विपणन प्रबंधन का परिचय

विपणन प्रबंधन का परिचय

विपणन प्रबन्ध (Marketing management), विपणन की तकनीकों का व्यावहारिक उपयोग है। विपणन प्रबन्धक का कार्य माँग के स्तर, समय एवं संरचना को इस प्रकार से प्रभावित करना है ताकि संगठन के उद्देश्यों की पूर्ति की जा सके।

विपणन (मार्केटिंग) शब्द का प्रयोग दो अर्थों में किया जाता है। संकुचित अर्थ में विपणन के अन्तर्गत उन समस्त क्रियाओं को शामिल किया जाता है जो वस्तुओं के उत्पादन केन्द्रों से लेकर उन्हें उपभोक्ताओं तक पहुँचाने के लिये की जातीं हैं। इस दृष्टि से विपणन के क्षेत्र में केवल क्रय, विज्ञापन, परिवहन, संग्रह आदि क्रियाएँ ही आतीं हैं। किन्तु व्यापक दृष्टि से 'विपणन' में विक्रय-नीतियाँ, विक्रय प्रबन्ध व संगठन, मूल्य निर्धारण, वस्तु का विकास, व्यावसायिक जोखिमों को कम करने के साधन आदि सभी क्रियाओं का समावेश किया जा सकता है।

विपणन  प्रबन्ध , प्रबन्ध का वह भाग है जिसके अन्तर्गत विपणन सम्बन्धी सभी क्रियाएँ सम्पन्न की जाती हैं। इसके अन्तर्गत उत्पादन से पूर्व और पश्चात की क्रियाएँ तथा सेवायेँ सम्मिलित होती हैं। वस्तुओं और सेवाओं को ग्राहकों की आवश्यकतानुसार उत्पादित किया जाता है।

अमेरिकन मार्केटिंग एशोसिएशन के अनुसार,

विक्रय प्रबन्ध का अर्थ किसी व्यावसायिक इकाई की विक्रय क्रियाओं के नियोजन, निर्देशन एवं नियन्त्रण से है जिनमें विक्रय शक्ति की भर्ती, चयन, प्रशिक्षण, साज-सज्जा, कार्य-सुपुर्दगी (assignment), समानुदेशन, मार्ग अंकन, पर्यवेक्षण, परितोषण एवं अभिप्रेरण सम्मिलित है।

फिलिप केटलर (Philip Kotler) के अनुसार,

संगठनात्मक उद्देश्यों की प्राप्ति के लिये परस्पर लाभकारी विनियमों और लक्षित बाजार के साथ सम्बन्धों के सृजन, विकास, और अनुरक्षण के लिये अभिकल्पित कार्यक्रमों का विश्लेषण, नियोजन, क्रियान्वयन, और नियन्त्रण विपणन प्रबन्ध कहलाता है।

विपणन प्रबन्ध के उद्देश्य

मांग का सृजन
बाजार में हिस्सेदारी
ग्राहक सन्तुष्टि के माध्यम से लाभप्रद विक्रय विस्तारसाथ एवं जन-छवि

विपणन का अर्थ एवं परिभाषाएं

प्रारंभिक समय में विपणन से तात्पर्य वस्तुओं के क्रय-विक्रय से था। दूसरे शब्दों में माल को उत्पादक से उपभोक्ता तक पहुंचाने वाली सभी क्रियाओं को विपणन में सम्मिलित किया जाता था। उत्पादन बाहुल्य एवं विविधता के फलस्वरूप विपणन के क्षैत्र में आमूल-चूल परिवर्तन हुए तथा विपणन का केन्द्र बिन्दु उपभोक्ता बन गया फलत: विक्रेता का बाजार क्रेता के बाजार के रूप में परिवर्तित होने लगा। विपणन की परिभाषाओं को दो भागों में बांट कर अध्ययन करना सुविधाजनक होगा:-

व्हीलर के अनुसार:-’’विपणन उन समस्त साधनों एवं क्रियाओं से सम्बन्धित है जिनसे वस्तुएँ एवं सेवाएँ उत्पादक से उपभोक्ता तक पहुचती हैे। '

पायले के अनुसार:-’’विपणन में क्रय एवं विक्रय दोनो ही क्रियाएँ सम्मिलित होती है।

’’अमेरिकन मार्केटिग एसोसिएशन के अनुसार:-’’विपणन उन व्यवसायिक क्रियाओं का निष्पादन करना है जो उत्पादक से उपभोक्ता की बीच वस्तुओं तथा सेवाओं के प्रवाह का नियमन करती है।

’’फिलिप कोटलर के अनुसार-’’विपणन वह मावनीय क्रिया है जो विनिमय प्रकियाओं के द्वारा आवश्यकताओं एवं इच्छाओं की सन्तुष्टि के लिए की जाती है।

प्रो. पाल मजूर के शब्दो में-’’समाज को जीवन स्तर प्रदान करना ही विपणन है।

’’हैन्सन के शब्दो में-’’विपणन उपभोक्ता की आवश्यकताओं को खोजने एवं उनको वस्तुओ तथा सेवाओं में परिवर्तित करने की क्रिया है। तदउपरान्त अधिकाधिक उपभोक्ताओं द्वारा वस्तुओं एवं सेवाओं से अधिकाधिक आनन्द प्राप्त करना है।

