बहीखाता और लेखांकन के बीच का अंतर

बहीखाता और लेखांकन के बीच का अंतर

बहीखाता का अर्थ एवं परिभाषा

बहीखाते को अंग्रेजी में “बुक-कीपिंग” कहते हैं। वाणिज्य विषय-बुक कीपिगं का आशय हिसाब लिखने की कला से लगता जाता है अर्थात् बुक-कीपिंग से आशय हिसाब-किताब की बहियों में व्यापारिक सौदों को लिखने की कला से है। बहीखते को पुस्तपालन भी कहा जाता हैं। व्यवसाय में अनेकों लेन-देन होते है। क्या आप एक व्यवसाय के लेन-देन का अनुमान लगा सकते है ? यह संख्या व्यवसाय के आकार पर निर्भर करती है । एक दिन में यह लेन-देन सैकड़ों एवं हजारों की संख्या में हो सकते हैं। क्या कोर्इ व्यवसायी इन सभी, लेन-देना का विस्तार से विधि पूवर्क लेखाकंन आवश्यक हो जाता है ।

व्यावसायिक, लने -देना का लेखा पुस्तकों में विधिपूर्वक ‘लेखन पुस्तपालन’कहलाता हैं। पुस्तपालन का सम्बन्ध वित्तीय आँकड़ों के लेखा-जोखा से है। इसकी परिभाषा इस प्रकार से की जा सकती है। व्यावसायिक लेन-देनों का स्थायी रूप से हिसाब रखने की कला कला को पुस्तपालन कहते हैं।
श्री डावर के अनुसार - “हिसाब-किताब की पुस्तकों में व्यापारी के लेन-देनों का वर्गीकृत ढंग से लेखा करने की कला अथवा पद्धति के रूप में बुक-कीपिंग की परिभाषा की जा सकती हैं। “श्री बाटलीबॉय के अनुसार - “व्यापारिक व्यवहारों को हिसाब-किताब की निश्चित पुस्तकों में लिखने की कला का नाम बुक-कीपिंग है। “श्री रौलेण्ड के अनुसार - “पुस्तपालन का आशय सौदों को कुछ निश्चित सिद्धांतों के आधार पर लिखना हैं।”श्री कॉर्टर के अनुसार - “पुस्तपालन, उन समस्त व्यापारिक लेन-देनों को, जिनके फलस्वरूप द्रव्य या द्रव्य के मूल्य का हस्तान्तरण होता है, ठीक ढंग से बहीखातों में लेखा करने की कला एवं विज्ञान है।”सरल शब्दों मे यह कहा जा सकता है कि बहीखाता या पुस्तपालन वह कला व विज्ञान है, जिसके माध्यम से समस्त मौद्रिक व्यवहारों को हिसाब-किताब की पुस्तकों में नियमानुसार लिखा जाता है, जिससे कि लेखे रखने के उद्देश्यों को प्राप्त किया जा सके।

लेखांकन क्या है ?

बहीखाता के विवेचन से यह स्पष्ट हो जाता है कि व्यापारिक सौदों को निश्चित पुस्तकों में विधिवत् लिखना ही बहीखाता या पुस्तपालन है, किन्तु केवल व्यवहारों को निश्चित पुस्तकों में लिखने से व्यापार के परिणाम तथा उसकी वित्तीय स्थिति का ज्ञान प्राप्त नहीं किया जा सकता। एक निश्चित अवधि के परिणामों को जानने के लिए विभिन्न लेखों के संग्रहण, विश्लेषण तथा लेखों के सारांश तैयार करने सम्बन्ध् ाी कार्य की आवश्यकता होती हैं। अत: व्यापारिक परिणामों को जानने के लिए लेखों का संग्रहण करने, वर्गीकृत करने तथा सारांश तैयार करने के कार्य को ही, लेखांकन कहा जाता हैं।

