गैर सरकारी संगठन Non Government Organization अध्याय -2 एन.जी.ओ.के कर की व्यवस्था

गैर सरकारी संगठन
Non Government Organization

अध्याय -2
एन.जी.ओ.के कर की व्यवस्था

एन.जी.ओ. और धन कर सभी कम्पनियों को कर देना पड़ता है जो विभिन्न रूपों में होता है। जैसे-मकान कर, वाहन कर, आय से अधिक धन रखने पर कर । यह सभी प्रकार के कर सरकार को अदा करने पड़ते हैं। सोसायटी हो या ट्रस्ट उसको भी धन कर देना पड़ता है। कंपनी को भी धन कर सरकार को अदा करना पड़ता है। सभी लोग :पदकपअपकनंसेद्धए भ्ये और कंपनियां धन कर देने के लिए बाधय हैं, यदि उनका कुल करयोग्य धन 30 लाख रु. ख्009-10 के लिए 15 लाख रु., से अधिक हो। ऐसे कई निर्णय हैं जिनमें श्पदकपअपकनंसश् में व्यक्तियों के समूह और ट्रस्ट को शामिल माना गया है। अतः छळव्ए चाहे ट्रस्ट, सोसायटी या कंपनी के रूप में स्थापित हों, सभी धन कर देने के लिए किसी न किसी तरह बाधय होते हैं।

शुद्ध धन

यह मूल्यांकन तिथि को करदाता की सभी परिसंपत्तियों के मूल्य के कुल जोड़ में से उसके ऋणों के कुल मूल्य को घटाने के बाद की राशि के बराबर होता है। 

परिसंपत्तियां 

निम्नलिखित परिसंपत्तियां करदाता के करयोग्य शुद्ध धन में शामिल होंगी- गेस्ट हाउस; आवासीय, व्यापारिक मकान; स्थानीय नगर निगम की सीमा से 25 कि. मी. के भीतर स्थित फार्म हाउस; मोटर गाड़ियां; आभूषण सोना-चांदी और फर्नीचर
बर्तन या अन्य वस्तुएं जो पूर्णतः या आंशिक रूप से सोना, चांदी, प्लेटिनम या अन्य कीमती धातुओं या अन्य मिश्रधातु जिसमें ऐसी एक या अधिक कीमती धातु हो. से बनी हों; याट(Yachts ) नावें और हवाई जहाज; किसी नगर निगम या कंटोनमेंट बोर्ड जिसकी जनसंख्या 10,000 से कम हो, उनकी नगर सीमा में या ऐसी सीमाओं से 8 कि.मी. के भीतर स्थित शहरी भूमि; किसी व्यक्ति या HUF की स्थिति में 50,000 रु. से अधिक की नकद राशि और अन्य मामलों में वह राशि जो खातों में दर्ज न हो।
          परन्तु, परिसंपत्तियों में निम्नलिखित को शामिल नहीं किया जाता है-
1. ऐसा मकान जो सिर्फ आवासीय उद्देश्यों के लिए हो और एक पूर्णकालिक कर्मचारी, अधिकारी या कंपनी के निदेशक को आवंटित किया गया है जिसका सकल वार्षिक वेतन 5 लाख रु. से कम हो;
2. आवासीय या व्यापारिक मकान, आभूषण, सोना-चांदी और अन्य कीमती वस्तुएं जो व्यापार के स्टॉक के तौर पर शामिल हो सकती हैं।
3. किसी करदाता द्वारा व्यापार या व्यवसाय के लिए काम में लाए जाने वाला मकान;
4. ऐसी आवासीय संपत्ति जिसको गत वर्ष में कम से कम 300 दिनों के लिए किराये पर दिया गया हो;
5. ऐसी संपत्ति जो व्यापारिक कॉम्प्लेक्स या प्रतिष्ठान के रूप में हो;
6. मोटरकारों को किराये पर चलाने के व्यापार में प्रयोग होने वाली मोटरकारें या स्टॉक के रूप में मोटरकारें;
7. व्यापारिक उद्देश्यों के लिए उपयोग किये जाने वाले याट, नावें या हवाई जहाज;
8. शहरी भूमि जिस पर निर्माण की अनुमति नहीं है;
9. शहरी भूमि जिस पर बिल्डिंग का निर्माण उपयुक्त प्राधिकरण के अनुमोदन से किया गया हो;
10. औद्योगिक उद्देश्यों के लिए वह जमीन जो अधिग्रहण की तिथि से दो वर्षों
की अवधि तक जिस भूमि का प्रयोग न किया हो,
11. शहरी भूमि जो अधिग्रहण की तिथि से दस वर्षों की अवधि तक करदाता द्वारा व्यापार के स्टॉक के रूप में रखी गई हो।

परिसंपत्तियों का मूल्यांकन

इसका मूल्यांकन धन कर अधिनियम के अन्तर्गत किया जाता है।

ऋण/दायित्व

करदाता, द्वारा, मूल्यांकन तिथि को, करयोग्य परिसंपत्तियों के संबंध में लिये गए सभी ऋण कटौती योग्य होंगे। अतः धन कर कटौती योग्य नहीं होगा।

धन कर की दर

30 लाख रु. [A.Y. 2009 -10 के लिए 15 लाख रु.) से अधिक के शुद्ध धन पर 1% की समान दर से धन कर देय होगा।

रिटर्न दाखिल करना

धन कर के लिए बाध्य करदाता को, धन का रिटर्न दाखिल करने से पहले, देय कर निर्धारित चालान के साथ सरकारी कोष में जमा करना होगा।
           धन की रिटर्न फार्म BA में निर्धारण वर्ष 30 सितम्बर तक कर निर्धारण अधिकारी के समक्ष दाखिल करनी चाहिये । रिटर्न फार्म ठीक प्रकार से भरकर, आवश्यक दस्तावेज संलग्न कर, करदाता या उसके प्राधिकृत (कंपनी की स्थिति में उसके प्रबंधन निदेशक/निदेशक) द्वारा इस पर हस्ताक्षर तथा सत्यापित होना चाहिए।

एन.जी.ओ. और बिक्री कर

एन. जी. ओ. एक समाज विकास प्रेरित संगठन है, जो समाज को सशक्त तथा समर्थ बनाने में सहयोग करता है । अतः हम यह कह सकते है कि एन. जी. ओ. एक सेवा प्रदान करने वाले संगठन हैं। यह संगठन कुछ सामग्रियों को बेचने का कार्य भी करते हैं । यह सामग्री या तो उनके द्वारा उत्पादित की गई होती है या प्रदान की गई सेवाओं के साथ उन वस्तुओं को दिया जाता है या उनकी गतिविधियों के एक भाग के रूप में व्यापार
अन्तर्गत बेचा गया होता है। NGO द्वारा कर योग्य वस्तुओं की बिक्री पर विक्री-कर लगाया जाएगा । इनसे संबंधित महत्वपूर्ण प्रावधानों पर इस अध्याय
में संक्षेप में प्रभाव डाला गया है-

राज्यों द्वारा बिक्री कर लगाना

संविधान के अनुच्छेद 246(3) के तहत राज्य सरकारों को समाचार पत्रों को छोड़कर अन्य वस्तुओं की विक्री और खरीद पर कर लगाने के अधिकार दिये गए हैं। इस उद्देश्य के लिए सभी राज्य सरकारों ने विक्री कर/VAT अधिनियम बनाये हैं। इसके अनुसार उनके राज्य में होने वाली वस्तुओं की बिक्री पर बिक्री कर/VAT लागू किया गया है चूंकि विभिन्न राज्यों के बिक्री कर अधिनियमों के प्रावधानों में, एक ही मूलभूत सिद्धान्तों पर आधारित होने के बावजूद, वहुत अधिक मिन्नता है। यहां सभी राज्यों के अधिनियमों पर विचार करना संभव नहीं है। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 286 में यह प्रावधान किया गया है कि राज्य विधान सभाओं द्वारा अन्तर राज्य व्यापार या वाणिज्य के दौरान बेची गई वस्तुओं पर कर लगाने का निषेध है। साथ ही, राज्य से बाहर या भारत में आयात या भारत से निर्यात के दौरान बेचे गए माल पर भी कर लगाने पर निषेध है। ये सभी बिक्रियां भारत संव का विषय हैं। इस अध्याय में हम सिर्फ इन्हीं विक्रियों पर कर लगाने के बारे में अध्ययन करंगे।

