आर्थिक स्वावलम्बन का प्रतीक खादी
आर्थिक स्वावलम्बन का प्रतीक खादी भारत में चरखे का इतिहास बहुत प्राचीन होते हुए भी इसमें उल्लेखनीय सुधार का काम महात्मा गांधी के जीवनकाल का ही मानना चाहिए। सबसे पहले सन् 1908 में गांधी जी को चरखे की बात सूझी थी जब वे इंग्लैंड में थे। उसके बाद वे बराबर इस दिशा में सोचते रहे। वे चाहते थे कि चरखा कहीं न कहीं से लाना चाहिए। सन् 1916 में साबरमती आश्रम (अहमदाबाद) की स्थापना हुई। बड़े प्रयत्न से दो वर्ष बाद सन् 1918 में एक विधवा बहन के पास खड़ा चरखा मिला। चरखा एक हस्तचालित युक्ति है जिससे सूत तैयार किया जाता है। इसका उपयोग कुटीर उद्योग के रूप में सूत उत्पादन में किया जाता है। भारत के स्वतन्त्रता संग्राम में यह आर्थिक स्वावलम्बन का प्रतीक बन गया था। चरखा यंत्र का जन्म और विकास कब तथा कैसे हुआ, इस पर चरखा संघ की ओर से काफ़ी खोजबीन की गई थी। अंग्रेज़ों के भारत आने से पहले भारत भर में चरखे और करघे का प्रचलन था। 1500 ई. तक खादी और हस्तकला उद्योग पूरी तरह विकसित था। सन् 1702 में अकेले इंग्लैंड ने भारत से 10,53,725 पाउंड की...