अमेरिकन इन्स्टीट्यूट ऑफ सर्टिफाइड पब्लिक एकाउण्टेण्ट्स की शब्दावली समिति ने लेखाकंन को  परिभाषित किया हैं - “लेखाकंन उन व्यवहारों को और घटनाओं को जो अंशत: वित्तीय प्रकृति की होती हैं, मुद्रा के रूप में अभिप्रायपूर्ण तरीके से लेखा करने, वर्गीकृत करन,े सारांश निकालने तथा उनके परिणामों की व्याख्या करने की कला हैं।”स्मिथ एवं एशबर्न के अनुसार - “लेखांकन मुख्यतया वित्तीय प्रकृति के व्यापारिक व्यवहारों और घटनाओं का अभिलेखन तथा वर्गीकरण करने का विज्ञान हैं और इन व्यवहारों और घटनाओं का अभिप्रायपूर्ण वित्तीय प्रकृति का सारांश निकालने, विश्लेषण करने तथा परिणामों को उन व्यक्तियों को जिन्हें निश्चित करना है या निर्णय लेना है, सम्प्रेषित करने की कला हैं।”सरल शब्दों में - “लेखाकंन से तात्पर्य व्यापारिक व्यवहारों को वैज्ञानिक रीति से पुस्तकों में लिखने तथा किये गये लेखों को वर्गीकृत कर सारांश तैयार करने व परिणामों की व्याख्या करने की कला से हैं।”लेखाकंन का कार्य आर्थिक इकाइयों के सम्बन्ध में मात्रात्मक सूचना प्रदान करना है जो मूल रूप से वित्तीय प्रकृि त की होती है जो आथिर्क निणर्य लेने में उपयोगी होती है लेखांकन किसी संगठन की आर्थिक घटनाओं के सम्बन्ध में आवश्यक सूचना को पहचानने, मापने, लेखा-जोखा करने एवं सम्पे्रषित करने की एक ऐसी प्रक्रिया हैं जो इस सूचना के उपयोगकर्ताओं को प्रेशित की जाती है । लेखांकन की प्रकृति को समझने के लिए लेखांकन की परिभाषा में दिए  प्रासंगिक पहलुओं को समझना आवश्यक है :-

* आर्थिक घटनाएँ

आर्थिक घटना से तात्पर्य किसी व्यावसायिक संगठन में होने वाले लेन-देनों से है जिनका मुद्रा में मापन किया जा सके। उदाहरणार्थ मशीन का क्रय, स्थापना एवं निर्माण के लिए उसे तैयार करना एक आर्थिक घटना है जिसमें कर्इ वित्तीय लेन-देन समाहित हैं जैसे कि (क) मशीन का क्रय, (ख) मशीन का परिवहन व्यय, (ग) मशीन के स्थापना स्थल को तैयार करना, (घ) उसकी स्थापना पर किया गया व्यय।

* पहचान करना, मापन, लेखा-जोखा एवं सम्प्रेषण -

पहचान करने का अर्थ यह निर्धारित करना है कि किन लेन-देनों का अभिलेखन किया जाय अर्थात् उन घटनाओं की पहचान करना जिनका अभिलेखन किया जाना हैं। केवल वित्तीय घटनाओं का ही अभिलेखन किया जाता है। उदाहरण के लिए माल के नकद अथवा उधार क्रय का अभिलेखन किया जाएगा। गैर-वित्तीय प्रकृति के लेन-देन, जैसे कि प्रबन्धकीय नीतियों में परिवर्तन का लेखा पुस्तकों में नहीं लिखा जाता । मापन का अर्थ है मौद्रिक इकार्इ के द्वारा व्यावसायिक लेन-देनों का वित्तीय परिमापन। यदि किसी घटना का मौद्रिक रूप में परिमापन संभव नही है तो इसका वित्तीय लेखों में लेखांकन नहीं किया जाएगा इसलिए प्रबंध निर्देशक की नियुक्ति, महत्वपूर्ण अनुबंध एवं कर्मचारियों की बदली जैसी आवश्यक सूचनाओं का लेखा-जोखा पुस्तकों में नहीं किया जाएगा।
अभिलेखन: जब आर्थिक घटनाओं की पहचान व मापन वित्तीय रूप में हो जाती है तो इनका मौद्रिक इकाइयों में लेखा पुस्तकों में तिथिवार अभिलेखन कर दिया जाता है। अभिलेखन इस प्रकार से किया जाता है कि आवश्यक वित्तीय सूचना का स्थापित परम्परा के अनुसार सारांश निकाला जा सके।सम्प्रेषण: आर्थिक घटनाओं की पहचान की जाती है, उन्हें मुद्रा में मापा जाता है एवं उनका अभिलेखन किया जाता है जिससे आवश्यक सूचना तैयार होती है एवं इसका प्रबन्धकों एवं दूसरे आन्तरिक एवं बाहय उपयोगकर्ताओं को एक विशिष्ट रूप में सम्प्रेषण होता है। वित्तीय सूचना का लेखा प्रलेखों के माध्यम से नियमित रूप से सम्प्रेषित किया जाता है।संगठन: संगठन से अभिपा्रय व्यावसायिक इकार्इ से है चाहे उसका उद्देश्य लाभ कमाना है अथवा लाभ न कमाना है।