’’विलियम जे. स्टेन्टन के शब्दों में:-’’विपणन उन समस्त आपसी प्रभावकारी व्यवसायिक क्रियाओं की सम्पूर्ण प्रणाली है जो विद्यमान एवं भावी ग्राहकों की आवश्यकताओं को संतुष्ट करने वाले उत्पादों तथा सेवाओं का नियोजन करने, मूल्यनिर्धारण करने, प्रचार-प्रसार करने तथा वितरण करने के लिए की जाती है।

’’कण्डिक स्टिल तथा गोवोनी के मतानुसार-’’विपणन वह प्रबन्धकीय प्रक्रिया है जिसके द्वारा उत्पादो का बाजारों से मिलान किया जाता है तथा उसी के अनुरूप स्वामित्व का हस्तान्तरण किया जाता है’’। उपरोक्त परिभाषाओं के आधार पर विपणन में बातें सम्मिलित है :-
विपणन का प्रारंभ उपभोक्ताओं की इच्छाओं के साथ होता है। ;पपद्ध विपणन का समापन उपभोक्ताओं की इच्छाओं को सन्तुष्ट करने के साथ होता है। विपणन उपभोक्ता प्रधान हैं। ;पअद्ध ये परिभाषाएँ विपणन का सामाजिक दृिष्कोण प्रस्तुत करती है।ये परिभाषाएँ व्यवसाय को समाजोन्मुखी बनाती है।ये परिभाषाएँ उत्पादन, बाजार एवं उपभोक्ता की परस्पर निर्भरता की ओर संकेत करती है। निष्कर्ष रूप में यह कहा जा सकता है कि विपणन एक सामाजिक एवं प्रबन्धकीय प्रक्रिया है जो मानवीय आवश्यकताओं को सन्तुष्ट करने वाले उत्पाद व सेवाओं को सृजित करने, मूल्य निर्धारण करने तथा वितरण एवं संवर्द्धन द्वारा संगठन के उद्देश्यों को पूरा करने में योगदान देती है।

विपणन की विशेषताएँ/प्रकृति

विपणन की प्रमुख विशेषताएँ है जो विपणन की प्रकृति की ओर इंगित करती है जिनसे विपणन की प्रकृति का ज्ञान हो जाता है।

एक मानवीय क्रिया -

विपणन को एक मानवीय क्रिया इसलिए कहा गया है कि विपणन का कार्य मनुष्यो द्वारा मनुष्यों के लिए किया जाता है। आज विपणन कार्य में यंत्रो का उपयोग भी किया जाने लगा है लेकिन उनका संचालन मानव द्वारा ही किया जाता है अत: विपणन एक मानवीय क्रिया है।

सामाजिक आर्थिक क्रिया -

विपणन एक आर्थिक क्रिया इसलिए है कि यह लाभ के लिए की जाती है लेकिन इसके साथ यह एक सामाजिक क्रिया भी है क्योंकि यह कार्य समाज के भीतर रहकर एवं समाज के लिए ही किया जाता है। अत: विपणन एक सामाजिक-आर्थिक क्रिया है।

विपणन का आधार है विनिमय -.

विनिमय का अर्थ है लेन-देन। इसके लिए बिना विपणन क्रिया संभव नही है अत:विनिमय को ही विपणन का आधार माना गया है। विपणन उत्पादक एवं उपभोक्ता के मध्य मूल्य के बदले वस्तु या सेवा के आदान प्रदान की एक क्रिया है।  फिलिप कोटलर ने लिखा है कि ‘‘विपणन का अस्तित्व तब उत्पन्न होता है जब लोग विनिमय द्वारा अपनी आवश्यकताओं एवं इच्छाओं को संतुष्ट करने का निर्णय लेते है।’’  फिलिप कोटलर का मानना है कि विनियम - प्रक्रिया के लिए इन शर्तों का पूरा होना आवश्यक है :-
कम से कम दो पक्षकारों का होना एक पक्षकार के पास मूल्यवान उत्पाद/सेवा का होना जिसकी दूसरे पक्षकार को आवश्यकता हो। पक्षकार सन्देशों के आदन-प्रदान एवं सुपुर्दगी में सक्षम होने चाहिए।पक्षकार दूसरे पक्षकार के प्रस्ताव को स्वीकार करने या निरस्त करने के लिए स्वतंत्र होना चाहिए। प्रत्येक पक्षकार का यह मानना कि दूसरे पक्षकार के साथ लेन देन करना उचित है।