संचालन अधिनियम

केन्द्रीय विक्री कर अधिनियम 1956 में ऐसे सिद्धान्तों को सूत्र बद्ध किया गया है, जो यह निश्चित करते हैं कि अन्तर-राज्य व्यापार या वाणिज्य के दौरान या किसी राज्य के बाहर या आयात और निर्यात के दौरान कब कोई बिक्री या खरीद की गई है। इस प्रकार की बिक्री पर कर लगाने, वसूल करने और उसका वितरण करने की व्यवस्था करने वाला यह अधिनियम समूचे भारत में लागू होता है और यह पाँच जनवरी 1957 से प्रभावी है। साथ ही, केन्द्रीय बिक्री कर (रजिस्ट्रेशन और टर्न ओवर) नियम, 1957 भी बनाए गए हैं ताकि इस अधिनियम के प्रावधानों को लागू करने में सुविधा रहे। रजिस्ट्रेशन, कर भुगतान, रिटर्न दाखिल करना, वैधानिक फार्म प्राप्त करना और जारी करना, कर निघर्घारण, पुनः निर्धारण करना, भूल सुधार, रकम वापसी, अपराध, जुर्माना आदि के लिए अपनाई जाने वाली प्रक्रिया आदि के संबंध में संबंधित राज्य अधिनियम में जो प्रावधान लागू हैं, वे केन्द्रीय बिक्री कर पर भी लागू होते हैं, हालांकि यह कर केन्द्रीय सरकार द्वारा लगाया जाता है तो भी, इसकी वसूली का काम संबंधित राज्य सरकारों बिक्री कर प्राधिकरण द्वारा करती

विक्रेता का अर्थ

चकि अधिनियम के आधार पर विक्री कर का भुगतान विक्रयकर्ता को ही है। जो व्यक्ति परोक्ष या अपरोक्ष दोनों में से किसी भी आधार पर नकद करना पड़ता
या उधार पर या करमीशन पर या मुआवजा लेकर या अन्य कीमत लेकर सामान खरीदने, बेचने या सप्लाई करने या वितरण करने का व्यापार करता है उसे विक्रेता कहा जाता है। निम्नलिखित व्यक्तियों को विक्रेता की श्रेणी में सम्मिलित किया जा सकता है-
1. एक स्थानीय प्रधिकरण, एक बाडी कारपोरेट, एक कम्पनी, कोई कोआपरेटिव सोसाइटी या अन्य सोसाइटी, क्लब, फर्म, हिन्दू अविभाजित परिवार या अन्य व्यक्तियों का समूह जो उप्युक्त बताया गया व्यापार करता है;
2. एक आढ़तिया (factor), दलाल, कमीशन एजेंट, डेल क्रीडीयर एजेंट (del credere agent) या अन्य मार्केटाइल एजेंट, चाहे किसी भी नाम से जाना जाये, जो किसी व्यक्ति (principal) का सामान खरीदने, बेचने, सप्लाई करने का काम करता है, चाहे उस व्यक्ति का नाम प्रकटित हो या न हो, 
3. कोई नीलामकर्ता जो किसी व्यक्ति (principal) चाहे उसका नाम प्रकटित हो या न हो, के सामान को बेचने या नीलाम करने का काम करता है, चाहे
खरीदने वाले की आफर उसके द्वारा या principal द्वारा या principal के नामित व्यक्ति द्वारा स्वीकार की गई हो।
          इसके अलावा वह व्यक्ति, जो किसी राज्य में, उस राज्य के बाहर रहने वाले विक्रेता के एजेंट के तौर पर काम करता है और राज्य में सामान खरीदता है, बेचता है, सप्लाई करता है या वितरित करता है या उस विक्रेता की ओर से मार्केटाईल एजेंट के तौर पर काम करता है या सामान या सामान के मालिकाना दस्तावेजों के प्रबंधन का काम करता है या बिक्री मूल्य की वसूली या भुगतान करने का काम करता है, इसे भी विक्रेता कहा जा सकता है। अन्य शब्दों में, कोई भी व्यक्ति जो सामान खरीदने, बेचने, सप्लाई करने या वितरित करने के व्यापार में संलग्न है, यह एक डीलर है जिसमें एजेंट और नीलामकत्ता भी शामिल हैं।

व्यापार का अर्थ

कोई व्यवसाय, वाणिज्य या उत्पादन, या कोई प्रोद्यम या फर्म जो व्यवसाय, वाणिज्य या उत्पादन की प्रकृति का हो, चाहे वह लाभ के उद्देश्य से चलाया जाए या चाहे उससे कोई लाभ या उत्पन्न ही या नहीं और सव्यवसाय, बिय उत्पादन, प्रौ्म या फर्म से संबद्ध या प्रासंगिक या सहायक कीई सेन-केन अवि की
व्यापार की संज्ञा प्रदान की जाती है ।

बिक्री का अर्थ

इसका तात्पर्य किसी सागान की मत्किय का नक्व या उधार या अन्य मूल्यवान प्रतिफल के लिए, एक व्यक्ति हावरा किसी दूसरे व्यक्ति की हस्तान्तरित करना और इसमें हायर-परचेज या किश्तों में भुगतान की प्रणाली से सामान हस्तान्तरित करना ब्रिकी विक्रय कहलाता है । लैकिन इसमें सामान गिरबी रखना (mortigage or hynotheention) या चार्ज या धरोहर रखना शागिल नहीं है| अनः कोई लेन-वेन जिसमें सामान की किसी प्रतिफल के लिए एक व्यक्ति से दरसी व्यक्ति को हरतांतरित किया जाए वह विकरी होगी। इस उद्देश्य के लिए 'सामान के अन्तर्गत सभी सामग्री, वस्तुएं, माल और सभी प्रकार की चल सम्पति शामिल हैं लेकिन इसमें समाचार पत्र, वाद योग्य दावे स्टाक, शैवर और प्रतिभूति की शामिल नहीं किया जाता है । इसके अलावा विजली भी सागान के दायरे में नहीं आती है।

अन्तर-राज्य बिकी 

बिक्री या खरीद निम्नलिखित र्थिति में अन्तर-राज्यीय गानी जाएगी-
1. यदि वह सामान का एक राज्य से किसी दूसरे राज्य में जाना उत्पन्न करती है; या
2. यदि वह सामान को एक राज्य से किसी दूरारे राज्य में जाने की दौरान मल्कियत संबंधित दस्तावेजीं की हरतांतरण से की जाती है।
           उपरोवत वलाजों के तहत खरीद और बिक्री के बीच अन्तर यह है कि पहली वलाज में सामान के हरकत में आने का काम किसी बिक्री या खरीद के करार के तहत होता है लेकिन दूसरे ब्लाज में वह करार सामान के अन्तर राज्यीय हरकत में आने के बाद लेकिन समाप्ति से पहले होता है अतः एक अन्तर राज्यीय विक्री
प्रमुख तत्व निम्नवत हैं-
1. सामान बैचने का करार; तथा
2. सामान का एक राज्य से दूसरे राज्य के लिए हरकत में आना ।
        सामान का हरकत में आना सामान बेचने के करार रे पहले हो सकता है, लेकिन यह अवश्य ही करार हो जाने के बाद समाप्त हो।