* सूचना के इच्छुक उपयोगकर्ता:

कर्इ उपयोगकर्ताओं को महत्वपूर्ण निणर्य लेने के लिए वित्तीय सूचनाओं की अवश्यकता होती है। यह उपयोगकतार्, निवेशकर्ता, लने दार, श्रमसघं आदि हो सकते है।

लेखांकन का विकास

भारतीय पौराणिक कथाओं के अनुसार चित्रगुप्त र्इश्वर की अदालत में लेखा-जोखा रखने का दायित्व निभाता है।
अर्थशास्त्र पर पुस्तक का लेखक, कौटिल्य जो कि चन्द्रगुप्त के राज्यों में मन्त्री था ने शताब्दियों पहले भारत में लेखांकन के प्रचलन का जिक्र किया है। उसमें लेखा अभिलेखन की विधि का वर्णन किया है। चीन एवं मिस्र में सरकारी खजाने के राजस्व के अभिलेखों को रखने के लिए लेखांकन का उपयोग होता था ।

इटली के लूकासपेसिओली की पुस्तक अरिथमैटिका ज्योमेट्रिका प्रोपोरशन प्रोपोरशनलिटि पर (रिब्यू ऑफ अरिथमैटिका एण्ड ज्योमैट्रिक प्रोपोरशन) को द्विअंकन पुस्तपालन पर पहली प्रामाणिक पुस्तक माना गया है। अपनी इस पुस्तक में उसने आज के लेखांकन के सर्वप्रचलित शब्द नाम तथा जमा का उपयोग किया। उसने विवरण पत्र, रोजनामचा, खाता बही एवं लेखांकन प्रक्रिया पर भी विस्तार से चर्चा की है। उसने यह भी कहा कि सभी प्रविष्टियॉं दो बार की जानी चाहिये अर्थात् यदि आप एक लेनदार बनाते हैं तो आपको एक देनदार बनाना होगा।

लेखांकन की विशेषताएॅं 

लेखांकन विज्ञान तथा कला दोनों है। लेखांकन में केवल वित्तीय व्यवहारों को ही शामिल किया जाना है। लेखांकन के अनुसार पुस्तकों में व्यवहारों का लेखा नियमित रूप से किया जाता है। लेखांकन के अन्तर्गत निश्चित बहियों का उपयोग किया जाना है। इसमें एक निश्चित प्रणाली के अधार पर लेखे किये जाने है।

