से एक नजर में ही उन्हें पसंद आ गई थी मेरी मम्मी अपने अलग-अलग विधाओं में महारत हासिल करने के साथ-साथ एक शहरी लड़की होने के बावजूद भी गांव की गृहस्थी को संभालने में सक्षम थे उसने हम लोगों के परवरिश के लिए बहुत ही मेहनत की है मेरे पिताजी श्री बसंत सिंह बहुत ही कर्मठ व्यक्ति है उन्होंने शुरू में व्यापार करने का निर्णय लिया था परंतु समाज में फैली हुई विकृतियों को देखते हुए उनकी भावना पिघली और उन्होंने सामाजिक सेवा के लिए अपना जीवन दान करने का प्रण कर लिया मेरी मां भी इससे सहमत थी उन्होंने मेरे पिताजी को बिना रोकेट ओके उनके इस निर्णय पर साथ देने का वचन दे दिया और आज भी उनके साथ उनके वचन का निर्वहन कर रही है शुरुआती दिनों में मेरी मां नानी घर में ही मुझे 1 साल से 2 साल तक रखें जिसमें बीच-बीच में कभी कबार मेरे गांव विषय मुझे लाया गया 2 साल के बाद मुझे मेरे पापा ने मेरी मम्मी के साथ गांव ले आया उसके बाद मेरा भरण-पोषण गांव में ही होने लगा मैं बचपन से ही बहुत ही शरारती था मैं अपनी दादी और अपने दादाजी के गोद में ही हमेशा रहा करता था मेरी दादी मेरे लिए दूध से बने हुए पेड़ रखा करती थी जिसे रोज सुबह मुझे खाने को देती थी दादाजी के कई सारे शिष्य उस दौरान हमारे घर में रह कर के ही संगीत का शिक्षा दीक्षा लिया करते थे इस वजह से हमारे घर का माहौल हमेशा संगीत उसे भरा होता था सभी लोग मंत्रमुग्ध होकर के अपने कामों में लगे हुए रहते थे मैं बचपन में जितने भी शिष्य बाबा से सीखने आते थे उन्हीं लोगों के गोद में ज्यादा समय बिताया करता था उसका कारण यह था कि मुझे बहुत ज्यादा भूख लगा करती थी और मुझे घड़ी-घड़ी खाने की आदत थी तो दादा जी के जितने भी शिष्य थे वह कुछ न कुछ अपने लिए छुपाकर कहीं-न-कहीं रखा करते थे जो मुझे वह मेरे भूख लगने पर निकाल कर खाने के लिए दिया करते थे वैसे ज्यादातर मेरी मां मुझे अपने हाथों से ही खाना खिलाती थी लेकिन उसके बाद भी मुझे घंटो-घंटो में भूख लगती रहती थी उस समय मुझे खीर खाने की बहुत आदत थी लेकिन घर में ज्यादा लोग होने के कारण हमेशा खीर बन पाना संभव नहीं था यही वजह थी कि मेरी मां मुझे एक कटोरी में भात चीनी और दूध मिस कर खीर जैसा बना कर दे दिया करती थी जिसे मैं चाहा उसे पूरे घर में घूम घूम कर आया करता था उससे भी जब पेट नहीं भर्ती थी मेरी तुम्हें अपने जितने भी भूतिया हैं उनके घर चले जाया करता था और उनके घर में बने हुए स्वादिष्ट व्यंजनों को खुद से मांग कर ले लिया करता था मेरी ऐसी हालत थी कि मैं हमेशा ही एक कटोरी अपने साथ में लेकर घूमते रहता था ताकि जब जहां जो मिले उसमें डाल कर खाता चलो इसी क्रम में मैं धीरे-धीरे बड़ा हो गया मेरी मां मुझे अपने बड़े भाई और अपनी बड़ी बहन के साथ वहां के सरकारी स्कूलों में जाने को कई और फिर मैं उन लोगों के साथ सरकारी स्कूल जो हमारे घर के पीछे ही था वहां जाने लगा वहां हम लोगों को हफ्ता में 1 दिन छुट्टी मिलती थी महीना में एक बार गेहूं और चावल मिलता था जिसे हम लोग लेकर अपने घर बड़ी खुशी खुशी आया करते थे वहां की पढ़ाई एक सामान्य सरकारी स्कूल की पढ़ाई की तरह थी हमारे मास्टर बहुत ही अच्छे थे प्राथमिक शिक्षा युवाओं को प्री नर्सरी की पढ़ाई मेरी वहीं पर हुई 1996 में मेरी दादी का तबीयत खराब हो गया उन्हें भागलपुर इलाज के लिए लाया गया इलाज के दौरान हम लोगों को भी भागलपुर आने का मौका मिला भागलपुर में हमारा पहले से जमीन था जो कि हमारे पिताजी अपने पढ़ाई के दौरान खरीदे थे उसी जमीन में साझा हमारे एक फूफा और बुआ का भी जमीन है जिसमें उन लोगों ने घर बना रखा था उस समय हम लोग उन्हीं के यहां रुके थे उनकी तबीयत ज्यादा खराब हो गई थी और इसी क्रम में उनका देहांत हो गया हम लोग वापस गांव आए गांव आने पर हर मानो तो सूना सूना हो गया हो सभी अपने अपने कामों में धीरे-धीरे लगने लगे तभी मेरी मां को लगा कि अब वक्त आ गया है जब अपने बाल बच्चों को अच्छी शिक्षा हेतु अच्छे शहर में ले जाकर अच्छे स्कूल में नामांकन करा कर उन्हें अच्छा ज्ञान प्राप्त कराया जा सके यह सोचते हुए मेरी मां ने मेरे पिताजी से इस बारे में बात की और मेरे पिताजी के सहमति के बाद मेरी मां हम लोगों को अपने साथ लेकर भागलपुर मेरे फूफा जी के घर ले आई वहां हम लोग साथ में रहने लगे 1996 में घटी घटना के बाद यह दूसरी बार था जब हम लोग भागलपुर आए थे माना जाए तो 1996 से ही हम लोग भागलपुर को पसंद करने लगे थे लेकिन 1997 में हमारी मां के कारण हम लोगों ने भागलपुर रहने का सौभाग्य प्राप्त किया 1997 में ही हम लोग का नामांकन पास के स्कूल में कराया गया मेरा उम्र ज्यादा होने के कारण मुझे सीधा वन में एडमिशन कराया गया और मेरा भैया और मेरी दीदी को शहर के एक प्रतिष्ठित स्कूल में नाम लिखाई गई इस प्रकार हम लोगों की शिक्षा प्रारंभ हो गई ।

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