नेपाल यात्रा

नेपाल यात्रा
महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय के द्वारा बीएसडब्लू के छठी छमाही के सभी विद्यार्थियों को शैक्षणिक भ्रमण हेतु बिहार राज्य के चंपारण जिले के तीन बुनियादी स्कूलों का गहराई में जाकर अध्ययन करने के लिए प. चंपारण पहुँचे थे। यहां गांधी जी के द्वारा बुनियादी स्कूल स्थापित किये थे। कार्य करने के साथ-साथ जब खाली समय मिला तो स्थानीय लोगों से पता चला कि यहाँ से पड़ोसी देश नेपाल मात्र 25 किलोमीटर दूर है।तो हमारे विभाग के निदेशक प्रोफेसर मनोज सर एवं शिक्षक डॉ. मुकेश सर ने नेपाल यात्रा की योजना बनाई और हम निकल पड़े नेपाल। हम सभी ज्यादातर विद्यार्थियों की यह प्रथम विदेश यात्रा थी। सर्वप्रथम हम सभी ने जैसे ही बिहार की सीमा को पार किया और नेपाल प्रवेश किया, तो मन में बहुत सारे सवाल उत्पन्न हो रहे थे, जैसे पड़ोसी देश नेपाल में व्यवस्था एवं अन्य चीजें कैसी होंगी! और मन में यह भी सवाल आ रहा था कि सीमा केे बदल जाने से चीजें कैसे बदल जाती है। आखिर धरती वही, विश्व वही है परंतु वहाँ की संस्कृति, रीति- रिवाज, शारीरिक संरचना एवं आधारभूत संरचना सभी किस प्रकार परिवर्तित हो जाते हैं! नेपाल की यात्रा 17 फरवरी 2018 को हुई थी। मुझे नेपाल जाने का शुभ अवसर मेरे ही केंद्र की निदेशक और सहायक प्राध्यापक डॉ. मुकेश कुमार के निर्देशन में जाने का अवसर मिला। यात्रा की शुरुआत बहुत ही शांतिपूर्ण एवं आरामदायक प्रारम्भ हुई थी। यात्रा आरामदायक इसलिए लगी क्योंकि हम सभी कार में बैठकर यात्रा कर रहे थे। कार में सन 1984 के गाने चल रहे थे जो कि काफी अर्थपूर्ण और जीवन से सबंधित थे। जैसे-जैसे नेपाल की दूरी कम हो रही थी वैसे-वैसे नेपाल को जानने और समझने के लिए उत्सुकता भी अंदर ही अंदर बढ़ रही थी। अब हमें नेपाल पहुँचने से पहले एक घना जंगल पार कर नेपाल जाना था और हमें हिदायत दी गई थी कि जंगल में हाथी, चीता, हिरन, भालू, चीतल आदि जानवर हैं। चूंकि हमलोग कार से थे इसलिए हमें तो बिल्कुल डर नहीं लग रहा था। जंगल के रास्ते इतने उथल-पुथल भरे थे। कार में बैठे-बैठे हालत खराब हो रही थी क्योंकि रास्ता काफी खराब था। अब जंगल पार कर हम नेपाल पहुँच गए जहाँ एक ऐसा नजारा दिखाई दिया जो मन को बहुत ही मोहित कर रहा था। जैसे ही मैंने उसे देखा तो मन ही मन एक अलग प्रकार की अनुभूति हुई। वह अद्भुत नजारा, प्रकृति का सौंदर्य, पहाड़, नदी आदि मेरी नजर में बस गये।जिसका वर्णन करना इतना आसान नहीं है, क्योंकि वो ऊँची सफेद रंग का पहाड़ जिस पर कहीं-कहीं हल्की-हल्की रंग की हरी घास और उस पर छोटे- छोटे पत्थर जो इतने खुबसूरत थे कि उसे शब्दों में बता पाना मेरे लिए काफी कठिन है। उसपर से पहाड़ के नीचे पंडई नदी का बहना जिसमें पानी तो कम था लेकिन इतना कम होने के बावजूद पानी का इतना तेज प्रवाह मैं पहली बार देख रही थी। ये नजारा इतना मोहित कर रहा था कि मुझे लग रहा था कि मैं यह सब अपने मोबाइल कैमरे में कैद कर लूँ या फिर वहीं रह जाऊँ। अब आगे एक पहाड़ का रास्ता तय करना था, ऐसे पहाड़ पर पहले चलकर जाना था। पहाड़ पर स्थित अपने विश्वविद्यालय जाने के क्रम में मैं पहाड़ पर चलती तो रोज हूँ अपने विश्वविद्यालय में जो कि पांच टीला पर बना हुआ है। इसलिए इस पहाड़ पर चलने में कोई दिक्कत नहीं हुई और हम चल पड़े और हमने पहाड़ पर लंबा रास्ता तय किया। उस लंबे रास्ते को तय करते समय वहाँ के आस-पास के घर और वातावरण माहौल एवं वहाँ के कुछ लोग हम लोगों को ध्यानपूर्वक देख रहे थे और मैं भी उन लोगों को नजदीक से देखना समझना चाहती थी पर समय कम था इसलिए हमें जल्दी- जल्दी घूमना था। मैं गौतम बुद्ध के विचारों से काफी प्रभावित रही हूँ। नेपाल पहुँचने के बाद इच्छा प्रकट हुई की जिस स्थान पर बुद्ध का जन्म लुम्बनी वन में हुआ था। तो क्यों न उस स्थान को भी घूम लिया जाए। लेकिन लुम्बनी वन वहाँ से बहुत दूर था और समय का आभाव होने के कारण यह सम्भव नहीं हो सका। वहाँ की हर चीज मुझे बहुत अच्छी लगी। नेपाल में मेरे अनुसार वहाँ के लोगों की आर्थिक स्थिति बहुत अच्छी एवं सक्षम प्रतीत नहीं हो रही थी। लेकिन वहाँ के लोग भारत की तुलना में ऐसा लगा कि यहाँ महिलाएं काफी विकसित एवं सशक्त हैं।
     उपयुक्त निष्कर्ष के रूप में मैं कह सकती हूँ कि मेरी यह यात्रा बहुत ही सफल सुगंध एवं मंगलमय रही इसके लिए मैं अपने माता-पिता जिन्होंने मुझे महाराष्ट्र पढ़ाई हेतु भेजा और मैं नेपाल यात्रा कर सकी। अगर वे मुझे नहीं भेजते तो मैं नही जा पाती। यात्रा तो संम्पन हो गई थी और रात हो रही थी। वापस लौटना था और इस बार कार से नहीं बल्कि बाइक से आना था। अब मुझे डर लग रहा था क्योंकि रास्ता खराब और जंगल में जंगली जानवर का भी डर था। जंगल में मेरे साथ तीन बाइक से अलग-अलग साथी थे। मेरी बाइक मेरे ही सर डॉ. मुकेश कुमार चला रहे थे इसलिए कुछ डर कम हुआ। उसी जंगल के उबड़-खाबड़ रास्ते से होते हुए सभी लोग वापस बिहार आ गए और अपने विश्वविद्यालय एवं केंद्र के निदेशक और सहायक प्रो. डॉ मुकेश कुमार सर का आभार व्यक्त करती हूँ।

आशु की कलम से

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