बिक्री का स्थान-अन्तर-राज्य बिक्री के सन्दर्भ में इस तथ्य को कोई प्राथमिकता प्रदान नहीं की जाती है कि वस्तु का मूल्य किस राज्य में हस्तांतरित होती अपितु किस राज्य से सामान हरकत में आता है, वही राज्य इस अधिनियम के प्रावधानों के तहत टैक्स वसूल करने के लिए सक्षम होगा।
अन्तर-राज्यीय या वाणिज्य के दौरान विवाद का निपटान करने हेतु पाधिकरण-केन्द्रीय सरकार, अधिनियम की 6A धारा या धारा 9 के तहत पड़ने
वाले अन्तर-राज्यीय विवादों का निपटान करने के लिए सरकारी गजट में एक अधिसूचना जारी करके एक प्राधिकरण का गठन करेगी जिसे "केन्द्रीय बिक्री कर
अपीलीय प्राधिकरण" के नाम से पुकारा जाएगा।

राज्य के बाहर बिक्री

यदि किसी वस्तु का क्रय-विक्रय राज्य में की जाती है तो उसे सभी राज्यों के बाहर की गई बिक्री या खरीद समझा जाएगा और बिक्री या खरीद एक राज्य के
भीतर की गई समझी जाएगी अगर सामान राज्य के भीतर हो-
1. विशिष्ट या सुनिश्चित सामान के मामले में, बिक्री का करार करते समय तथा
2. असुनिश्चित या भावी सामान के मामले में, विक्रेता या खरीदार द्वारा बिक्री के करार के तहत उस सामान के विनियोजन के समय, चाहे दूसरी पार्टी द्वारा सहमति उस विनियोजन के पहले या बाद में कभी भी दी गई हो ।
           एक राज्य के भीतर की गई बिक्री या खरीद उस राज्य के बिक्री कर अधिनियम के तहत कर योग्य होती है । राज्य के बाहर की बिक्री या खरीद
केन्द्रीय बिक्री कर अधिनियम के तहत तब तक कर योग्य नहीं होगी, जब तक सामान एक राज्य से दूसरे राज्य को भेजने के लिए हरकत में न आ
जाए।

आयात या निर्यात के दौरान बिक्री

किसी भी वस्तु का क्रय-विक्रय देश के बाहर निर्यात करने के दौरान की गई मानी जाती है यदि या तो वह ऐसे निर्यात को उत्पन्न करती हो या वह सामान के भारतीय सीमा के बाहर जाने के बाद उसकी मल्कियत के दस्तावेजों के हस्तांतरण से सम्पन्न हो।
           कोई बिक्री या खरीद देश में आयात के दौरान की गई मानी जाती है, यदि या तो वह ऐसे आयात को उत्पन्न करती हो या वह सामान के भारतीय सीमा के अन्दर आने के बाद उसकी मल्कियत के दस्तावेजों के हस्तांतरण से सम्पन्न हो।
           इस प्रकार की दोनों बिक्रियां, केन्द्रीय बिक्री कर अधिनियम के तहत और साथ ही राज्यों के बिक्री कर अधिनियमों के तहत बिक्री कर से स्वतंत्र है।

बिक्री कर के भुगतान का उत्तरदायित्व

इस अधिनियम के तहत प्रत्येक विक्रेता उसके द्वारा अन्तर-राज्यीय व्यापार या वाणिज्य के दौरान की गई बिक्री की टनोंवर पर बिक्री-कर का भुगतान के लिए
उत्तरदायी होगा।
टर्नओवर-इसका तात्पर्य यह है कि एक वर्ष के दौरान किन्हीं वस्तुओं की अन्तर-राज्यीय बिक्री मूल्य का कुल जोड़ परन्तु इसमें Jobwork, labour charges, आदि की रकम चूंकि इसमें कोई वस्तुओं की बिक्री नहीं होती, शामिल नहीं होंगे।
बिक्री मूल्य-किसी वस्तु की बिक्री का प्रतिफल, जिसमें उस वस्तु पर उसकी डिलीवरी करते समय या उससे पहले विक्रेता द्वारा किये गए काम के लिए वसूल
की गई रकम को विक्री मूल्य की संज्ञा प्रदान की जाती है, परन्तु इस मूल्य में निम्नतिखित मूल्यों को शामिल नहीं किया जायेगा-
1. सामान्य व्यापारिक चलन के बतौर दी गयी नकद छूट और
2. किराये भाड़े या डिलीवरी या संस्थापना का खर्च, यदि पृथक रूप से चार्ज किया गया हो।
कर-योग्य टर्न ओवर'-किसी डीलर की कर योग्य टर्न ओवर निश्चित करने के लिए सकल टर्न ओवर से निम्नलिखित कटौतियां की जाती हैं-
1. बिक्री कर के रूप में एकत्रित की गई रकम, निम्न फार्मूले से निश्चित की गई-
कर दर x बिक्री मूल्य की सकल राशि (Aggregate)/ 100 + कर की दर
2. डिलीवरी की तारीख से छः महीने की अवधि के भीतर लौटाया गया विक्रय मूल्य ।

एन.जी.ओ. और सेवा कर

गैर-सरकारी संगठनों का प्रमुख कार्य लोगों को सेवा प्रदान करना है। धमर्थ के कार्यों में भी यह संगठन अपनी सेवा प्रदान करता है। लोगों को सेवाएं देने के
लिए विभिन्न स्रोतों से यह संगठन धन एकत्रित करता है। विभिन्न कार्यक्रमों के संचालन के लिए धन का एकत्रीकरण भी करता है। NGO जो भी कर-योग्य सेवा परदान करेंगे, उस पर सवा कर लगाया जाएगा।

सेवा कर कानून और प्रशासन

भारत में सर्वप्रथम सेवा कर 1994 में लागू किया गया था प्रारम्भ में यह कर मिर्फ तीन सेवाओं पर लगाया गया था और बाद में धीरे-धीरे लगभग 108 सेवाओं तक इसका विस्तार हो गया है। वित्त (नं.2) अधिनियम, 2009 में कुछ वर्तमान करयोग्य सेवाओं का दायरा बढ़ाने के अतिरिक्त, 6 नई सेवाओं पर भी कर लगाने और उसे एकत्रित करने के बारे में मूल कानून और प्रक्रिया संबंधी ढांचा उल्लिखित किया गया है। केन्द्रीय उत्पाद शुल्क विभाग, सेवा कर का प्रशासनिक कार्य करता है।