सृजनात्मक क्रिया - 

विपणन एक सृजनात्मक क्रिया है। विपणन उत्पादों में विभिन्न प्रकार की उपयोगिताओं का सृजन करता है जिससे उत्पाद मूल्यवान हो जाता है। विपणन द्वारा उत्पादों में निम्न प्रकार की उपयोगिताओं का सृजन किया जाता है :-
रूप उपयोगिता- उत्पाद के एक रूप में आवश्यक गुणों का समावेश कर उसे रूप उपयोगिता प्रदान की जाती है, जैसे-कपास से कपड़ा, गन्ने से चीनी एवं गुड़ आदि। स्थान उपयोगिता- उत्पाद को आवश्यकता के स्थान पर पहुंचाकर उसमें स्थान उपयोगिता का सृजन किया जाता है जैसे-पत्थर की खानों से पत्थर शहरो तक पहुंचाना आदि। समय उपयोगिता-उत्पादकों द्वारा उत्पाद को समय पर ग्राहकों को पहुंचाकर उसमें समय उपयोगिता को सृजन किया जाता है, जैसे-बरसात के मौसम में छाता एवं बरसाती उपलब्ध कराना आदि। स्वामित्व उपयोगिता- उत्पादों का स्वामित्व हस्तान्तरण कर उनमें स्वामित्व उपयोगिता का सृजन किया जाता है, जैसे-हिन्दुस्तान यूनिलीवर द्वारा अपने उत्पाद ग्राहकों तक पहुंचाना आदि। ज्ञान उपयोगिता- उत्पादक या वितरक द्वारा उत्पाद को प्रयोग करने की विधि, प्रयोग करते समय सावधानी बरतने की सलाह आदि बातों की जानकारी देकर उत्पाद से ज्ञान उपयोगिता का सृजन किया जाता है। इस प्रकार स्पष्ट है कि विपणन एक सृजनात्मक क्रिया है। 

उपभोक्ता प्रधान प्रक्रिया -

 उपभोक्ता विपणन का केन्द्र बिन्दु है, अत: विपणन की सारी क्रियाएँ उपभोक्ता की आवश्यकता, रूचि, फैशन आदि को ध्यान में रखकर ही की जाती है इसलिए विपणन को उपभोक्ताप्रधान प्रक्रिया कहा गया है। विपणन का प्रारंभ उपभोक्ता की इच्छा एवं आवश्यकता की जानकारी से होता है तथा उपभोक्ता की इच्छा एवं आवश्यकता की सन्तुष्टि के साथ विपणन क्रिया सम्पé हो जाती है।

सार्वभौमिक क्रिया -

चाहे आप किसी भी धर्म या संस्कृति को मानने वाले हो, किसी भी देश या काल में निवास कर रहे हो बिना विपणन के आपका कार्य नही चलेगा क्योकि विपणन कार्य सर्वत्र किया जाता है। यहॉ तक कि बिना विपणन के सम्पूर्ण समाज और सभ्यताओं के कार्य अधुरे रह जायेगें। अत: यह कहा जा सकता है कि विपणन एक सार्वभौमिक क्रिया है।

विपणन विज्ञान एवं कला दोनो है - 

विज्ञान के कुछ निश्चित सिद्धान्त होते है जिनकों खोज एवं अनुभव के आधार पर स्थापित किया जाता है। विपणन एक विज्ञान है क्योंकि विपणन कार्य कुछ निश्चित सिद्धांतों के आधार पर किया जाता है। कला किसी कार्य को करने का एक सर्वोत्तम ढंग है जिसके लिए निरन्तर अभ्यास एवं चातुर्य की आवश्यकता होती है। इन सिद्धांतों का उपयोग करने के लिए निरन्तर अभ्यास एवं चातुर्थ की आवश्यकता होती है। इसलिए विपणन कला भी है। अत: यह कहा जा सकता है कि विपणन विज्ञान एवं कला दोनों हैं।

विपणन विक्रय से भिन्न है - 

विक्रय में विक्रेता उपभोक्ता को वस्तु बेचकर संतुष्ट हो जाता है तथा इस बात पर कोई ध्यान नही देता है कि उपभोक्ता को उस वस्तु से संतुष्टि प्राप्त होगी या नही जबकि विपणन में उत्पाद का निर्माण ही उपभोक्ता की आवश्यकता एवं इच्छा को ध्यान में रखकर किया जाता है। अत: यहॉ यह कहा जा सकता है कि विपणन विक्रय से बिल्कुल अलग है।

गतिशील प्रक्रिया -

विपणन कार्य कभी बन्द नही होता यह सैदेव चलता रहता है। विपणनकर्ता हमेशा बदलती हुई ग्राहक की रूचियों, फैशन, पसंद आदि पर ध्यान देता रहता है जिससे उत्पाद को ग्राहक के लिए ओर अधिक उपयोगी बनाया जा सके। अत: यह कहा जा सकता है कि विपणन एक गतिशील प्रकिया है।

व्यवसाय की सम्पूर्ण प्रणाली -

प्रो. विलियम जे स्टेन्टन के अनुसार-’’विपणन पारस्परिक व्यावसायिक क्रियाओं की सम्पूर्ण प्रणाली है जो वर्तमान एवं संभावित ग्राहकों को उनकी आवश्यकता संन्तुष्टि की वस्तुओं तथा सेवाओं के बारे में योजना बनाने, कीमत निर्धारित करने, संवर्द्धन करने एवं वितरण करने के लिए की जाती हैं।’’ इस कथन से यह स्पष्ट है कि विपणन व्यावसायिक क्रियाओं की एक सम्पूर्ण प्रणाली है जिसमें एक ओर ये सभी व्यावसायिक क्रियाएँ सम्मिलित है तथा दूसरी ओर ये सभी क्रियाएँ आपस में एक दूसरे से सम्बन्धित है जो एक दूसरे से प्रभावित भी होती है।

