गांधी का वृंदावन

फटेहाली की मार झेल रहा है गांधी के वृंदावन का खादी ग्रामोद्योग

महात्मा गांधी के रचनात्मक कार्यक्रम के तहत बुनियादी विद्यालयों की स्थापना चम्पारण में हुई थी। बिहार के चंपारण की धरती पर ही गांधी ने अपना पहला सत्याग्रह किया था। गांधी सेवा संघ का पंचम अधिवेशन वर्ष 1939 में गांधी आश्रम वृंदावन में हुआ था। वृंदावन पश्चिम चंपारण जिले के चनपटिया प्रखंड में स्थित है। यहां 102 बीघा जमीन पर प्रजापति मिश्र ने ग्राम सेवा केंद्र की स्थापना की थी। इस अधिवेशन में महात्मा गांधी, सरदार वल्लभ भाई पटेल, डॉ. राजेन्द्र प्रसाद, आचर्य विनोबा भावे, आशा देवी, आर्यनायकम, काका साहेब कालेलकर,आचार्य जे.बी. कृपलानी, डॉ. जाकिर हुसैन, डॉ. श्रीकृष्ण सिंह, डॉ. अनुग्रह नारायण सिंह, जयराम दास दौलतराम आदि स्वनामधन्य लोग उपस्थित हुए थे। गांधी जी ने अधिवेशन का कार्य संपादित किया और बुनियादी विद्यालयों की नींव भी रखी। यहाँ छात्रों को सूत कताई, कपड़ा बुनाई, लोहारगीरी, बढ़ईगिरी, कृषि कार्य, बागवानी, झाड़ू-टोकरी बनाने में कुशल बनाया जाता था। यह सब 1939 में जब गांधी जी बिहार के वृंदावन आए तो बुनियादी विद्यालय के साथ-साथ रचनात्मक कार्यक्रम (लघु उद्योग) की शुरुआत हुई। जिससे आसपास के गांवों की महिलाओं को रोजगार प्राप्त हुआ। यहाँ पर तेल पेराई, गुड़ निर्माण, साबुन बनाने का काम बड़े पैमाने पर होता था। यहां का बना हुआ रेशमी कपड़ा पूरे भारत में सप्लाई  की जाती थी। यहाँ से रेशम के कपड़े का एक बंडल भेजते थे तो बदले में खादी के कपड़े का दस बंडल बाहर से यहां आता था। किन्तु बाद में बिहार सरकार की उदासीनता के कारण यह सारा रचनात्मक कार्य कई वर्षों के लिए बंद हो गया था। लेकिन छः साल पूर्व राज्य सरकार की पहल पर खादी ग्रामोद्योग को एक बार फिर से शुरू किया गया है।
       कुछ दिन पूर्व जब महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय के समाज कार्य विभाग के छात्र व शिक्षक की हमारी टीम स्टडी टूर के क्रम में राजकीय बुनियादी विद्यालय (बालक) वृंदावन आश्रम के बुनियादी शिक्षा के अध्ययन हेतु पहुँची थी। अध्ययन के दौरान हमें पता चला कि पास में ही गांधी के द्वारा यहां खादी ग्रामोद्योग की भी शुरआत की गई थी। इस सूचना के मिलते ही हम अपने काम को तन्मयता के साथ पूरा कर खादी ग्रामोद्योग पहुँच गए और जानकारी एकत्रित करना शुरू कर दिया। वर्तमान में वृंदावन के इस खादी ग्रामोद्योग से संबंधित कार्य का बीड़ा सोहन राऊत उठा रहें हैं। यानी सोहन राऊत ही यहां खादी ग्रामोद्योग का संचालन कर रहे हैं। उनसे बात करने पर पता चला कि इस आश्रम का निर्माण सरदार बल्लभ भाई पटेल के कहने पर हुआ था। बाद में विनोबा जी ने भी इस आश्रम में रहते हुए भूदान आंदोलन चलाया था। 1939 में आश्रम से दो-तीन सौ मीटर दूर फूस से बनी कुटिया में गांधी रुके थे। क्योंकि गांधी जी कहते थे कि भारत गांवों में बसता है और गांव के लोग फूस के बने घर में रहते हैं। इसलिए उन्होंने यहां भी फूस की बनी झोपड़ी में रहना पसन्द किया। सोहन राऊत ने हमें यह भी बताया कि वर्तमान में खादी बहुत महँगा हो गया है और इसकी तुलना में विदेशी कपड़े बहुत सस्ते हैं। इसलिए आज लोग खादी को ज्यादा पसंद नहीं करते हैं। सोहन राऊत बताते हैं कि 'मेरी ड्यूटी 24 घंटे रहती है और मुझे वेतन मात्र 6000 रूपये  ही मिलता है।' उन्होंने यह भी कहा कि 'खादी ग्रामोद्योग आयोग को चाहिए कि कम से कम हम जैसे लोगों को जिन्होंने खादी को जीवित रखा है, उन्हें सरकार की तरफ से समुचित मदद मिले।' चम्पारण सत्याग्रह के शताब्दी वर्ष को धूम-धाम से मनाने वाली सरकार को इसका संज्ञान लेना होगा तभी गांधी के इस वृंदावन की फटेहाली दूर होगी और यह गुलजार होगा।
        

आनंद श्री कृष्णन
  एम. एस. डब्लू

Comments

Popular posts from this blog

अभिप्रेरणा अर्थ, महत्व और प्रकार

शोध प्रारूप का अर्थ, प्रकार एवं महत्व

शोध की परिभाषा, प्रकार,चरण