मोहन से महात्मा
मोहन से महात्मा इतिहास के कुछ पन्ने ऐसे होते हैं कि वे जब भी आपको या आप उनको छूते-खोलते हैं तो आपको कुछ नया बना कर जाते हैं। चंपारण का गांधी-अध्याय ऐसा ही इतिहास है। चंपारण से गांधी की संघर्ष गाथा ने उन्हें उस मुकाम पर पहुंचाया जिसके लिए इतिहास ने उन्हें गढ़ा था। वो गांधी का स्पर्श ही था कि उन्होंने चंपारण को धधकता शोला बना दिया था। चंपारण ने गांधी जी को मोहनदास करमचंद गांधी से महात्मा गांधी बना दिया। यह सब क्या था और कैसे हुआ था? 15 अप्रैल, 1917 को राजकुमार शुक्ल जैसे एक अनाम से शख्स के साथ मोहनदास करमचंद गांधी नाम का शख्स चंपारण आया था। मोहनदास वर्षों बाद स्वदेश लौटे थे, चंपारण का नाम भी नहीं सुना था और नील की खेती के बारे में न के बराबर जानते थे। कानूनी पढ़ाई के लिए इंग्लैंड से जो विदेश-यात्रा शुरू हुई थी वही उन्हें दक्षिण अफ्रीका ले गई। सब कुछ ठीकठाक ही चल रहा था। वकालत भी जम गई थी कि मॉरित्सबर्ग स्टेशन पर उस मूढ़मति टिकटचेकर ने उन्हें डिब्बे से उतार फेंकने का कारनामा कर डाला। अगर उस टिकटचेकर को जरा भी इल्म होता कि इस काले को डब्बे से उठा फेंकने से गोरों के साम्राज्य की नींव ही उखड़