आदर्श ग्राम
भारत में ‘आदर्श ग्राम’ के मायने क्या है?
भारत में आजकल गाँवों को गोद लेने का फ़ैशन जोरों पर है। नेता जी “सांसद आदर्श ग्राम योजना” के तहत गाँवों को गोद ले रहे हैं। गोद लेने की यह पूरी प्रक्रिया भेदभाव से परे हो ऐसा नहीं है। इसमें कहीं धर्म को प्राथमिकता दी जा रही है तो कहीं नेताओं की पसंद तय करने में जाति बड़ी भूमिका निभा रही है।
इससे पता चलता है कि राजनेता बड़े व्यावहारिक ढंग से सोच करते हैं। उनका हर फ़ैसला जहाँ तक संभव होता है वोटबैंक और फ़ायदे-नुकसान की गुणा-गणित से प्रभावित होता है। कुछ गाँवों के गोद लेने की सार्वजनिक घोषणा हो चुकी है। बाकी गाँव के लोग और उनके गाँव सोच रहे हैं, “हमें कौन गोद लेगा?” एक सवाल मन में आता है कि क्या भारत के गाँव अनाथ हो गए है? जो स्थिति उनको गोद लेने और उनकी देखभाल करने तक पहुंच गई। महात्मा गाँधी कहते थे, “भारत तो गाँवों में बसता है।”
महात्मा गाँधी मानते थे कि गाँवों का विकास इस तरह से होना चाहिए कि वे एक आत्मनिर्भर इकाई बनें। अपनी जरूरतों के लिए उन्हें शहरों पर ज़्यादा निर्भर न रहना पड़े। इस नज़रिए से देखें तो सरकार को ‘मेक इन इंडिया’ के साथ-साथ ‘मेक इन रूरल इंडिया’ का प्रोजेक्ट चलाना चाहिए था, जिसमें गाँव में कुटीर उद्योगों और छोटे-छोटे धंधों को बढ़ावा दिया जाता जैसा कि चीन में होता है। इस तरह के प्रयास सालों पहले ‘अंबर चरखा’ जैसी योजनाओं के साथ हुए थे। पशुपालन और बाकी सारे अवसर हैं भी तो बैंक से लोन और कमीशन के खेल में सारा मामला उलझ जाता है।
अगर सभी सांसद (राज्यसभा और लोकसभा) एक-दो गाँव गोद लेकर अपनी सांसद निधि से उसका विकास कर देते हैं तो भारत के सभी गाँवों का विकास करने में कितने साल लग जाएंगे…बीस, तीस,चालीस या पचास साल यह सवाल भी काबिल-ए-ग़ौर है। आँकड़ों बिना सही बातचीत कैसे हो सकती है? किसी गाँव को गोद लेने का मतलब क्या है? क्या इसका अर्थ सिर्फ़ गाँवों की साफ़-सफ़ाई करना है या कुछ और है।
अगर आदर्श ग्राम की बात होती है तो वहां के स्कूल किस स्तर के होंगे? कम से कम ज़िला या प्रदेश स्तर का तो होना ही चाहिए। अगर बहुत ज़्यादा उम्मीद की जाए तो राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर के स्कूल की भी उम्मीद की जा सकती है। कम से कम जितनी बात शिक्षा के अधिकार कानून में होती है कि छात्रों की अनुपात में शिक्षक हों और हर बच्चे को उचित और गुणवत्ता वाली शिक्षा मिले यह तो सुनिश्चित होना ही चाहिए।
लेकिन बात फिर आकर अटकेगी कि शिक्षा तो राज्य सरकार का विषय है…इसलिए हस्तक्षेप नहीं कर सकते। इस तरह की बातें भी इस योजना के दौरान जरूर होंगी। हमें यह भी देखना होगा कि केवल सांसद निधि के क्या-क्या संभव हो सकता है? इसके बारे में निधि की मात्रा और उसकी क्रय शक्ति के बारे में सोचना होगा। वैसे भी सांसद जी पूरी निधि किसी एक गाँव पर तो लगाएंगे नहीं। इसलिए इस योजना को वास्तविकता के धरातल पर रखकर सोचना चाहिए।
और इस आदर्श गाँव के अस्पताल कैसे होंगे? कम से कम ऐसे तो हों ही कि सामान्य और गंभीर बीमारियों का उपचार स्थानीय स्तर पर हो सके। लोगों को बाहर न जाना पड़े। अच्छे डॉक्टरों की तैनाती सुनिश्चित हो। आदर्श गाँव की बात करते समय नेता जी का अपना गाँव कैसा है? इस बात को भी देखना जरूरी है। हर किसी ने अपना गाँव तो चमका लिया और बाकी के गाँव रह गए…..लेकिन खर्च होने वाले संसाधनों पर तो पूरे देश व प्रदेश (दोनों) का हक़ था, फिर इस तरह का खर्च क्या भेदभावपूर्ण नहीं है कि ज़्यादा मात्रा में फंड किसी ख़ास गाँव को स्थानांतरित हो रहा है और वह भी मात्र इस कारण से नेता जी का अपना गाँव है।
एक गाँव और दूसरे गाँव के बीच में जलन की बात तो बहुत पुरानी रही है। क्या पड़ोस के गाँव को किसी की ‘गोद में बैठा देखकर’ यानि गोद लिए जाने पर क्या पड़ोस के गाँव वालों को जलन होती है? इस पर भी लोगों की राय जानने की जरूरत होगी। ऐसा भी हो सकता है कि पड़ोस के गाँव वाले नेता जी से कहें कि चुनाव के टाइम तो आप उसी गाँव के लोगों से वोट मांगिए हमारे लिए तो आपने कुछ किया नहीं!
इससे एक बात तो साफ़ है कि नेताओं को अब काम करने के लिए मजबूर होना पड़ेगा और लोगों को जवाब देना पड़ेगा….लेकिन तभी जब लोग सवाल पूछें। अगर पीके की तरह सवाल पूछने लगे तब तो नेता जी के लिए जवाब देना भी मुश्किल हो जाएगा। शायद इसीलिए ज़मीनी स्तर पर जागरूकता हौले-हौले बढ़े इस बात का अभी तक पूरा ध्यान रखा जाता था। लेकिन हो सकता है कि अब चीज़ों में बदलाव आए।
एक और बात कि क्या बच्चा गोद लेने और गाँव गोद लेने की प्रक्रिया में कोई समानता है? किसी भी बच्चे को गोद लेने की एक क़ानूनी प्रक्रिया होती है, जिसके तहत उसे गोद लेने वाले अभिभावक उसके भरण-पोषण और देखभाल की जिम्मेदारी लेते हैं। क्या गोद लिए जाने वाले गाँवों की इस तरह का कोई विशेषाधिकार मिलेगा। इसके साथ ही यह बात भी सामने आती है कि क्या किसी गाँव का जनता के चुने हुए प्रतिनिधि द्वारा गोद लेने का विचार संविधान के अनुरूप है या फिर यह अवसर की समता के सिद्धांत का उल्लंघन करता है। जैसे सारे व्यक्तियों को अवसर की समानता की बात कही जाती है…वैसे सारे गाँवों के लिए भी समता का सिद्धांत लागू होना चाहिए।
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