कर-योग्य सेवाएं

सेवा कर कानून के अन्तर्गत सेवा कर लगभग 108 सेवाओं पर वसूल किया जाता है । NGO द्वारा प्रदान की जाने वाली सेवाओं के संबंध में सेवा कर निम्नलिखित कर-योग्य सेवाओं पर लागू किया जा सकता है-
1. मंडप के प्रयोग और इस संबंध में किसी व्यक्ति को प्रदान की गई सुविधाओं से संबद्ध मंडप धारक की सेवाएं और एक केटरर के रूप में दी गई सेवाएं, यदि कोई हों (कोई सामाजिक, कार्यालयी या व्यापारिक समारोह या नृत्य, नाटक यासंगीत के कार्यक्रम या प्रतियोगिता आयोजित करने के लिए शादी के हॉल, खेलकूद के स्टेडियम आदि उपलब्ध कराने साहित) और मन्दिर, गिरजाघर आदि के परिसर में स्थित मंडप।
2. किसी उत्पाद, सेवा या सुविधा के सम्बंध में मार्केट अनुसंधान से जुड़ी किसी मार्केट अनुसंधान एजेंसी की सेवाएं, किसी व्यकित को दी गई customized
और syndicated अनुसंधान सेवा सहित ।
3. फैशन डिजाइनिंग सेवा, अर्थात वेश-भूषा, पोशाक, परिधान, वस्त्रों के उपसाधन, आभूषण आदि के लिए संकल्पना बनाना, रूपरेखा बनाना और अन्य
आकस्मिक सेवाएं।
4. हैल्थ क्लब और फिटनेस केन्द्र जिनमें सॉना और स्टीम बाथ, टर्किश बाथ, सोलेरियम, स्पास, मोटापा कम करने के सेलून, जिमनास्यिम योग, ध्यान, मसाज
(थरापीटिक मसाज शामिल नहीं हैं) या अन्य कोई समान सेवाएं दी जाती है।
5. वस्तुओं जिनमें तरल और गैस शामिल है लेकिन कृषि उत्पाद और कोल्ड स्टोरेज को शामिल नहीं किया गया है, के स्टोरेज और वेयर हाउसिंग की सेवाएं।
6. दक्षता या ज्ञान या खेलकूद को छोड़कर अन्य किसी बिषय या क्षेत्र पर पाठ प्रदान करने के लिए व्यावसायिक प्रशिक्षण या कोचिंग सेवाएं, जिनमें कोचिंग या टयूटोरियल क्लासें शामिल हैं।
7. किसी वस्तु या सेवा को मार्किट करने, प्रचारित करने, विज्ञापित करने या प्रदर्शन करने के लिए प्रदर्शनी, जिसका उद्देश्य उस वस्तु या सेवा के उत्पादक
या प्रदानकर्ता, जैसा भी मामला हो, के व्यापार का विकास हो, के संबंध में व्यापारिक प्रदर्शनी सेवाएं की जाती हैं ।
8. ओपीनियन पोल सेवाएं, जिनके द्वारा सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक या अन्य समस्याओं के संबंध में जनता के विचारों को प्राप्त किया जाता है।
9. क्लब या एसोसिएशन द्वारा दी जाने वाली सेवाएं
           क्लब या एसोसिएशन का अर्थ है एक व्यक्ति या व्यक्तियों का एक समूह, जो अपने सदस्यों को, चंदा या शुल्क या कोई अन्य राशि लेकर सेवाएं, सुविधाएं या लाभ पहुँचाता है। इन सेवाओं में निम्नलिखित सेवाओं को सम्मिलित नहीं किया
गया है-
(i) किसी कानून के तहत या उसके द्वारा स्थापित या गठित कोई निकाय,
(ii) कोई निकाय या व्यक्तियों का एक समूह जो ट्रेड यूनियन गतिविधियों, कृषि, बागवानी या पशु-पालन के विकास का काम करता हो;
(iii) कोई व्यक्ति या व्यक्तियों का एक समूह जो किसी ऐसी गतिविधि में संलग्न हो, जिसके उद्देश्य जन सेवा के हों और धर्मार्थ, धार्मिक या राजनीतिक प्रकार
के हो या
(iv) कोई व्यक्ति या व्यक्तियों के समूह जो प्रेस या मीडिया से सम्बद्ध हो ।
10. किसी अचल सम्पत्ति को, पूर्ण या आंशिक रूप से किसी व्यापारिक प्रयोग के लिए (फैक्ट्री, दफ्तर, गोदाम, थियेटर, प्रदर्शनी हाल और विविध प्रयोग भवनों सहित) किराये पर (पट्टे, लाइसेंस आदि सहित) देना । परन्तु, किसी धार्मिक निकाय द्वारा या किसी धार्मिक निकाय को अचल सम्पत्ति किराये पर देना और किसी शैक्षिक निकाय को किराये पर देना
कर मुक्त रहेगा।
           यह स्पष्ट किया गया है कि अचल सम्पत्ति को किराये पर देने की सेवा में, अचल सम्पत्ति में किसी स्थान के उपयोग की अनुमति या स्वीकृति देना, चाहे उस अचल सम्पत्ति का कब्जा या नियंत्रण हर्तातरित नहीं किया गया हो, शामिल होगा। अतः, malls और अन्य व्यावसायिक या गैर-व्यावसायिक भवनों में स्थापित करने लिए स्वीकृत और भवनों पर दूरसंचार खड़े करने के रूप में अथल सम्पत्ति का प्रयोग भी इस सैवा में शामिल होगा।
           (11) विमर्श, सलाह या तकनीकी सहायता कानून सेवा (किसी न्यायालय संबैधानिक प्राधिकरण के समक्ष प्रस्तुत होने की सेवा को छोड़कर) । सेवा तभी करयोग्य होगी जब किसी व्यापारिक इकाई द्वारा दी गई हो जैसे व्यक्तियों के यक्तियों की निकाय कंपनी या फर्म, परन्तु Individual को छोड़कर।
           (12) कांतिवद्द्धक और शल्यक्रिया जो शारीरिक रूप-रंग या सुंदरता के क्षेत्र में की गई हो।