विभिन्न कार्यो की प्रकिया - 

विपणन विभिन्न कार्यो की एक प्रक्रिया है जिसमें उत्पाद नियोजन एवं विकास, विपणन अनुसंधान, मूल्यनिर्धारण, माल के भण्डारण एवं वितरण, विज्ञापन, विक्रय संवर्द्धन आदि कार्य सम्पन्न किये जाते है। अत: यहाँ यह कहा जा सकता है कि विपणन विभिन्न कार्यों की प्रक्रिया है।

अन्तर-विषयक विचारधारा -

विपणन एक अन्तर-विषयक विचार धारा है क्योंकि अर्थशास्त्र, समाजशास्त्र, मनोविज्ञान आदि विषयों का विपणन पर गहरा प्रभाव पड़ता है। प्रभावी विपणन के लिए इन विषयों का ज्ञान होना परमावश्यक है।

विपणन के कार्य अथवा विपणन का क्षेत्र

विपणन का क्षैत्र अत्यन्त व्यापक है। विलियम जे. स्टेन्टन ने लिखा है कि “जिस प्रकार विपणन कार्य उत्पादन कार्य सम्पन्न होने के बाद प्रारम्भ नहीं होता है ठीक उसी तरह विक्रय कार्य सम्पन्न करने के बाद भी विपणन कार्य सम्पन्न नहीं होता है।”  कन्वर्स ह्रयूजी एवं मिचेल के अनुसार विपणन प्रक्रिया में क्रियाएँ सम्मिलित है :-
स्वामित्व हस्तान्तरण की क्रियाएँ - ;क्रय क्रियाएँ विक्रय क्रियाएँ 

वस्तुओं को पहुंचाने वाली क्रियाएँ - यातायात संग्रहण श्रेणीयन विभक्तिकरण आदेश प्राप्त करनापैकिंग करना विपणन प्रबन्धन सम्बन्धी क्रियाएँ - नीति निर्माण संगठन स्थापना उपकरण प्रदान करना वित्त प्रबन्धन कार्यकलापों का पर्यवेक्षण एवं नियन्त्रण  जोखिम वहन करना सूचना प्राप्ति कण्डिफ, स्टिल एवं गोवोनी के अनुसार विपणन में कार्य सम्मिलित है :-
वाणिज्यियन कार्य - उत्पाद नियोजन एवं विकास ;प्रमापीकरण एवं श्रेणीयन ;क्रय एवं संकलन विक्रयणभौतिक वितरण कार्य - भण्डारण परिवहन सहायक कार्य - विपणन वित्त व्यवस्था जोखिम वहन करना बाजार सूचनाविपणन कार्य उपभोक्ता से प्रारंभ होता है तथा उपभोक्ता की आवश्यकताओं को संतुष्ट करने के पश्चात समाप्त होता है। दुसरे शब्दो में उत्पादन पूर्व की क्रियाओं से लेकर विक्रय पश्चात तक की जाने वाली क्रियाएँ विपणन में सम्मिलित की जाती है। अध्ययन की सुविधा के दृष्टिकोण से विपणन के कार्यो को इन भागों में बांट कर अध्ययन किया जा सकता है।

उत्पाद नियोजन एवं विकास - 

उत्पाद नियोजन एवं विकास में इस बात का ध्यान रखा जाता है कि बनाया जाने वाला उत्पाद ग्राहकों की आवश्यकताओं एवं इच्छाओं के अनुरूप हो अन्यथा ग्राहक उस उत्पाद को क्रय नहीं करेंगे। इस हेतु बाजार अनुसंधान एवं विपणन अनुसंधान के कार्य करके यह पता लगाने की कोशिश की जाती है कि ग्राहक किस प्रकार का उत्पाद पंसद करेंगे। इस कार्य मे उत्पाद के रंग, रूप, आकार, डिजायन, किस्म, पेकेजिंग, लेबलिंग आदि पर ध्यान दिया जाता है ताकि उत्पाद उपभोक्ता की आवश्यकता एवं पसंद पर खरा उतर सकें।

उत्पाद विविधीकरण कार्य -

 उत्पादक के लिए उत्पाद विविधीकरण पर ध्यान देना अतिआवश्यक है क्योंकि जब तक आपका उत्पाद किसी भी दृष्टिकोण से आपके प्रतिस्पर्द्धी के उत्पाद से अच्छा नही होगा तब तक उपभोक्ता का ध्यान आपके उत्पाद की तरफ नही जायेगा। उपभोक्ता का ध्यान आकर्षित करने के लिए संस्था को सदैव अपने उत्पादों में परिवर्तन एवं सुधार करते रहना चाहिए तथा इसके साथ ही अपने प्रतिस्पर्द्धी के उत्पाद की तरफ भी नजर रखनी चाहिए।

बाजार विभक्तिकरण कार्य - 

बाजार विभक्तिकरण का अर्थ है बाजार को विभिन्न भागों में बांटना। बाजार विभक्तिकरण ग्राहकों की आय, शिक्षा, आयु, परिवार के आकार, लिंग आदि के आधार पर किया जाता है। इसके अतिरिक्त भौगोलिक आधार पर भी बाजार का विभाजन किया जा सकता है। भौगोलिक आधार पर बाजार के विभाजन से एक क्षैत्र विशेष पर विपणन की सारी क्रियाएँ केन्द्रित की जा सकती है तथा ग्राहकों के आधार पर बाजार के विभाजन से विभिन्न आय वर्ग के ग्राहकों के लिए उनकी आय के अनुरूप उत्पाद प्रस्तुत किये जा सकते है तथा ग्राहकों की शिक्षा, आयु, लिंग तथा परिवार के आकार को ध्यान में रखकर अलग-अलग प्रकार के उत्पाद बनाये जा सकते हैं।

