गांधी के आर्थिक विचार

आज भी प्रासंगिक हैं गांधी के आर्थिक विचार

महात्मा गांधी ने गांवों की आत्म-निर्भरता व ग्रामीण कुटीर उद्योगों पर बहुत बल दिया। आज भूमंडलीकरण और बहुराष्ट्रीय कंपनियों की दुनिया में बहुत से लोगों को लगता है

महात्मा गांधी ने गांवों की आत्म-निर्भरता व ग्रामीण कुटीर उद्योगों पर बहुत बल दिया। आज भूमंडलीकरण और बहुराष्ट्रीय कंपनियों की दुनिया में बहुत से लोगों को लगता है कि गांधी जी के आर्थिक विचार तो अब प्रासंगिक नहीं रहे। पर वास्तविकता तो यह है कि गांधी जी के यह विचार तो पहले से और अधिक प्रासंगिक हो गए हैं क्योंकि भूमंडलीकरण के इस युग में भारत जैसे देशों को पहले अपनी जड़ों को मजबूत करना है और इन जड़ों को मजबूत करने का एक महत्त्वपूर्ण पक्ष यह है कि गांवों की आत्म-निर्भरता को बढ़ाएं। इस संदर्भ में महात्मा गांधी के विचारों की सार्थकता मजबूत हुई है। भूमंडलीकरण के बारे में कई देशों ने अपने अनुभव से सीखा है कि यदि हम सावधान नहीं हैं तो इससे कई तरह की क्षति भी हो सकती है। हमें सावधान रहना चाहिए कि कहीं भूमंडलीकरण की आंधी में बहुत सी परंपरागत आजीविकाएं नष्ट न हो जाएं। हमें विशेषकर अपनी खेती-किसानी और दस्तकारियों की रक्षा के लिए सावधान रहना है। भूमंडलीकरण के दौर में प्राय: अति मशीनीकृत व पूंजी सघन तकनीकों का ही प्रचार-प्रसार होता है। पर हमारे जैसे देशों में परंपरागत आजीविकाएं श्रम-सघन तौर-तरीकों से जुड़ी हैं। इनके साथ बहुत सा परंपरागत ज्ञान भी जुड़ा है। यदि यह सब तेजी से लुप्त हुआ तो बहुत सी बहुमूल्य विरासत खो जाएगी। यदि गांधी जी की राह को अपनाया जाए तो गांवों व कस्बों की आत्मनिर्भरता व आजीविका की विविधता को बनाए रखने पर विशेष ध्यान दिया जाएगा। इसके आधार पर हम अपनी खाद्य आत्म-निर्भरता को सुनिश्चित करेंगे जो बहुत जरूरी है। इसी तरह अनेक अन्य बुनियादी जरूरतों के एक बड़े हिस्से की आपूर्ति खादी व कुटीर उद्योगों से हो सकेगी। इस तरह विश्व बाजार की अस्थिरता का असर अनेक बुनियादी जरूरतों को पूरा करने पर कम पड़ेगा क्योंकि इस संदर्भ में हमारे गांव आत्म-निर्भर होंगे। यदि अपने गांवों और कस्बों की अर्थव्यवस्था को हम काफी हद तक आत्म-निर्भरता के आधार पर मजबूत बनाए रखेंगे तो विश्व अर्थव्यवस्था में उतार-चढ़ाव का सामना हम अधिक दृढ़ता से कर सकते हैं क्योंकि हमारी बुनियाद मजबूत होगी। महात्मा गांधी इस बात पर भी बहुत जोर देते रहे कि अर्थ पक्ष और नैतिक पक्ष एक दूसरे के पूरक हैं। अर्थव्यवस्था को नैतिक सोच से अलग नहीं किया जा सकता है अपितु आर्थिक विकास भी नैतिकता पर ही आधारित होना चाहिए। यदि गांधी जी की इस सोच पर ध्यान दिया जाए तो जिस तरह से भ्रष्टाचार और काला धन अर्थव्यवस्था की बहुत क्षति कर रहे हैं उससे काफी हद तक बचा जा सकता है। इसी तरह कुछ अन्य विसंगतियों से भी बचा जा सकता है जिनके कारण जीएनपी व राष्ट्रीय आय तो बढ़ते हैं, पर खुशहाली व भलाई नहीं बढ़ती है। यदि गांधीजी जी की बात मानी जाती तो नशे, शराब, तंबाकू आदि के आधार पर राष्ट्रीय उत्पादन व आय बढ़ाने की सोच से हम पूरी तरह बच सकते थे। इसी नैतिक सोच से जुड़ी हुई गांधीजी की सोच थी कि सबसे बड़ी प्राथमिकता है निर्धन वर्ग का दुख-दर्द दूर करना। उन्होंने कहा कि यदि कभी अनिश्चय की स्थिति उत्पन्न हो तो इस आधार पर निर्णय लिया जाए कि सबसे निर्धन व जरूरतमंद वर्ग के लिए क्या जरूरी है। यदि इस सिद्धांत को ही मान लिया जाए तो देश में दुख-दर्द को तेजी से कम किया जा सकता है।

संपादन - आनंद श्री कृष्णन

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