कर-योग्य सेवा का मूल्य 

कर योग्य सेवा मूल्य का निर्धारण वस्तुओं के आधार पर किया जाता है। सामान्यतया, किसी कर-योग्य सेवा के संबंध में जिस मूल्य पर सेवा कर देय होता
है, वह सेवा प्रदान करने वाले द्वारा ग्राहक से वसूल की गई सकल रकम होती है। NGO द्वारा प्रदान की गई सेवाओं के संबंध में, कर-योग्य मूल्य इस प्रकार
होगा। 
(1) मंडप धारक-मंडप धारक द्वारा प्रदान की गई कर योग्य सेवा का मूल्य मंडप के प्रयोग के लिए वसूल की गई सकल रकम होगी जिसमें उसके इस्तेमाल के संबंध में दी गई सुविधाओं और केटरिंग, यदि कोई हो, के दाम भी शामिल होंगे। इस तरह मंडप के किराये के अतिरिक्त, बिजली का मूल्य (वास्तविक खर्च के आधार पर या अन्यथा) और फर्नीचर, फिक्चर, लाइट फिटिंग, बर्तन, क्राकरी, कटलरी आदि प्रदान करने के चार्ज भी सेवा कर लगाने योग्य होंगे। भले ही अलग बिल जारी किए जाएं, सेवा कर समूची रकम पर लगाया जाएगा।
           कर योग्य सेवा के मूल्य में से वैधानिक कर, जैसे कि बिक्री कर, व्यय कर आदि निकाल दिए जाएंगे।
           यदि मंडप की बुकिंग बाद में रद्द कर दी जाती है तो कोई सेवा कर नहीं लगाया जाएगा।
           यदि मंडप धारक केटरिंग सेवाएं भी प्रदान करता है, खाद्य सामग्री की सप्लाई, तो कर योग्य सेवा का मूल्य वसुल की गई सकल राशि का 60% होगा बशर्ते कि इनपुट और कैपिटल गुड्स पर भुगतान की गई इयूटी का क्रेडिट न लिया गया हो न ही तारीख 20 जून 2003 की अघिसूचना सं. दिसंबर, 2003-ST के लाभ उठाए हों।
           अगर कोई विवाह भवन (हाल) धर प्राप्त करने या धन के उद्देश्य से न दिया गया हो, अन्यथा दिया गया हो, उस भवन पर किसी प्रकार का कर नहीं लगाया जाएगा।
           कर का भुगतान बुकिंग करते समय नहीं किया जाएगा बल्कि बिल की प्राप्त करते समय किया जाएगा।
(२) मार्केट रिसर्च एजेंसी-किसी ग्राहक को किसी मार्केट रिसर्च एजेंसी द्वारा प्रदान की गई सेवा से संबंधित कर-योग्य सेवा का मूल्य उस एजेंसी द्वारा, किसी उत्पाद, सेवा या सुविधा के मार्किट अनुसंधान के संबंध में प्रदान की गई सेवाओं के लिए ग्राहक से वसूली गई सकल राशि होगी।
(३) फैशन डिजाइनिंग सेवा-कर-योग्य सेवा का मूल्य फैशन डिजाइन द्वारा ग्राहकों से सेवाओं के लिए ली गई सकल राशि होगी।
           फैशन डिजाइनर मांगी गई वस्तुओं के अनुसार डिजाइन देकर इसका निर्माण करते हैं और गारमेंटस तैयार करने और डिजाइनिंग के लिए एकमुश्त चार्ज कर लेते हैं। यह स्पष्ट किया गया है कि सेवा कर के दायरे में सिर्फ फैशन डिजाइनिंग सेवा ही आती है, गारमेंट तैयार करना कर के क्षेत्र से बाहर है। अतः सेवा कर सिर्फ डिजाइनिंग शुल्क पर ही लगाया जाएगा बशर्ते कि फैशन डिजाइनर डिजाइनिंग और गारमेंट बनाने के शुल्क बिल में अलग-अलग दिखाता है। फिर भी, यह भी स्पष्ट कर दिया गया है कि अगर फैशन डिजाइनर कोई वस्तु अपने लिए डिजाइन करता
है और उन वस्तुओं जैसे गारमेंट्स को तैयार करके बेचता है तो ऐसी स्थिति में डिजाइनिंग सेवा डिजाइनर ने अपने लिए दी है, इसलिए इस पर कर नहीं लगाया
रकम जाएगा।
           ऐसा भी होता है जब फैशन डिजाइनर ग्राहक की माँग के अनुसार सिलाई का भी कार्य करता है। ऐसे मामलों में फैशन डिजाइनर अगर बिल में फैशन
डिजाइनिंग के चार्ज अलग से दिखाता है, तो वह केवल डिजाइनिंग सेवा पर सेवा कर देने के लिए जिम्मेदार है। अगर, डिजाइनिंग चार्ज और सिलाई के चार्ज बिल में एकमुश्त दिखाए जाते हैं, तो सेवा कर समूची रकम पर लगाया जाएगा।
(४) हैल्थ क्लब और फिटनेस केन्द्र-हैल्थ क्लब तथा फिटनेस केन्द्र और ग्राहकों को स्वास्थ्य एवं फिटनेस के लिए जो सेवाएं प्रदान करते हैं, उनके लिए ग्राहकों से जो रकम चार्ज करते हैं, सेवा कर उस सकल मूल्य पर चार्ज किया जाएगा। क्लब और फिटनेस केन्द्र सदस्यता शुल्क के तौर पर काई मासिक/आवधिक
रकम चार्ज करते हैं और सदस्य उनकी सेवाओं का लाभ उठा सकते हैं, तो यह स्पष्टि यया गया है कि अगर क्लब अपने द्वारा प्रदान की गई सेवा के बदले में सदस्यता आকक चार्ज करता है तो ऐसे मामले में सेवा कर उस आवधिक/मासिक सदस्यता के अनुसार लिया जाएगा।
(५) स्टोरेज और वेयर हाउसिंग सेवा-स्टोरेज और वेयर हाउस धारक इस
संबंध में जो सेवाएं प्रदान करते हैं उनके लिए जो सकल रकम चार्ज की जाती है,
वह कर-योग्य सेवा का मूल्य होगा।
(६) ट्रेनिंग और कोचिंग सेवा- करमर्शियल ट्रेनिंग या कोचिंग केन्द्र किसी व्यक्ति को कमर्शियल ट्रनिंग या कोचिंग सेवाएं प्रदान करने के लिए जो सकल
रकम चार्ज करते हैं।
(७) व्यापार प्रदर्शनी सेवा-व्यापार प्रदर्शनी के व्यवस्थापक द्वारा प्रदर्शक से सेवाओं के लिए जो सकल रकम चार्ज की जाती है, वह कर-योग्य सेवा का मूल्य होगा।
(८) ओपीनियन पोल सेवा-ओपीनियन पोल सेवाओं के लिए चार्ज की गई सकल रकम कर-योग्य सेवा का मूल्य होगा।
(९) क्लब या एसोसिएशन सेवा-कर योग्य सेवा का मूल्य क्लब या एसोसिएशन द्वारा प्रदान की गई सेवाओं के लिए चार्ज की गई कुल रकम होगी।
(१०) अचल सम्पत्ति को किराये पर देना-कर-योग्य सेवा का मूल्य किराये के लिए चार्ज की गई सकल कुल रकम होगी।
(११) परामर्श की कानून सेवा-कानून की किसी भी शाखा में सलाह, परामर्श या सहायता के संबंध में सेवा प्रदाता द्वारा वसूली गई सकल रकम कर-योग्य सेवा का मूल्य होगी।
(१२) कांतिवद्द्धक और प्लास्टिक शल्यक्रिया-इसके संबंध में वसूली गई कुल रकम कर-योग्य सेवा का मूल्य होगी।

वस्तुओं और सामग्री के मूल्य पर कोई सेवा नहीं

वस्तुओं और सामग्री के मूल्य पर किसी प्रकार का सेवा कर नहीं लिया जायेगा सेवा प्रदान करने वाला, उन सेवाओं को प्राप्त करने वाले को, सेवाएं प्रदान करने के दौरान यदि कोई वस्तुएं और सामग्री बेचता है तो उनका मूल्य सेवा कर से मुक्त होगा।
           जहां उन वस्तुओं की बिक्री स्पष्ट रूप से दिखाई जाती है वहीं पर यह छूट़ दी जाएगी और उसकी संख्या और मूल्य बिल में अलग से दिखाया जाता है ।
           इसके अतिरिक्त, यह छूट इस शर्त पर उपलब्ध होगी कि या तो उन वर्तुओं पर कोई क्रेडिट नहीं लिया गया है और यदि लिया भी गया हो तो उन वर्तुओं की
बिक्री से पहले इस क्रेडिट को रिवर्स कर दिया गया है।
           इसका भी उल्लेख किया गया है कि कमर्शियल ट्रैनिंग और कीचिंग संस्थानी के मामले में यह छूट सिर्फ मानक पाठ्य पुस्तकों, जिन पर कीमत लिखी है, के विक्री मूल्य पर लागू होगी। ऐसा संस्थान यदि कोई पाठन सामग्री या लिखित पाठ सेवा के भाग के रूप में प्रदान करता है तो जो ऊपर बताए मानक को संतुष्ट नहीं करता, उस पर सेवा कर लगाया जायेगा

1 अप्रैल 2008 से 10 लाख रुपये की मौलिक छूट

1 अप्रैल 2008 से सेवा प्रदान करने वाला व्यक्ति एक वित्तीय वर्ष में सभी कर-योग्य सेवाओं के सकल मूल्य में से 10 लाख रुपये तक की छूट प्राप्त करने का पात्र है, अगर सभी कर-योग्य सेवाओं का सकल मूल्य (छूट प्राप्त रकमौं को छोड़कर) पूर्ववर्ती वित्तीय वर्ष में 10 लाख रुपये से अधिक नहीं था, परन्तु इसके लिए निर्धारित शर्तों को भी पूरा करना आवश्यक है। 31 मार्च 2008 तक यह सीमा 8 लाख रुपये थी।

सेवा कर की दर 

वस्तुओं पर लगाई जाने वाली सेवा कर की दर वस्तुओं के मूल्य का दंस प्रतिशत होगी। इसके अलावा सेवा कर की रकम पर 2% शिक्षा उपकर तथा 1% की दर से माध्यमिक और उच्च शिक्षा उपकर भी लगाया जाएगा। इस प्रकार, सवा कर 10.3% की दर पर लगाया और वसूल किया जाएगा।

एन.जी.ओ. के लिए आयकर में छूट

गैर-सरकारी संगठन कई प्रकार के हो सकते हैं जैसे-सोसाइटी, ट्रस्ट और सेक्सन 25 के तहत निर्मित लाइसेंस प्राप्त एक कंपनी या एसोसिएशन । ऐसे एन.
जी.ओ. दान, सदस्यों के अंशदान या उनके अधिकार में जो सम्पत्ति हो, उनसे प्राप्त आय आदि के माध्यम से आय प्राप्त करते हैं। अतः एन.जी.ओ. अपनी आय पर
कर देने के लिए बाध्य हैं और इन्हें एक व्यक्तियों के समूह की स्थिति में मानकर निर्धारण किया जाता है।