विनिमय कार्य - 

विनिमय का अर्थ है लेन-देन। विनिमय एक व्यापक कार्य है जिसके अन्तर्गत निम्नलिखित कार्य आते हैं -

क्रय कार्य - उत्पादको को उत्पादन कार्य हेतु कच्चामाल क्रय करना पड़ता है, मध्यस्थों को छोटे फुटकर व्यापारियोंकी आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु निर्माताओं से माल क्रय करना होता है। 

संकलन - संकलन के अन्तर्गत विपणनकर्ता अनेक स्त्रोतो से माल के हिस्से-पुर्जे एकत्र करता है तथा उन्हे आपस में जोड़कर किसी नये उत्पाद का निर्माण करता है। सामान्यत: मोटरसाइकिल निर्माता उसके कुछ आवश्यक हिस्से पुर्जे बाजार से एकत्रित कर मोटरसाइकिल तैयार करते है। इसका कारण यह है कि सभी आवश्यक हिस्सों-पुर्जो का निर्माण एक निर्माता के द्वारा न तो संभव है ओर न ही यह लाभप्रद होता है। 

विक्रय - इस कार्य में विपणनकर्ता माल ग्राहकों को हस्तान्तरित करता है। इसके लिए मूल्य-सूचियाँ बनाना, विक्रयशर्तें निर्धारित करना, विक्रय-कर्ताओं की नियुक्ति तथा मध्यस्थों की नियुक्ति जैसे कार्य आवश्यक हो जाते है। 

मूल्य निर्धारण कार्य -

मूल्य निर्धारण विपणन का एक महत्वपूर्ण कार्य है क्योकि मूल्य निर्धारण में ही उपक्रम की सफलता छुपी होती है। यदि उत्पाद का मूल्य ग्राहक की नजर में अधिक है तो उस उत्पाद के स्थान पर ग्राहक किसी अन्य उत्पाद को क्रय कर लेगें। उत्पाद का मूल्य निर्धारित करते समय विपणन कर्ता को उत्पाद की लागत, उसकी मात्रा, प्रतिस्पर्धा तथा मूल्य को प्रभावित करने वाले घटको पर भली भांति विचार कर लेना चाहिए।

भौतिक वितरण कार्य -

भौतिक वितरण कार्य में एक विपणन कर्ता को कार्य करने पड़ते हैं :-

परिवहन - यह एक ऐसा कार्य है जो उत्पाद को स्थान उपयोगिता प्रदान करता है। यह कार्य जल, थल एवं नभ परिहवन के माध्यम से किया जा सकता है। विपणनकर्ता को इसके लिए उपयुक्त परिवहन माध्यम का चयन, परिवहन मार्ग का निर्धारण, परिवहन बीमा, परिवहन सुरक्षा आदि कार्य करने पड़ते है। 

भण्डारण या संग्रहण - यह कार्य माल को समय उपयोगिता प्रदान करता है इसके अन्तर्गत विपणन कर्ता माल का उस समय संग्रह कर लेते है जब माल की पूर्ति मांग की तुलना में ज्यादा होती है ताकि बाद में मांग अधिक होने पर मांग को पूरा किया जा सके।

स्कन्ध प्रबन्ध - बाजार में उत्पाद की पूर्ति बिना किसी बाधा के लगातार की जा सके इसके लिए स्टाक का एक निश्चित स्तर बनाया जाना आवश्यक है। उत्पाद की मांग की स्थिति को देखकर स्टाक स्तर में कमी-वृद्वि की जा सकती है।

अन्य कार्य - 

अन्य कार्यों में कार्यों को सम्मिलित किया जाता है :-

विपणन संचार - विपणनकर्ता इसके लिए विज्ञापन, प्रचार एवं प्रसार, विक्रयकर्ता, विपणन अनुसंधान आदि साधनों का सहारा लेता है एवं अपने वर्तमान एवं भावी ग्राहकों के साथ सम्पर्क स्थापित करता है ताकि अपना संदेश ग्राहकों को पहुंचाने के साथ ही ग्राहकों की शिकायत एवं सुझावों की भी जानकारी ली जा सकें।

वित्त व्यवस्था - धन व्यवसाय का जीवन रक्त है, धन की आवश्यकता कच्चा माल, यंत्र एवं उपकरण खरीदने एवं आवश्यक खर्चो की पूर्ति के लिए पड़ती है। वित्त की पूर्ति स्वयं के साधनों से, बैकों तथा वित्तीय संस्थानों से ऋण लेकर की जा सकती है। 

जोखिम उठाना - विपणन कर्ता को माल के विपणन में अनेक जोखिमों का सामना करना पड़ता है जैसे माल के नष्ट होने, मांग के कम होने, माल के अप्रचलित होने जैसी अनेक जोखिम हो सकती है। इनमें से कुछ जोखिमों का बीमा कराकर उन्हे कम किया जा सकता है तथा जिनका बीमा संभव नहीं होता है, उन्हे विपणनकर्ता को वहन करना होता है। 