लेखांकन की शाखाएँ

शताब्दियों से व्यवसाय की बदलती आवश्यकताओं के कारण लेखांकन की जो विशिष्ट शाखाएँ विकसित हुर्इ वो इस प्रकार है :-
वित्तीय लेखांकन-इसका सम्बन्ध वित्तीय लेन-देनों के लेखा करने, उनके संक्षिप्तीकरण, निर्वचन तथा परिणामों का उनके उपयोगकर्ताओं को सम्प्रेषण से है। इसमें एक अवधि विशेष (जो कि सामान्यत: एक वर्ष होता है) के अर्जित लाभ अथवा हानि का निर्धारण किया जाता है तथा लेखा अवधि की समाप्ति पर उस तिथि को वित्तीय स्थिति का निर्धारण किया जाता है। यह प्रबन्धकों एवं अन्य पक्षों को आवश्यक वित्तीय सूचना उपलब्ध कराता है। लेखांकन एवं वित्तीय लेखांकन शब्दों का समान अर्थ में ही उपयोग किया जाता है। इस समय तो हम वित्तीय लेखांकन पर ही ध्यान देंगे।लागत लेखांकन-इसमें व्यावसायिक इकार्इ द्वारा निर्मित विभिन्न उत्पादों की लागत का निर्धारण करने के लिए खर्चो का विश्लेषण किया जाता है एवं कीमत का निर्धारण होता है। यह लागत का नियंत्रण करने में सहायता प्रदान करती है तथा प्रबन्धकों को निर्णय लेने के लिए लागत सम्बन्धित आवश्यक सूचना उपलब्ध कराती है।प्रबन्धन लेखांकन-इसका सम्बन्ध कोष, लागत एवं लाभ आदि से सम्बन्धित सूचनाएँ देना है इससे प्रबन्धकों को निर्णय लेने तथा इसके निर्णयों एवं कार्यवाही के प्रभाव तथा विभिन्न विभागों के निष्पादन के मूल्याँकन में सहायक होता है।कर लेखांकन-लेखांकन की इस शाखा का विकास आयकर, बिक्रीकर आदि जटिल कर कानूनों के कारण हुआ है। एक लेखाकार को विभिन्न कर अधिनियमों का पूरा ज्ञान होना चाहिए।सामाजिक लेखांकन-लेखांकन की इस शाखा को सामाजिक रिपोटिर्ंग अथवा सामाजिक उत्तरदायित्व लेखांकन भी कहते है। यह व्यवसाय द्वारा समाज को पहॅुंचाए गए लाभ तथा उन पर आर्इ लागत को उजागर करता है। सामाजिक लाभ में चिकित्सा, आवास, शिक्षा, जलपान, कोष आदि सामाजिक सुविधाएँ सम्मिलित होती है जबकि सामाजिक लागत में कर्मचारियों का शोषण, औद्योगिक अशांति, पर्यावरण प्रदूषण, अनुचित निलम्बन तथा उद्योगों को स्थापित करने से उत्पन्न सामाजिक बुराइयाँ शामिल है।मानव संसाधन लेखांकन-इसका सम्बन्ध व्यवसाय के लिए मानव संसाधनों से है । मानव संसाधनों का मुद्रा के रूप में मूल्याँकन करने के लिए लेखांकन पद्वतियों का उपयोग किया जाता है इसीलिए यह संगठन में कार्यरत कर्मचारियों का लेखांकन है ।राष्ट्रीय संसाधन लेखांकन-इसका अर्थ है पूरे राष्ट्र के संसाधनों का लेखांकन जैसे कि जल संसाधन, खनन, जंगल, आदि ।सामान्यत: इसमें एकल व्यावसायिक इकाइयों का लेखांकन, नही किया जाता और न ही यह लेखांकन के सामान्य सिद्धांतों पर आधारित होता है । इसको अर्थशात्रियों ने विकसित किया है ।

आप वित्तीय लेखांकन के विषय में विस्तृत जानकारी प्राप्त करेगे ।संबंधित समस्त सूचनाएँ आँकड़ों के रूप में लेखांकन द्वारा उपलब्ध करायी जाती है ।