एन.जी.ओ. की आय के स्रोतों 

एन.जी.ओ. को कई स्रोतों से आय प्राप्त होती है। कुछ प्रमुख स्रोतों को निम्न प्रकार स्पष्ट किया गया है-
1. सदस्यों द्वारा चन्दे के रूप में दी गई राशि, 
2. सदस्यों और अन्य द्वारा दिया गया स्वैच्छिक अंशदान, जिसमें ट्रस्ट या संस्थान के कार्पस के लिए दिया गया दान भी शामिल है,
3. टस्ट के अन्तर्गत धारण की हुई सम्पत्ति से आय (इसमें ट्रस्ट द्वारा धारण किये गए किसी व्यापार की आय भी शामिल है),
4. ट्रस्ट की सम्पत्ति के हस्तांतरण पर पूंजीगत लाभ,
5. संगठन द्वारा चलाये जाने वाले किसी व्यापार से आय, जो संगठन के उद्देश्यों से प्रासंगिक हो,
6. संगठन द्वारा चलाये जाने वाले किसी भी अन्य व्यापार से आय।

एन.जी.ओ. के लिए आयकर से छूट

आयकर अधिनियम में एन.जी.ओ के लिए आयकर में छूट संबंधी प्रावधान किये गये हैं। आयकर अधिनियम की धारा 11, 12, 12A और 13 में एन.जी. ओ. की आय, धर्मार्थ या धार्मिक उद्देश्यों के लिए धारण की गई सम्पत्ति से आय सहित, पर छूट प्रदान करते हैं। इसके अतिरिक्त जो ट्रस्ट या संस्थान, कुछ विशिष्ट प्रकार की गतिविधियों या धर्मार्थ प्रकार के व्यवसाय करते हैं, उनकी आय पर भी कर में छूट का प्रावधान है, वह छूट धारा 10 के कुछ खण्डों में उल्लिखित ही ।

धारा 11 और 12 के तहत आयकर से छूट

धारा 11 में यह प्रावधान किया गया है कि जो आय, लाभ या उपलब्धि, किसी ट्रस्ट या अन्य कानूनी जिम्मेदारी के अन्तर्गत धारण की गई सम्पत्ति, जो पूर्णतया धार्मिक उद्देश्यों के लिए रखी गई हो, (या उसका कोई भाग उस उ६देश्य के लिए धारण किया गया हो), से प्राप्त हुई हो, वह आय आदि अगर
धर्मार्थ आदि उद्देश्यों के लिए प्रयोग में लाई जाती है या जमा की जाती है तो बह उस ट्रस्ट या संगठन की कल आय में शामिल नहीं की जाएगी। लेकिन इस प्रकार की छूट हेतु कुछ विशेष परिस्थितियाँ होती हैं और कुछ शर्तों को पूरा करना होता है।

ट्रस्ट के अधीन धारण की गयी सम्पत्ति से आय

           आय प्राप्त करने का एक माध्यम ट्रस्ट के अधीन धारण की गई सम्पत्ति भी है। इसके तहत शामिल मदों को निम्न प्रकार स्पष्ट किया गया है-
1. पूर्णतया धर्मार्थ या धार्मिक ट्रस्ट प्राप्त किए गए स्वैच्छिक अंशदान (इनमें कार्पस डोनेशन शामिल नहीं हैं)।
2. जो धर्मार्थ या धार्मिक ट्रस्ट एक अस्पताल या चिकित्सा संस्थान चलाते हैं या कोई शैक्षिक संस्थान चलाते हैं, वे अगर धारा 13(3) में उल्लिखित व्यक्तियों
को चिकित्सा संबंधी या शिक्षा संबंधी सेवाएं , निःशुल्क या कम शुल्क पर उपलब्ध कराते हैं तो उनका मूल्य हालांकि यह कर योग्य आया के रूप में समझा जाएगा, यह रकम धारा 11 के अन्तर्गत छूट के लिए मान्य नहीं है। 
3. गुजरात में भूकम्प पीड़ितों को राहत देने के लिए स्थापित की गई ट्रस्ट या संस्थाओं द्वारा प्राप्त दान जिनसे संबंधित आय और व्यय के खाते निर्धारित
तरीके से निर्धारित प्राधिकरण को यदि नहीं भेजे गए हों या जिन रकमों का प्रयोग किसी अन्य उद्देश्य के लिए किया गया हो या जो बिना प्रयोग के बाकी
पड़े हों और जिन्हें 31 मार्च, 2004 तक या इससे पहले प्रधानमंत्री राष्ट्रीय राहत कोष में जमा नहीं करा दिया गया हो, ऐसी रकम को गत वर्ष की कर-योग्य आय के रूप में माना जाएगा।

ट्रस्ट के अधीन सम्पत्ति का आय

धारा 11 में उल्लेखित सम्पत्ति शब्द का अर्थ बहुत ही व्यापक है। इसकेअन्तर्गत एक व्यापारिक कारोबार भी आता है जिसमें चल और अचल दोनोंप्रकार की सम्पत्ति शामिल है, जैसे कि धन, शेयर, प्रतिभूतियां, भूमि , भवन और मकान। इसके दायरे में किसी पार्टनरशिप फर्म में भागीदारी की भी संभावना
रहती है।
धारा 11 (1) के लाभ का दावा करने से पहले सम्पत्ति का ट्रस्ट के अधीन होना अनिवार्य है अर्थात् सम्पत्ति के मागले में ट्रस्ट की प्रक्रिया को पूरा कर लेना
अनिवार्य है। दूसरे शब्दों में सम्पत्ति के संबंध में ट्रस्ट की रचना करने के निमित्त कानून के मुताबिक जिन औपचारिकताओं को पूरा करना अनिवार्य है, उन्हें अवश्य पूरा कर लिया जाए। अचल सम्पत्ति के मामले में ट्रस्ट के कागजात विधिवत रजिस्टर करा लिए जाने चाहिए। जिन परिस्थितियों में कोई अचल सम्पत्ति ट्रस्ट के नाम हस्तांतरित नहीं की जाती, उनमें एक ट्रस्ट की घोषणा और पुष्टि का दस्तावेज पर्याप्त होगा जिसमें द्रस्टी धन की प्राप्ति, उससे अधिग्रहण की गई सम्पत्ति और धर्मार्थ परेश्य के लिए उस धन को धारण किया जाता है, इन सबका स्पष्टीकरण होगा।

ध्गार्थ उद्देश्य का आशय

गरीब लोगों को राहत, शिक्षा, चिकित्सा सहायता, पर्यावरण, (जल स्रोतों, जंगलों और जंगली जीव-जन्तुओं सहित) संरक्षण और कलात्मक अथवा ऐतिहासिक महत्व की इमारतों या स्थानों या वस्तुओं का सरक्षण और जन सामान्य के उपयोग के किसी भी अन्य उद्देश्य को विकसित करना आदि धर्मार्थ कार्य के
प्रमुख उद्देश्य होते हैं। किसी उद्देश्य के धर्मर्थ होने के लिए यह आवश्यक है कि वह समुदाय या समुदाय के किसी एक वर्ग के हितों के लिए हो न कि किसी व्यक्ति या व्यक्तियों के समूह (ग्रुप) के हितों के लिए हो। व्यक्तिगत लाभ व स्वार्थ की पूर्ति के उद्देश्य से स्थापित ट्रस्ट को धर्मार्थ ट्रस्ट नहीं कहा जा सकता है।
           धारा 2 (15 ) में 6 प्रकार के धर्मार्थ उद्देश्य बतलाये गये हैं जो निम्नलिख्ति

