नेपाल यात्रा

#मेरी_नेपाल_यात्रा...

चम्पारण, 17 फरवरी, 2018. पड़ोसी देश नेपाल की आज की यात्रा बहुत ही मस्ती भरी रही। मेरे साथी लोग कार से और मैं बाइक से अपने गुरु डॉ. मुकेश कुमार के साथ नेपाल यात्रा के लिए निकला। चम्पारण के भितिहरवा स्थित गांधी आश्रम से नेपाल पहुँचने का सड़क मार्ग इतना उबड़-खाबड़ और जर्जर था कि उस पर बाइक चलना काफी चुनौतीपूर्ण कार्य था। लगभग आधे रास्ते बालू से भरे हुए थे, जिस पर बाइक के फिसलने का बराबर खतरा बना हुआ था। इस सबके बावजूद आठ किलोमीटर लम्बे जंगल (बाल्मीकि अभ्यारण्य) सहित कुल 25 किमी का सफर तय करते हुए हमलोग नेपाल पहुँच गये। जंगल का रास्ता कहीं कच्चा तो कहीं पक्का था। हमें यह भी बताया गया कि इस जंगल में चीता, हिरन, चीतल, हाथी, गैंडा आदि जानवर देखने को मिलते हैं। चूंकि इससे पहले भी मैंने जंगल की यात्रा कई बार की थी। इसलिए डर तो नहीं लगा और साथ में साहस बढ़ाने के लिए गुरूजी तो पीछे बैठे ही थे। अब भारत की सीमा से लगी पंडई नदी पर देखने के लिए बहुत ही अद्भुत नजारे थे जो मन ही मन हमें ललचा रहे थे। नदी से ऊपर करीब सौ फुट ऊँचाई पर हम लोग खड़े थे वहाँ पर देखा कि मिट्टी और पत्थर को मिलाकर पॉलिथीन बैग में पैक किया जा रहा था। हम लोग आपस में बातें कर रहे थे कि शायद यह खनिज पैक किया जा रहा है। वहां खड़े लोगों से बात करने पर पता चला कि यह जिओ बैग (मिट्टी को काटने) से रोकने के लिए प्रयोग किया जाता है। अब बारी थी नेपाल के अद्भुत नजारों को पास से देखने की। नदी में नाममात्र का पानी था, बाइक से ही नदी पार कर हमलोग नेपाल को करीब से देखने हेतु लालायित थे। मौसम इतना खुशनुमा था कि मन कर रहा था आज यहीं ठहर जाऊँ। आगे नेपाल की सीमा के भीतर नेपाल को दिखाने की जिम्मेदारी थी नेपाल की सीमा के सबसे पहले के गांव के स्थानीय नेता रामशरण जी की। वे नेपाल माओवादी कम्युनिस्ट पार्टी के लोकप्रिय नेता हैं। उन्होंने काफी कम समय में हमें ढेर सारी चीजें दिखा दी। उनके नेतृत्व में सूखी हुई नदी में चलते- चलते हम एक पहाड़ पर चढ़कर एक झूले पर पहुँचे, जिसका प्रयोग एक पहाड़ी से दूसरी पहाड़ी जाने के लिए नेपाल में प्रयोग किया जाता है। जिसपर पहुँच कर हम लोगों ने फोटोग्राफी का आनंद उठाया। वहाँ से निकलने के बाद जंगल होते हुए गौतम नगर पहुँच गए। उस बीच में कई हिरन देखने का सौभाग्य भी मिला। हिरन गेंहू के खेत में छिपने की कोशिश कर रहा था पर हम तो उसको अपने कैमरे में कैद करना चाहते थे। अंततः उछलते-कूदते हिरण को हमने अपने मोबाइल कैमरे में कैद कर ही लिया।
    अब बारी थी वहां से वापस लौटने की। उससे पहले मुझे एक माओवादी कम्युनिस्ट पार्टी के नेता की तरफ से टी शर्ट भेंट में मिली। जो मेरे लिए बहुत ही सौभाग्य की बात थी की भेंट के रूप में नेपाल की सत्ताधारी पार्टी के नेता ने मुझे टी शर्ट भेंट के रूप में दी। अब वहाँ से एकबार फिर से नदी के पानी में होते हुए मुख्य रास्ते पर पहुँचा। जंगल से एकबार फिर गुजरना था
और अब रात हो रही थी। फिर से याद आ रहा था कि जंगल में जानवर हैं, लेकिन आना तो था ही। पहले की तरह इस बार भी सही सलामत हमलोग जंगल से निकलकर आ गए। इस बार गुरु जी साथ में नहीं थे। मेरी क्लासमेट प्रियंका मेरे साथ थी, चूंकि दूसरे रास्ते से आना था और वो रास्ता प्रियंका को पता था। लेकिन वो भूल गई और हमलोग गंतब्य पहुंचने के एकदम करीब आकर भटक गए। मेरे साथ के लोग वापस निवास स्थान कस्तूरबा उच्च माध्यमिक विद्यालय में पहुँच चुके थे। हम लोग भी कुछ देर भटकने के बाद अपने निवास पर पहुँच गए और  यात्रा सम्पन्न हुई। प्रकृति-पर्यावरण की खूबसूरत छटा के साथ यात्रा के दौरान जो ऐतिहासिक चीज देखने को मिली वो थी ब्रिटिश शासन काल के दौरान भारत आये ब्रिटिश सम्राट जार्ज पंचम के रुकने के लिए बनाई गई एक इमारत। 1911 में अपनी भारत यात्रा के क्रम में वे उस इमारत में रुके थे। स्थानीय लोग बताते हैं कि बाघ के शिकार के शौक की वजह से वे यहां आए थे। यह इमारत बाहर से पक्की और अंदर से लकड़ी की बनी हुई है जो 100 साल से भी अधिक पुरानी है। इमारत बाहर से तो जर्जर हो गई है पर छत पर जाने की सीढ़ी आज भी वैसी ही है जैसी बनाई गई होगी। जार्ज पंचम वही शख्सियत हैं जिनके भारत आने पर रविन्द्रनाथ टैगोर ने 'जनगणमन अधिनायक जय हे', लिखा था। यह सब देखने और समझने का मौका नेपाल यात्रा के क्रम में ही मिला। इस यात्रा से बहुत कुछ देखने और सीखने को मिला। क्योंकि इससे पहले जार्ज पंचम का मैंने केवल नाम ही सुना था लेकिन आज उनके बारे में जानने को और वे जहाँ रहे थे उस स्थान को भी देखने का मौका मिला।

सुधीर की कलम से

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