लेखांकन के सामान्य उद्देश्य 

व्यापार से सम्बन्धित अन्य सूचनाओं को उपलब्ध कराना ही लेखांकन के सामान्य उद्देश्य हैं ।
क्रय-विक्रय तथा शेष माल की जानकारी - समय-समय पर व्यापार में कुल क्रय, विक्रय तथा न बिके माल की जानकारी प्राप्त करना स्वामी के लिए आवश्यक होता हैं । लेखांकन द्धारा इस आवश्यकता की पूर्ति सरलता से कर दी जाती हैं । लेनदारों तथा देनदारों की स्थिति से अवगत करना - आज का व्यापार साख पर आधारित है । अत: प्रत्येक व्यापारी साहूकारों को भुगतान करने व ग्राहकों से रकम वसूल करने के लिए व्यापार में इनकी स्थिति की जानकारी से सदैव अवगत रहना चाहता है । लेखांकन द्धारा इस उद्देश्य की पूर्ति सम्भव होती हैं । छल-कपट पर नियंत्रण करना - व्यवहारों का उचित लेखांकन व उनकी नियमित जाँच करने पर कर्मचारियों तथा ग्राहकों द्धारा की जाने वाली छल-कपट की आशंकाओं को नियंत्रित किया जा सकता हैं ।व्ययों पर नियंत्रण करना - अनेक छोटे-छोटे व्यय यद्यपि इनकी राशि कम होती हैं, अधिक होने पर व्यापार की बचत घट जाती हैं । प्रत्येक व्यय का लेखा करने पर अनावश्यक व्ययों को नियंत्रित किया जा सकता हैं । करो का अनुमान लगाना - विभिन्न प्रकार के करों का निर्धारण व उनकी सम्भावित राशि का अनुमान लगाना व्यवहारों के लेखांकन से ही सम्भव हैं । अत: बहुत से ऐसे व्यापारी हैं, जो करों की भुगतान राशि का अनुमान लगाने के लिए व्यवहारों को लेखा करते हैं । लाभ-हानि के कारणों को ज्ञात करना - लेखांकन का उद्देश्य केवल व्यापार के लाभ या हानि को ज्ञात करना ही नहीं हैं, अपितु उन कारणों को भी ज्ञात करना होता हैं, जिनसे व्यापार की लाभ-हानि प्रभावित होती हैं । व्यापार का सही-सही मूल्यांकन करना - व्यापार के क्रय-विक्रय के लिए व्यापार की सम्पत्तियों एवं दायित्वों का सही-सही मूल्यांकन आवश्यक होता हैं । अत: इस आवश्यकता को लेखांकन के माध्यम से पूरा किया जा सकता है ।

लेखांकन के कार्य

लेखांकन का कार्य आर्थिक इकाइयों की सूचना उपलब्ध करना है जो मूलत: वित्तीय प्रकृति की होती हैं तथा जिसे आर्थिक निर्णय लेने में उपयोगी माना जाता हैं ।
विधिपूर्वक अभिलेखन करना-वित्तीय लेखांकन में व्यावसायिक लेन-देनों का विधिपूर्वक अभिलेखन किया जाता है, उनका वर्गीकरण किया जाता है तथा विभिन्न वित्तीय विवरणों के रूप में संक्षिप्तकरण किया जाता हैं । वित्तीय परिणामों को सम्प्रेषण-इसके माध्यम से शुद्ध लाभ (अथवा शुद्ध हानि) परिसम्पत्तियाँ उपयोगकर्ताओं देयताएँ आदि वित्तीय सूचनाओं का इच्छुक को सम्प्रेषण किया जाता हैं ।वैधानिक दायित्वों की पूर्ति करना-विभिन्न अधिनियम जैसेकि कम्पनी अधिनियम, 1956, आयकर एवं विक्रय कर /वैट कर का अधिनियम में प्रावधान है जिनके अनुसार विभिन्न विवरणें को जमा करना आवश्यक है जैसे कि वार्षिक खाते, आयकर विवरणी, वैट आदि की विवरणी ।दायित्व का निर्धारण-यह संगठन के विभिन्न विभागों के लाभ का निर्धारण करने में सहायक होता है । इससे विभागीय अध्यक्ष का दायित्व निश्चित किया जा सकता है ।निर्णय लेना-यह उपयोगकर्ताओं को प्रासंगिक आँकड़े उपलब्ध कराता है जिनकी सहायता से वह व्यवसाय में पूँजी के निवेश तथा माल की उधार आपूर्ति करने अथवा ऋण देने के सम्बन्ध में उपयुक्त निर्णय ले सकते हैं ।