1. गरीबों को राहत,
2. शिक्षा,
3. चिकित्सा सहायता,
4. पर्यावरण सरंक्षण,
5. कलात्मक/ऐतिहासिक इमारतों, स्थानों या वस्तुओं का संरक्षण और
6. आम जनता को लाभ देने का अन्य उद्देश्य ।।
           हालांकि यह बात ध्यान देने योग्य है कि 1 अप्रैल 2009 से किसी शुल्क या फीस का कोई अन्य प्रतिफल के लिए व्यावसायिक आधार पर की जाने वाली किसी गतिविधि को आम जनता को लाभ देने वाला उद्देश्य नहीं माना जाएगा, यदि ऐसेी गतिविधि से होने वाली कुल प्राप्तियां एक गत वर्ष के दौरान 10 लाख रुपये से अधिक हो, इस बात को ध्यान में रखे बिना कि ऐसी गतिविधि से होने वाली आय
का उपयोग या संग्रहण ट्रस्ट के उद्देश्यों के लिये किया गया है।
           धर्मार्थ उद्देश्य के तहत शिक्षा, साहित्य या ललित कला के प्रसार कार्य को भी शामिल किया गया है। शिक्षा के मामले में यह जरूरी नहीं है कि बह गरीबों के लिए हो, बल्कि यह धनी लोगों के लिए भी हो सकती है। शिक्षा के अन्तर्गत व्यावसायिक शिक्षा, उच्च शिक्षा और तकनीकी शिक्षा शामिल है । अतः पूर्णतया कानूनी शिक्षा के लिए धारण किए गए निवेश से होने वाली बार काउंसिल की आय को कर लगाने योग्य नहीं माना गया तो भी सर्वोच्च न्यायालय ने 'शिक्षा' शब्द के अर्थ में सामान्य स्कूली शिक्षा के द्वारा विद्यार्थियों के ज्ञान, दक्षता, मन:शक्ति और चरित्र संबंधी प्रशिक्षण और संवर्धन तक ही सीमित रखा है।
           यदि किसी रोगी को किसी कारणवश चिकित्सा नहीं मिल पा रही है तो उसको चिकित्सा सहायता देना भी धर्मार्थ उद्देश्य है। चिकित्सा सहायता का यह अर्थ नहीं है कि सभी मरीजों का मुफ्त इलाज किया जाए या रियायती दरों पर किया जाए। धरमर्थ उद्देश्य के लिए एक अस्पताल स्थापित किया जा सकता है।हालांकि अपनी जरूरत के लिए धन की व्यवस्था करने के उद्देश्य से अस्पताल में मरीजों के लिए विशेष वार्ड भी बनाए जाते हैं जहां मरीज अपने उपचार का पूरा खर्च देते हैं।
           धर्मार्थ उद्देश्य के तहत वह कार्य भी शामिल है कि जो आम जनता के लाभ के लिये किया गया है। जन सामान्य के उपयोग के किसी भी अन्य उद्देश्य को
विकसित करने में प्रत्यक्षतः वे सभी उद्देश्य आते हैं जो आम जनता के कल्याण को बढ़ावा देते हैं। परन्तु यह जरूरी नहीं है कि वह ऐसा ही जिसमें समस्त जनता रुचि रखती हो। इतना ही पर्याप्त होगा कि वह उद्देश्य जनता के किसी एक वर्ग को लाभ पहुंचाता हो न कि कुछ विशिष्ट व्यक्तियों को।
           एक अप्रैल सन् 2009 से जन सामान्य के लिए उपयोगी किसी भी अन्य उद्देश्य को विकसित करने के उद्देश्य को धर्मार्थ नहीं माना जाएगा, यदि इसमें दो प्रमुख गतिविधियां शामिल हों-व्यवसाय, वाणिज्य या व्यापार की प्रकृति वाली कोई गतिविधि या किसी व्यवसाय वाणिज्य या व्यापार के संबंध में कोई सेवा प्रदान करने की कोई गतिविधि, जो कि फीस या शुल्क या अन्य प्रतिफल के लिए की गई हो, संबंद्ध संस्था द्वारा ऐसी गतिविधि से होने वाली आय के उपयोग या रखने की प्रकृति को ध्यान में रखे बिना, यह शर्त गरीबों को राहत, शिक्षा, चिकित्सा सहातया, पर्यावरण संरक्षण और कलात्मक/ऐतिहासिक
जगहों/वस्तुओं/इमारतों के सरंक्षण वाले उद्देश्यों के संदर्भ में लागू नहीं होगी। इसके अलावा, यदि ऐसी (व्यावसायिक प्रकृति की) गतिविधियों से होने वाली कुछ प्राप्तियां, एक गत वर्ष के दौरान 10 लाख रुपये से अधिक न हो तो भी यह शर्त प्रभावहीन रहेगी। तत्पश्चात् यह भी निर्णय दिया गया है कि धर्मार्थ उद्देश्य के अन्तर्गत धार्मिक उद्देश्य भी आते हैं, अतः धर्म के विकास के लिए ट्रस्ट भी धर्मार्थ उद्देश्यों के लिए ट्रस्ट में आता है ।

धार्मिक उद्देश्य का आशय

धार्मिक उद्देश्य का आश्य उस उद्देश्य से है जो किसी धर्म विशेष के लिये निध रित हो। धर्म से तात्पर्य है व्यक्तियों में या समुदायों में एक आस्था (निष्ठा) और
यह जरूरी नहीं कि वह ईश्वरवादी ही हो। धर्म का मूल आधार विश्वास और सिद्धान्तों की प्रक्रिया में निहित है, परन्तु यह कहना ठीक नहीं होगा कि धर्म सिर्फ
एक सिद्धान्त या विश्वास ही है। 
           धार्मिक उद्देश्य के तहत किसी एक धर्म और उसको अभिमत के विकास, समर्थन या प्रसार की व्यवस्था करने को शामिल किया गया है। एक धार्मिक ट्रस्ट या संस्थान की आय कर से छूट प्राप्त करने के लिए है, भले ही वह ट्रस्ट या संस्थान किसी एक विशेष धार्मिक समुदाय या जाति के लाभ का कार्य करता हो। इसके बाद भी धारा 11 के अन्तर्गत छूट सिर्फ सार्वजनिक धार्मिक ट्रस्ट के लिए ही सीमित है, किसी निजी धार्मिक उद्देश्य के लिए धारित सम्पत्ति से आय जो सार्वजनिक लाभ के लिए न को छूट नहीं मिलती।

