प्रस्तावना - विकसित भारत 2020

प्रस्तावना

किसी भी समाज में सामाजिक व्यवस्था की संवेदनशीलता, सजगता एवं सक्रियता उसके लोगों के जीवन की गुणवत्ता का मापदण्ड होता है। अगर सामाजिक व्यवस्था खुली, न्यायपूर्ण, समतामूलक, जीवन एवं तर्कसंगत होती है तो लोगों का जीवन अधिक सुखमय एवं शांतिपूर्ण रहता है। लेकिन जन्म पर आधारित अपरिवर्तनीय जाति व्यवस्था के दुष्प्रभावों के कारण भारतीय समाज का एक बड़ा हिस्सा मुख्य भाग से अलग-थलग होकर रह गया। जमींदारी प्रथा के काल में इनका खुल्लमखुल्ला शोषण, दुरुपयोग एवं उत्पीड़न किया गया तथा ये बेबस और चुपचाप इसे सहते गये। यह सिलसिला एक लम्बे अर्से तक चलता रहा। ब्रिटिश काल में लेशमात्र सुधार का कार्य किया गया, लेकिन इसका कोई विशेष असर नहीं हुआ बल्कि भारतीय समाज में पृथकतावाद, जातिवाद, संप्रदायवाद आदि नवीन बुराइयों ने अपनी पैठ मजबूत कर ली । स्वतंत्रता के उपरांत सामान्य रूप से और भारतीय संविधान के अंगीकृत किये जाने के पश्चात् विशेष रूप से योजनाबद्ध प्रयास प्रारंभ किये गए।

हमारे देश में समाज का गौरवशाली अतीत रहा है। आरंभ से ही भारतीय समाज में निर्धनों की सहायता और असहायों की देखभाल की परंपरा रही है । इस परंपरा को स्वतंत्रता के उपरांत नया आयाम दिया गया। प्रस्तुत पुस्तक में इसी विषय में प्रकाश डाला
गया है। पुस्तक समानता, न्याय, स्वतंत्रता एवं भ्रातृत्व के लिए सवैधानिक प्रावधानों का उल्लेख किया गया है।

पुस्तक प्रकाशन में कई लिखित व अलिखित स्रोतों से मदद ली गई है । मैं उन सभी स्रोतों के लेखक, प्रकाशक सम्पादक के प्रति अपना आभार प्रकट करता हूँ। अंत में पुस्तक प्रकाशन में प्रत्यक्ष व परोक्ष रूप से सहयोग करने वाले अपने सभी सहयोगियों
के प्रति अपना आभार प्रकट करता हूँ।

-लेखक

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