पैकेजिंग एवं पैकिंग - सामान्यत: पैकिंग परिवहन या माल को लाने-ले जाने में सुविधा या सुरक्षा के लिए की जाती है जबकि पैकेजिंग द्वारा वस्तुओं के रंगरूप की सुरक्षा की जाती है। इसके साथ ही वस्तु को आकर्षण बनाने के लिए भी पैकेजिंग का सहारा लिया जाता है। वस्तु को कम मात्रा में उपलब्ध कराने के लिए भी पैकेजिंग का सहारा लिया जाता है।

प्रमापीकरण एवं श्रेणीयन - प्रमापीकरण के कार्य में वस्तुओं के प्रमाप निश्चित किये जाते है ताकि वस्तु का उत्पादन, उन प्रमापों के आधार पर किया जा सके। श्रेणीयन में उत्पादित वस्तु को वस्तु की किस्म एवं गुणों के आधार पर अलग श्रेणीयों में विभाजित कर दिया जाता है। जिससे वस्तु को पहचानने एवं मूल्य निर्धारण में सुविधा होती है। 

विक्रय पश्चात सेवा - विक्रय पश्चात सेवा में सेवायें सम्मिलित हैं :- वस्तु के उपयोग के लिए प्रशिक्षण प्रदान करना वस्तु के खराब होने पर मरम्मत की सुविधा प्रदान करना वारंटी की अवधी में वस्तु के खराब होने पर बदलने की सुविधा प्रदान करना आदि।

विपणन का महत्व

‘‘उपभोक्ता बाजार का राजा है।’’ आज विपणन की सभी कियाएँ उपभोक्ता को ध्यान में रखकर की जाती है। व्यवसाय में अधिकाधिक लाभ उपभोक्ता को संतुष्ट करके ही अर्जित किया जा सकता है। उपभोक्ता को संतुष्ट करने के लिए माल की प्रभावकारी विपणन व्यवस्था अतिआवश्यक है। बाजार में एक ही वस्तु के अनेक विपणनकर्ता होते हैं तथा उनके मध्य निरन्तर प्रतिस्पर्धा बनी रहती है। मालके प्रभावकारी विपणन द्वारा ही प्रतिस्पर्द्धा में विजय प्राप्त की जा सकती है। अध्ययन की सुविधा हेतु विपणन के महत्व को इन भागो में विभाजित किया जा सकता है।

व्यवसायियों के लिए महत्व 

व्यवसायियों के लिए कुशल विपणन बिना व्यवसाय का संचालन संभव नही है संक्षेप में, व्यवसायियो के लिए विपणन का महत्व है :-

अधिकाधिक लाभ कमाने के लिए- प्रभावी विपणन से माल की मांग बढ़ती है तथा मांग बढ़ने से व्यवसायी के लाभ में वृद्धि होती है। अत: अधिकाधिक लाभ कमाने के लिए विपणन आवश्यक है। 

प्रतिइकाई लागत में कमी के लिए - विपणन द्वारा जब माल की मांग बढ़ती है तो मांग को पूरा करने के लिए अधिक मात्रा में उत्पादन करना पड़ता है। अधिक उत्पादन से बड़े पैमाने की बचते प्राप्त होती है जिससे प्रतिइकाई लागत में कमी आती है। 

नवीन उत्पाद का निर्माण - बाजार अनुसंधान के माध्यम से बदलती हुई परिस्थितियों में उपभोक्ता के व्यवहार का अध्ययन किया जाता है तथा उपभोक्ता की आवश्यकता एवं पसंद का पता लगाया जाता है तथा उपभोक्ता की आवश्यकता एवं पसंद के अनुरूप नवीन उत्पादों का निर्माण किया जाता है। अत: विपणन ही नवीन उत्पादों का जनक हैं। 

प्रतिस्पर्धा में विजय प्राप्त करने हेतु - जैसा कि हम जानते है कि आज एक ही वस्तु के अनेक उत्पादक/विपणनकर्ता है तथा इनके मध्य माल के विपणन के लिए तीव्र प्रतिस्पर्धा विद्यमान होती है। प्रभावी विपणन व्यूह रचना के माध्यम से इन परिस्थितियों में विजय प्राप्त की जा सकती है। अत: प्रतिस्पर्धा में विजय प्राप्त करने हेतु विपणन आवश्यक हैं। 

बदलती हुई परिस्थितियों का सामना करने के लिए - आज उपभोक्ता की रूचि एवं फैशन निरन्तर परिवर्तन का विषय है। इस परिवर्तन के दौर का सामना करने के लिए विपणनकर्ता को सदैव सतर्क रहकर बाजार की स्थितियों को देखना होता है तथा उसी के अनुरूप अपनी विपणन की व्यवस्था करनी होती है। अत: बदलती हुई परिस्थितियों का सामना करने के लिए विपणन आवश्यक है। 

व्यवसाय की ख्याति में वृद्धि - जब ग्राहको को उनकी आवश्यकता एवं पसंद के अनुसार उत्पाद मिलते है तो ग्राहक की नजर में संस्था अच्छी छवि बनती है तथा ग्राहक पुन: उसी संस्था का माल क्रय करता है। इस प्रकार उपभोक्ता की संतुष्टि तथा सामाजिक दायित्व का निर्वाह संस्था की ख्याति में वृद्धि करते है। 

