अभिप्रेरणा अर्थ, महत्व और प्रकार

अभिप्रेरणा अर्थ, महत्व और प्रकार

अपेक्षित परिणाम प्राप्त करने के लिए प्रबन्धकों को कर्मचारियों को संक्रिय एवं प्रेरित करना पड़ता है। इसे अभिप्रेरण कहते हैं। यह एक शक्ति है जो व्यक्ति में प्रबल इच्छा जागृत कर स्वेच्छा से इस प्रकार कार्य करने की प्रेरणा उत्पन्न करती है कि विशिष्ट उद्देश्यों की प्राप्ति कर सके। यह वित्तीय (बोनस, कमीशन आदि) अथवा गैर वित्तीय (प्रशंसा, विकास आदि) के रूप में हो सकती है। यह नकारात्मक एवं सकारात्मक हो सकती है। मूलत: अभिप्रेरणा उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए होती है तथा यह लोगों को कार्य करने के लिए प्रोत्साहित करती है।

अभिप्रेरणा का महत्व

कार्य करने के लिए प्रेरित करना- अभिप्रेरणा निदेशन का मुख्य तत्व है इसका सर्वाधिक महत्व कार्य की योग्यता को कार्य करने की इच्छा में परिवर्तित करना है अर्थात् कार्य के प्रति रूचि जागृत करना है।साधनों का अधिकतम उपयोग- उपयुक्त अभिप्रेरणा से उत्पादन के तत्वों-मनुष्य, धन एवं माल आदि का अधिकतम उपयोग सम्भव है।श्रम अनुपस्थिति में कमी- प्रोत्साहित कर्मचारियों में अनुपस्थिति व काम छोड़कर जाने की प्रवृत्ति में कमी आती है।उत्पादन में वृद्धि- उपक्रम का उद्देश्य कम से कम लागत में अधिक से अधिक उत्पादन करना होता है, चूॅंकि उत्पादन पर ही विक्रय व फिर लाभ निर्भर रहता है। अत: श्रेष्ठ व अधिक उत्पादन के लिये आवश्यक है कि कर्मचारियों को अधिक कार्य के लिये अभिपे्ररित किया जाय।लक्ष्यों की प्राप्ति समय पर- किसी उपक्रम की सफलता उसके उद्देश्यों की प्राप्ति ही नहीं, अपितु उद्देश्यों को समय पर प्राप्त करने पर निर्भर है। कोर्इ प्रबन्धक कितना भी अच्छा माल व मशीन को उपलब्ध क्यों न करा ले, जब तक वहॉं के कर्मचारी कार्य करने के लिए पूर्ण इच्छा नहीं रखेंगे, तब तक माल व मशीनों का सदुपयोग नहीं हो सकता। अत: लक्ष्यों की प्राप्ति हेतु प्रेरणा आवश्यक है।
अन्य- 

मानवीय संबधों का विकास होता है।कर्मचारियों के मनोबल में वृद्धि होती है।कर्मचारियों की आवश्कताओं की सन्तुष्टि होती है।सहयोग की प्राप्ति होती है।कर्मचारियों के कार्यक्षमता में सुधार होता है।

अभिप्रेरणा के प्रकार-

मैस्लो के आवश्यकता के वर्गीकरण के अनुसार मनुष्य की शारीरिक, सुरक्षा, सम्बन्धी, सामाजिक आवश्यकता, प्रतिष्ठा रक्षक, आत्म सतुष्टि सम्बन्धी आवश्यताएॅं के आधार पर अभिप्रेरण के मुख्य रूप से तीन प्रकार बताये गये है-

1. धनात्मक एवं ऋणात्मक अभिप्रेरण-

इसके अंतर्गत अभिप्रेरण की वह प्रक्रिया जिसके अंतर्गत लक्ष्य के अनुसार कार्य पूर्ण करने पर लाभ या पुरस्कार की संभावना हो और दूसरों को इच्छा अनुसार उत्कृष्ट कार्य करने हेतु प्रेरित किया जाता हो। उसे धनात्मक अभिप्ररेणा माना जाता है। चूंकि यह सोच एक धनात्मक सोच है अत: इसे धनात्मक अभिप्रेरणा कहते है। ठीक इसके विपरीत ऐसी सोच जिसके अंतर्गत प्रोत्साहन न होकर भय या चिन्ता हो उसे ऋणात्मक अभिप्रेरणा कहा जाता है। जिसमें कर्मचारी द्वारा समय सीमा में लक्ष्य के अनुरूप कार्य न करने पर उसे दण्डित या जुर्माना की संभावना बनी हुये हो तो वह भयवश अच्छे कार्य करने हेतु प्रेरित होता है। परिणामत: वह भयवश लक्ष्य की प्राप्ति हेतु अपने अधिकतम क्षमता के द्वारा सर्वश्रेष्ठ प्रयास करता है। इस तरह वह अपमान या निन्दा से बचते हुये रोजगार में बना रहता है।

2. बाह्य एवं आंतरिक अभिप्रेरणा- 

बाह्रय अभिप्रेरणा से आषय ऐसे प्रोत्साहन या अभिपे्ररण से है जिसके अंतर्गत अधिकारी एवं कर्मचारी को उसके श्रेष्ठ कार्य के लिये अधिक वेतन, या सीमांत लाभ या जीवन बीमा या विश्राम का समय अवकाश (छुट्टी) या सेवानिवृत्ति योजनाएं आदि का अतिरिक्त लाभ प्राप्त होता हो से है। जबकि आंतरिक अभिप्रेरण के अंतर्गत एसे े तत्व सम्मिलित होते है जो कार्य के दौरान संतुष्टि प्रदान करते है और संबंधित कर्मचारी या अधिकारी को अतिरिक्त उत्तरदायित्व, मान्यता, हिस्सेदारी, सम्मान आदि प्रदान किया जाता है। इस प्रकार दोनों ही विधि संगठन का मनोबल बढ़ता है।

3. मौद्रिक एवं अमौदिक अभिप्रेरणा- 

किसी व्यक्ति को कार्य करने के लिए प्रेरित करने हेतु जब मौद्रिक तरीकों का उपयोग किया जाता है तो उसे मौद्रिक अभिप्रेरणा या वित्तीय अभिप्रेरणा कहते हैं जैसे- वेतन, मजदूरी, भत्ता एवं बोनस, गे्रज्युटी, पेंशन, अवकाश वेतन, भविष्य निधि के अंशदान, लाभ-भागिता ऋण सुविधा आदि। जब किसी व्यक्ति को मुद्रा के अलावा किसी अन्य मनोवैज्ञानिक तरीकों से सन्तुष्ट किया जाता है एवं कार्य के लिए पे्ररित किया जाता है तो उसे अमोैद्रिक या गैर वित्तीय अभिप्रेरणा कहते हैं जैसे-नौकरी की सुरक्षा, पदोन्नति के अवसर, प्रशंसा एवं पुरस्कार, सम्मान, अभिनंदन, स्वास्थ्य, शिक्षा एवं मनोरंजन सुविधा आदि।

संपादन व संकलन
आनंद श्री कृष्णन
हिंदी विश्वविद्यालय

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