लेखांकन की सीमाएँ

लेखांकन सूचनाओं को मुद्रा में व्यक्त किया जा सकता हैं: गैर मौद्रिक घटनाओं अथवा लेन-देनों को पूरी तरह से छोड़ दिया जाता हैं । स्थायी परिसम्पतियों का अभिलेखन मूल लागत पर किया जा सकता हैं : भवन, मशीन आदि परिसम्पत्तियों पर वास्तविक व्यय तथा उस पर आनुसंगिक व्यय का अभिलेखन किया जाता है। अत: मूल्य वृद्धि के लिए कोर्इ पा्रवधान नहीं होता। परिणामस्वरूप स्थिति विवरण व्यवसाय की सही स्थिति को नहीं बताता। लेखांकन सूचना कभी-कभी अनुमुमानों पर आधारित होती है : अनुमान कभी-कभी गलत भी हो सकते हैं। उदाहरण के लिए अवक्षरण निर्धारण के लिए सम्पत्ति के वास्तविक जीवन का अनुमान नहीं लगाया जा सकता। लेखांकन सूचना को केवल लाभ के आधार पर प्रबन्धन निष्पादन को एकमात्र परीक्षण के रूप में प्रयुक्त नहीं की जा सकती : एक वर्ष के लाभ को कुछ व्यय जैसे कि विज्ञापन, अनुसंधान , विकास अवक्षयण आदि व्ययों को दिखाकर सरलता से हेर-फेर किया जा सकता है अर्थात् दिखाने की संभावना होती हैं। लेखांकन सूचनाएं निष्पक्ष नहीं होती :लेखाकार आय का निर्धारण व्यय पर आगम के आधिक्य के रूप में करते हैं । लेकिन वह व्यवसाय के लाभ को ज्ञात करने के लिए आगम आय एवं व्यय की चुनी हुर्इ मदों को ध्यान में रखते है । वह इसमें सामाजिक लागत जैसे कि जल, ध्वनि एवं वायु प्रदूषण को सम्माहित नही करते । वह स्टाक अथवा अवक्षयण के मूल्याँकन की विभिन्न पद्धतियों को अपनाते है ।

बहीखाता बनाम लेखांकन

बहीखाता और लेखांकन कंपनी के खातों से संबंधित दो अलग-अलग विभाग हैं। बहीखाता प्रारंभिक चरण है, जिसमें हम आय और व्यय का रिकॉर्ड रखते हैं, जबकि लेखा विभाग एकाउंटेंट में कंपनी की वित्तीय गतिविधि का विश्लेषण करते हैं और रिपोर्ट तैयार करते हैं दोनों एक व्यवसाय की उचित प्रबंधन और वित्तीय सफलता के लिए बहुत महत्वपूर्ण हैं।

बहीखाता करना

साधारण शब्दों में, किसी कंपनी या व्यक्ति के वित्तीय लेनदेन को रिकॉर्ड करना, बहीखाता पद्धति, जैसे बिक्री, खरीद, राजस्व और व्यय परंपरागत रूप से, इसे किताबों में रखे जाने के बाद से बुककीपिंग के रूप में कहा जाता है; अब इस उद्देश्य के लिए विशिष्ट सॉफ्टवेयर हैं, लेकिन पुराना नाम अब भी प्रयोग में है। आम तौर पर, बुककीपर नियुक्त किए जाते हैं ताकि रिकॉर्ड को सटीक और सटीक तरीके से रखा जा सके। यह गतिविधि किसी कंपनी के वित्तीय स्वास्थ्य के लिए बहुत महत्वपूर्ण है, क्योंकि वह अपनी कंपनी की वित्तीय स्थिति के बारे में प्रबंधन को सूचित करती है। व्यवसाय की प्रकृति के अनुसार, आम तौर पर इस्तेमाल की जाने वाली किताबें हैं, दिन-किताब, खाता-खपत, कैशबुक और बिजनेस चेकबुक, कई अन्य का भी उपयोग किया जाता है एक मुनीम एक विशेष वित्तीय गतिविधि में अपनी संबंधित पुस्तक में प्रवेश करती है और खातेदार के रूप में भी पोस्ट करती है। सिंगल एंट्री और डबल एंट्री दो प्रकार के बहीखाता पद्धतियां हैं जैसा कि नाम से पता चलता है, एकल प्रविष्टि में लेनदेन या तो एक ही खाते के डेबिट में या क्रेडिट कॉलम में दर्ज किया जाता है, लेकिन डबल एंट्री के मामले में, प्रत्येक लेनदेन की दो प्रविष्टियां लेज़र को दी जाती हैं, डेबिट कॉलम में एक और क्रेडिट शीर्षक के तहत अन्य ।