सूचनाओं के आदान-प्रदान में सहायक - प्रभावी विपणन व्यवस्था उपभोक्ता एवं व्यवसायी के मध्य सूचनाओं के आदान-प्रदान का महत्वपूर्ण साधन है। विपणन अनुसंधान, विज्ञापन, प्रचार आदि साधनों से सूचनाओं का आदान प्रदान होता है। अत: यह कहा जा सकता है कि विपणन सूचनाओं के आदान-प्रदान में सहायक हैं।

उत्पाद की न्यूनतम लागत - अच्छी विपणन व्यवस्था द्वारा प्रतिइकाई लागत में कमी की जा सकती है तथा इसके साथ ही विपणन लागतों में कमी करके उत्पाद की लागत न्यूनतम रखी जा सकती है। विदेशी व्यापार में सफलता -प्रभावी विपणन व्यवस्था संस्था की ख्याति अन्तराष्ट्रीय स्तर तक पहुंचा देती है। जिससे दूसरे देशो में भी माल का विपणन संभव हो जाता है। अत: विदेशी व्यापार में सफलता के लिए विपणन आवश्यक है। 

संस्था का विकास - अच्छी विपणन व्यवस्था संस्था के विकास एवं विस्तार में सहायक होती है जैसा कि आप जानते है प्रभावी विपणन बड़े पैमाने के उत्पादन को संभव बनाता है जिससे प्रतिइकाई लागत में कमी होती है, संस्था का लाभ बढ़ता है तथा स्वत: विकास एवं विस्तार के अवसर प्राप्त होते है। अत: यह कहा जा सकता है कि विपणन संस्था के विकास के द्वार खोलता है। 

उपभोक्ता के लिए महत्व 

विपणन कार्य ग्राहक या उपभोक्ता प्रधानकार्य है अत: उपभोक्ताओं की सन्तुष्टि ही विपणन का प्रमुख आधार होनी चाहिए। संक्षेप में उपभोक्ताओं के लिए विपणन का महत्व है :-

उच्च जीवन-स्तर प्रदान करना - विपणन बहुउपयोगी एवं आरामदायक वस्तुओं एवं सेवाओं की पहुंच उपभोक्ता तक संभव बनाता है जिससे उपभोक्ता के स्तर में वृद्धि होती है और उसके जीवन स्तर में सुधार होता है। 

सूचनात्मक - विपणन द्वारा विभिन्न प्रकार की सूचनाएँ उपभोक्ता तक पहुंचायी जाती है, जैसे नवीन उत्पाद की जानकारी, वस्तु के उपयोग के बारे में जानकारी आदि जो उपभोक्ता के लिए महत्वपूर्ण होती है। अत: यह कहना ठीक होगा कि विपणन सूचनात्मक होता है।

वस्तुओं का तुलनात्मक अध्ययन - प्रभावी विपणन व्यवस्था उपभोक्ता को विभिन्न उत्पादकों द्वारा उत्पादित वस्तुओं के तुलनात्मक अध्ययन का अवसर प्रदान करती हैं उपभोक्ता उत्पाद के गुण-दोष, उपयोगिता, कीमत आदि का अध्ययन कर अपने लिए सर्वश्रेष्ट उत्पाद का चयन कर सकता है। 

आवश्यकताओं की पूर्ति - विपणन अनुसंधान द्वारा उपभोक्ताओं की आवश्यकताओं का निर्धारण किया जाता है तथा उसी के अनुसार उत्पाद का उत्पादन कर ग्राहक की आवश्यकताओं का संतुष्ट करने का प्रयास किया जाता है। आर्थर के अनुसार-’’ प्रभावी विपणन व्यवस्था ग्राहकों की आवश्यकताओं का पता लगाती है, उन्हे प्रभावकारी एवं लाभकारी तरीके से संतुष्ट करने का प्रयास करती है।’’ 

उचित मूल्य पर वस्तुओं की उपलब्धि - आज का युग प्रतियोगिता का युग है। एक ही वस्तु अनेक उत्पादकों द्वारा उत्पादित की जाती है। सभी उत्पादक अपने स्तर पर प्रभावी विपणन व्यवस्था स्थापित करते हैं जिससे उपभोक्ता तक उत्पाद उचित मूल्य पर पहुंचता है। 

समय पर वस्तुओं की उपलब्धि - प्रभावी विपणन व्यवस्था द्वारा वस्तुओं की आपूर्ति हर समय सुनिश्चित की जाती है जिससे उपभोक्ता को समय पर वस्तुएॅ उपलब्ध हो जाती है। 

यथास्थान वस्तुओं की उपलब्धि - प्रभावी विपणन व्यवस्था द्वारा विपणनकर्ता उपभोक्ता के बिलकुल पास जाकर वस्तुओं की उपलब्धि कराने में सक्षम हो गया है। आवश्यक वस्तुएॅ उपभोक्ता के घर तक पहुचायी जाती है। अत: यह कहना उचित ही हैं कि यथा स्थान वस्तुओं की उपलब्धि के लिए विपणन आवश्यक है। 

विक्रय उपरान्त सेवा - आज विक्रय पश्चात सेवा का बड़ा महत्व है। प्रभावकारी विपणन में इस सेवा पर बड़ा ध्यान दिया जाता है। टिकाऊ वस्तुओं पर ग्राहकों को एक निश्चित समय के लिए वारंटी प्रदान की जाती है। वस्तुओं की मरम्मत की सुविधा प्रदान की जाती है। 

