नेपाल यात्रा

#मेरी _नेपाल _यात्रा
बुनियादी विद्यालय के दौरान मेरी पहली अंतराष्ट्रीय यात्रा नेपाल....महात्मा गांधी फ्यूजी गुरूजी समाज कार्य अध्ययन केंद्र के अंतर्गत बी एस.डब्लू. के अंतिम छमाही में अध्ययनरत हूँ। जिसमें हमें गांधीजी द्वारा चम्पारण सत्याग्रह के वक्त स्थापित किये गए बुनियादी विद्यालय का भ्रमण करना था।17/02/2018 को हमें हमारा पड़ोसी देश नेपाल ले जाया गया। प्रो. मनोज सर, डॉ. मुकेश सर और दीपेंद्र वाजपेई सर के माध्यम से हमें नेपाल यात्रा करने का मौका मिला। जिसमें दोस्तों के साथ ढेर सारी मस्ती करने के लिए भी मिला। मैं तो कभी सोची भी नहीं थी कि मैं नेपाल जाउंगी। इसका पूरा श्रेय मेरे माता-पिता और मेरे परिवार को जाता है क्योंकि उन्होंने मुझे पढ़ने के लिए प्रोत्साहित कर इस यूनिवर्सिटी में नामांकन करने के लिए अनुमति दी। जिनकी वजह से मैं आज नेपाल यात्रा कर सकी। बचपन में हमसपना देखते हैं कि हम नए-नए जगह घूमने जायेंगे, लेकिन मैंने यह नहीं सोचा था कि नेपाल जाउंगी। जब पता चला की हम लोग नेपाल जायेंगे तो मन में लड्डू फूटने लगे कि हम लोग अंतरराष्ट्रीय यात्रा करेंगे जिस देश का नाम नेपाल है। लो आज मैंने बिना सोचे नेपाल की यात्रा कर ही ली और वह भी दोस्तों और शिक्षकों के साथ! जब हम नेपाल सीमा पर पहुंचे तो वहां पर आवश्यक सूचना दी थी कि"नेपाल जाने वाले भारत में पंजीकृत वाहन के पास सीमा शुल्क आदायगी का अनुमति पत्र होनाचाहिए जिसकी अनुपस्थिति में ऐसे वाहन को नेपाल में जप्त और नीलाम किया जा सकता है।" जब हम नेपाल सीमा क्षेत्र में जाते हैं तब हमें पहले सीमा शुल्क कार्यालय में संपर्क करना पड़ता है। जब हम नेपाल सीमा के अंदर गये, वाह! वो प्राकृतिक सौंदर्य। नदी थी जिसका नाम पंडई नदी है। इतना आकर्षक दृश्य था कि बहुत ही मन को भा गया। हम लोग जहां घुमने गए थे उस गांव का नाम ठोरी था। यहाँ के घर तो देखने लायक थे। मिट्टी और लकड़ी के दो मंजिले घर थे, देखने में इतना सुंदर था कि उसे बताने के लिए शब्द कम पड़ रहे हैं।अब बात आती है वहां के रहन-सहन, संस्कृति की। वहां शराब ऐसे बिक रहा था मानो कोल्ड्रिंक्स बिक रहा हो। वहाँ का बाज़ार थोड़ा महंगा था। महाराष्ट्र में जो सामान 200₹ की है, वो सामान 300₹ में बिक रहा था। मैं और मेरे दोस्तों ने भारत को पैसा देकर नेपाल के पैसे ख़रीदे। क्योंकि मेरे लिए वहां के पैसे अनोखे थे। यह केवल मैंने इंटरनेट पर ही देखा था।घुमने और मस्ती करने में कब समय निकल गया पता ही नहीं चला। भारत आने का भी खयाल हमें रखना पड़ा। चूंकि शाम के 6 बजे तक वापस फिर उन्हीं जंगल को पार करना था और 6 बजे के बाद वापस लौटने नहीं देते हैं, जंगली जानवरों की वजह से। इसी तरह हमने हमारी नेपाल यात्रा की। लौटते समय मैं बाइक से आयी तो मुझे और भी अच्छा लगा। ठंडी-ठंडी हवा और अँधेरा यह सब दिल को छू जाने वाली थी हमारी नेपाल यात्रा। जिसमें हम सब लोगों ने काफ़ी मस्ती की।

प्रियंका की कलम से

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