लेखांकन

लेखांकन कंपनी की वित्तीय गतिविधि का संगठित रिकॉर्डिंग, रिपोर्टिंग और विश्लेषण से संबंधित है संपत्ति और देनदारियों के बारे में बयान भी करना लेखांकन के क्षेत्राधिकार में आते हैं। लेखाकार मासिक वित्तीय विवरण और वार्षिक कर रिटर्न बनाने के लिए भी ज़िम्मेदार होते हैं लेखांकन विभाग कंपनी के बजट तैयार करने और ऋण प्रस्तावों की योजना भी तैयार करते हैं। इसके अलावा, वे कंपनी के उत्पादों या सेवाओं की लागत का विश्लेषण करते हैं। अब एक दिन, लेखांकन को व्यवसाय की भाषा कहा जाता है, क्योंकि यह कई लोगों को आवश्यक जानकारी प्रदान करता है, उदाहरण के लिए, प्रबंधन अकाउंटिंग एक शाखा है, जो कंपनी के मैनेजर्स को सूचित करते हैं। वित्तीय लेखा कंपनी के वित्तीय गतिविधियों के बारे में बाहरी, जैसे बैंक, विक्रेता और हितधारकों को सूचित करती है। बाहरी और अंदरूनी सूत्रों के लिए जानकारी की प्रकृति अलग है, इसलिए बड़ी कंपनियों को इन दोनों शाखाओं की जरूरत है

अंतर और समानताएं

दोनों वित्त विभाग के अलग-अलग खंड हैं, बहीखाता पद्धति में कंपनी की वित्तीय गतिविधि का व्यवस्थित रिकॉर्ड रखना शामिल है, जहां लेखांकन अगले खंड है, जो विभिन्न रिपोर्टों और प्रस्तावों को तैयार करने के लिए इन रिकॉर्ड का विश्लेषण करता है प्रक्रिया में बहीखाता, जो प्रबंधन को कंपनी की रोज़गार की वित्तीय गतिविधियों का प्रबंधन करने में मदद करता है, जबकि लेखांकन इन वित्तीय कार्यों को उचित बनाता है और उनके कारणों को ढूंढता है। बड़ी कंपनियों में, व्यापार विभाग की वित्तीय गतिविधि का विश्लेषण करने के लिए लेखा विभाग भी बहुत बड़ा है, दूसरी तरफ, एक व्यक्ति आमतौर पर बहीखाता रहता है या अधिकतर दो लोगों में इस गतिविधि में शामिल हैं, यहां तक ​​कि बड़ी कंपनियों में भी। 

निष्कर्ष

किसी भी व्यवसाय के सफलतापूर्वक चलने के लिए बहीखाता-लेखन और लेखा आवश्यक है। बहीखाता करना महत्वपूर्ण है क्योंकि यह वित्तीय रिकॉर्ड रखने का प्राथमिक चरण है और लेखाकरण बहीखाता पद्धति के ईंट के आधार पर विश्लेषण का निर्माण होता है।

संपादन व संकलन
आनंद श्री कृष्णन

Comments

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