उपभोक्ता के ज्ञान में वृद्धि - विज्ञापन एवं प्रसार के माध्यम द्वारा विपणनकर्ता उपभोक्ता के ज्ञान में वृद्धि करता है जिससे उपभोक्ता विवेकपूर्ण निर्णय लेने मे सक्षम हो जाता है। अत: यह कहा जा सकता है कि विपणन उपभोक्ता के ज्ञान में वृद्धि करता हैं। 

समाज के लिए महत्व -

विपणन समाज के लिए महत्पूर्ण है क्योंकि समाज के लोगों की आवश्यकता को ध्यान में रखकर विपणन किया जाता है। संक्षेप में, समाज के लिए विपणन का महत्व  है:-

समाज के जीवन स्तर में सुधार - विपणन समाज को उच्च जीवन स्तर प्रदान करता है। प्रभावी विपणन के माध्यम से उपभोक्ता को आरामदायक और आवश्यकता वाले उत्पाद उपलब्ध कराये जाते है जिससे सम्पूर्ण समाज के जीवन स्तर में सुधार होता है। 
रोजगार के अवसरो का सृजन - प्रभावी विपणन व्यवस्था से बहुत बड़ी संख्या में थोक व्यापारी, फुटकर व्यापारी, विज्ञापन, प्रचार, बाजार अनुसंधान आदि कार्यो में व्यक्तियों की आवश्यकता होती है। उन्हें रोजगार के अवसर उपलब्ध होते है। अत: यह कहना उचित ही हैं कि विपणन रोजगार के अवसरों का सृजन करता है। 

मांग एवं पूर्ति में सन्तुलन - प्रभावी विपणन व्यवस्था द्वारा उत्पाद की मांग के अनुरूप पूर्ति की व्यवस्था की जाती है जिससे मांग एवं पूर्ति में सन्तुलन बना रहता है। 

तेजी एवं मंदी से सुरक्षा - विपणन उत्पाद की मांग का निर्माण करता है तथा उपभोक्ता की जरूरतों के अनुरूप उत्पादों के उत्पादन को संभव बनाता है जिससे व्यावसायिक चक्रों से समाज के लोगों की सुरक्षा होती है। अत: यह कहना ठीक ही होगा कि विपणन तेजी एवं मन्दी से सुरक्षा प्रदान करता है। 

सामाजिक उतरदायित्व की भावना का विकास - प्रभावी विपणन व्यवस्था उत्पादक एवं विपणनकर्ताओं की सोच में परिवर्तन करती है जिससे उनमें सामाजिक उतरदायित्व प्रति सजगता की भावना बढ़ती है और उत्पादक सामाजिक उत्तरदायित्वों को निभाने की ओर अग्रसर होते हैं।

अर्थव्यवस्था के लिए महत्व -

विपणन सम्पूर्ण अर्थव्यवस्था को प्रभावित करता है। राष्ट्रीय दृष्टिकोण से विपणन का महत्व है-

राष्ट्रीय साधनों का सदुपयोग - प्रभावी विपणन व्यवस्था इस बात को सुनिश्चित करती है कि उन्ही वस्तुओ का उत्पादन किया जाय जिसकी उपभोक्ताओं को आवश्यकता है। परिणाम स्वरूप राष्ट्रीय साधन व्यर्थ नहीं जाते, उनका सदुपयोग होता है।

सरकारी आय का साधन - विपणन सरकारी आय का साधन है क्योकि प्रभावी विपणन व्यवस्था से उत्पादकों की आय मे वृद्धि होती है जिससे सरकार को प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रूप से राजस्व की प्राप्ति होती है। 

कृषि एंव आवश्यक सहायक उद्योगों का विकास - विपणन के माध्यम से कृषि जन्य प्रदार्थो से अनेक प्रकार के उत्पाद तैयार किये जाते हैं जिससे कृषि एवं सहायक उद्योगों का विकास संभव हो पाता है।

प्रतिव्यक्ति आय में वृद्धि - प्रभावी विपणन व्यवस्था अधिक उत्पादन एवं उपभोग को संभव बनाती है, रोजगार के अवसरों का सृजन करती है जिससे प्रति व्यक्ति आय बढ़ती है जो अर्थव्यवस्था के विकास के लिए महत्वपूर्ण है। 

विदेशी मुद्रा का अर्जन - प्रभावी विपणन व्यवस्था उत्पाद के प्रचलन एवं उसकी ख्याति बढ़ाने में महत्वपूर्ण भुमिका अदा करती है। उत्पाद की बढ़ी हुई ख्याति विदेशो में उत्पाद के विक्रय को संभव बनाती है जिससे बहुमूल्य विदेशी मुद्रा की प्राप्ति होती है। इस प्रकार स्पष्ट है कि विपणन सिर्फ व्यवसायियों एवं उपभोक्ताओं के लिए ही महत्व नहीं रखता बल्कि सम्पूर्ण समाज एवं अर्थव्यवस्था के लिए भी महत्वपूर्ण है।

संपादन व संकलन
आनंद श्री कृष्णन
M.S.W, M.B.A
हिंदी विश्वविद्यालय

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