काव्य संग्रह -मुकुंद मिलिंद

वसंत की तरुणाई से नेतृत्व को समझता हूं।
हेमंत की शीतलता से मैं श्रीमंत को पाता हूं।
राग वही गुनगुनाता हूं काल के सम्मुख में जड़त्व के पाठ करता हूं।।

रानी जैसी माता में संसार को मैं पाता हूं।
राष्ट्रभक्ति संकल्पना से मैं रमणी हो जाता हूं।
राग वही गुनगुनाता हूं काल के सम्मुख में जड़त्व के पाठ करता हूं।।

सुरभि की सेवा से रेशम सा चमकता हूं।
राष्ट्र के कल्याण को मैं ध्येय समझता हूं।
राग वही गुनगुनाता हूं काल के सम्मुख में जड़त्व के पाठ करता।।

अनुभव से आनंद लेकर मुकुंद सा मुस्कुराता हूं।
विश्वजीत कल्पना से दिल‌ जीतता जाता हूं।।
राग वही गुनगुनाता हूं काल के सम्मुख में जड़त्व  पाठ करता हूं।।

युगल की बंदिशों से मैं प्रिया को समझता हूं।
शकुंतला की कुशलता से कौशल को मैं समझता हूं।
किशोर सा‌ चहकता हूं।
राग वही गुनगुनाता हूं काल के सम्मुख में जड़त्व  पाठ करता हूं।।

उत्तम की प्रेरणा से सर्वोत्तम प्रयास करता हूं।
राग वही गुनगुनाता हूं काल के सम्मुख में जड़त्व  पाठ करता हूं।।

।। काव्य संग्रह।।
।।मुकुंद मिलिंद।।

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