व्यापार करने वाले धर्मार्थ ट्रस्ट 

कुछ धार्मिक ट्रस्ट अपनी आर्थिक स्थिति सुदृढ़ रखने के लिए व्यापार भी करते हैं। एक चैरिटेबल ट्रस्ट किसी भी सम्पत्ति, व्यापारिक उपक्रम सहित, के संबंध में स्थापित किया जा सकता है। ऐसे व्यापार से प्राप्त हुई आय भी छूट के योग्य है बशर्ते कि धारा 11 व 12 की अन्य शर्तें पूरी उतरती हों ।
           इस तरह से व्यापार की आय अधिनियम के प्रावधानों, अर्थात् धारा 28 से 44 D तक के अनुसार निश्चित की जाएगी। जहां अधिकारी द्वारा निर्धारित ऐसे व्यापार आय, खातों में दिखाई गई आय से अधिक पाई जाती है तो ऐसा समझा जाएगा कि इस प्रकार की अधिक आय का प्रयोग गैर-धर्मार्थ या गैर-धार्मिक उद्देश्यों के लिए किया गया है और यह अधिक आय धारा 11 के तहत छूट नहीं प्राप्त कर सकती।
           धर्मार्थ उद्देश्यों के लिए ट्रस्ट द्वारा धारण किये गये किसी व्यापार से प्राप्त होने वाली आय सैक्शन 11 के अन्तर्गत कर में छूट प्राप्त होगी जब वह व्यापार ट्रस्ट के उद्देश्यों को प्राप्त करने से जुड़ा हो और इसके लिए उस व्यापार संबंधी खाते अलग रख गए हो। उदाहरण के तौर पर, अगर कोई धर्मार्थ ट्रस्ट चिकित्सा सहायता के लिए काम करता है तो दवाइयों का उत्पादन, डिस्पेंशरी या अस्पताल चलाना या नर्िंग
हीम चलाना आदि को ट्रस्ट के उद्देश्यों की पूर्ति के लिए चलाये जाने वाला व्यापार माना जाएगा। शिक्षा संबंधी ट्रस्ट के मामले में, पुस्तकों की प्रिटिंग और प्रकाशन के
व्यापार को ट्रस्ट के उद्देश्यों की पूर्ति के लिए चलाये जाने वाला व्यापार गाना जाएगा। इसी प्रकार खेल कूद के विकास के लिए वनाए गए ट्रस्ट के मागले में, खेल कूद के सामान के उत्पादन के व्यापार को ट्रस्ट के उद्देश्यों की पूर्ति के लिए चलाए जाने वाला व्यापार माना जाएगा ऐसी ही व्यवस्था सभी ट्रस्टों के लिए हीगी।
           Asst. CITVS. Thanthi Trust के मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने यह निर्णय दिया है कि किसी ट्रस्ट या इंस्टीट्यूशन के व्यापार की आय को कर से छूट प्राप्त करने के लिए सबसे बड़ी आवश्यकता यह है कि वह व्यापार ट्रस्ट या इस्टीटूयूशन के उद्देश्यों की पूर्ति में प्रासंगिक हो । DIT vs, Bharat Dimond Bourse के मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने यह निर्णय दिया है कि अगर किसी इंस्टीटूयूशन का मुख्य या प्रधान प्रभावकारी उद्देश्य धर्मार्थ है और दूसरा कोई अन्य उद्देश्य धर्मार्थ नहीं भी है, परन्तु वह मुख्य या प्रधान प्रभावकारी उद्देश्यों से जुड़ा हुआ गीण या आकसिमिक है तो उस इंस्टीट्यूशन की धर्मार्थता निर्बाध्य रूप से स्वीकार की जा सकती है। यह ध्यान रखना आवश्यक होगा कि एक अप्रैल 2009 से, आम जनता के उपयोग के किसी अन्य उद्देश्य को विकसित करने के उद्देश्य (धारा 2 (15) के अंतर्गत) के लिए बनाए गए किसी ट्रस्ट को धर्मार्थ नहीं माना जाएगा, यदि वह किसी शुल्क या फीस या अन्य प्रतिफल पर व्यावसायिक तौर पर किसी गतिविधि में संलग्न है। ऐसी स्थिति में ट्रस्ट की कोई भी आय छूट के लिए मान्य नहीं होगी।

आंशिक रूप से धर्मार्थ उद्देश्यों के लिए ट्रस्ट

सर्वोच्च न्यायालय अनुसार किसी सम्पत्ति को पूरे तीर पर और आंशिक रूप में धर्मर्थ और धार्मिक उद्देश्यों के लिए ट्रस्ट द्वारा धारण करने के बीच अंतर इस आधार पर नहीं है कि वह सम्पत्ति पूरी की पूरी या उसका एक भाग धर्मार्थ समर्पित किया गया है, बल्कि यह उस सभ्पत्ति के पूरी तरह धर्मार्थ या धार्मिक उद्देश्यों के लिए होना या उसके कुछ भाग का उपर्युक्त उद्देश्यों के लिये और कुछ भाग का के अन्य उद्देश्यों के लिए होना, पर आधारित है ।
           ट्रस्ट द्वारा आंशिक रूप से धर्मार्थ या धार्मिक उद्देश्यों के लिए धारण की गई सम्पत्ति से जो आय प्राप्त होगी वह धारा 11 के तहत कर से छूट प्राप्त करने योग्य केवल उस हद तक होगी जो आय अंततः उद्देश्यों की पूर्ति के लिए प्रयोग में लाई जाती है या लाये जाने के लिए अलग रख दी जाती है। बशर्ते कि 
वह ट्रस्ट आयकर अघिनियम 1961 से लागू होने से पहले अर्थात् 1 अप्रैल 1962 से पहले स्थापित किया गया हो, परन्तु ऐसे ट्रस्ट द्वारा गुप्तदान के रूप में प्राप्त हुई आये छूट के लिये योग्य नहीं मानी जायेगी । 
           जिस ट्रस्ट की स्थापना 1 अप्रैल 1962 के बाद की गई है और जो सम्पत्ति को आंशिक रूप से धर्मार्थ उद्देश्यों के लिए और आंशिक रूप से संस्थापक के परिवार के हितों के लिए धारण करता है, तो उसे धारा 11 के अन्तर्गत छूट में के योग्य नहीं माना जाएगा। अगर ट्रस्ट के  अन्तर्गत कर उपलब्ध लाभ का संस्थापक के परिवार के सदस्यों द्वारा वास्तव दावा नहीं किया गया हो या उसका उपयोग नहीं किया गया हो और उनके लिए निश्चित की गई रकम को भी धर्मार्थ अन्तरित कर दिया गया हो तो भी, जब तक ट्रस्टा डीड में इस तरह के लाभ संबंधी कोई शर्त उल्लिखित हो उसे कर में राहत नहीं दी जायेगी।  

धारा 11 और 12 के अन्तर्गत कर से छूट प्राप्त करने के पात्र ट्रस्ट

धारा 11 व 12 के तहत उन्हीं धार्मिक ट्रस्टों को कर में छूट मिलेगी जो निम्नलिखित शर्तों को पूरा कर सकते हैं-
1. 1 अप्रैल, 1952 को या इसके बाद स्थापित किए गए ट्रस्ट, जिनका धर्मार्थ उद्देश्य ऐसे अन्तर्राष्ट्रीय कल्याण को प्रोत्साहित करना हो, जिसमें भारत अपनी
रुचि रखता है तथा जिन्हें बोर्ड के सामान्य विशेष आदेश द्वारा प्राधिकृत किया गया हो और जो अपनी आय का उपयोग कथित उद्देश्य के लिए भारत से बाहर कर रहे हों।
2. अनुसूचित जाति, जनजाति, पिछड़े वर्ग या महिलाओं और बच्चों के लिए स्थापित किए गए धर्मार्थ ट्रस्ट। 
3. पूर्णरूप से धर्मर्थ या धार्मिक उद्देश्यों के लिए बनाए गए ट्रस्ट जो अपनी आय का प्रयोग (या उसका संचय) उपर्युक्त उद्देश्यों के लिए भारत में करते हो । "पूर्ण रूप से धार्मिक उद्देश्यों के लिए वाक्यांश का अर्थ करदाता पर लागू व्यक्तिगत कानून के अन्तर्गत किसी धार्मिक उद्देश्य से है।
4. केवल आंशिक रूप से धर्मार्थ या धार्मिक उद्देश्यों के लिए 1 अप्रैल 1962 से पहले स्थापित किए गए ट्रस्ट जो अपनी आय का प्रयोग (या उसका संचय) उपर्युक्त उद्देश्यों के लिए भारत में करते हैं। यदि कोई ट्रस्ट आंशिक रूप से धार्मिक और आंशिक रूप से धर्मार्थ है, तो जब तक उसकी आय या कार्पस का कोई भाग धर्मार्थ उद्देश्यों के अतिरिक्त किसी अन्य उद्देश्य के लिए प्रयोग में नहीं लाया जा सकता हो, उसको धारा 11 के अन्तर्गत आय कर से छूट प्राप्त हो सकेगी।
5. 1 अप्रैल, 1952 से पहले स्थापित किये गए धर्मार्थ या धार्मिक ट्रस्ट, जिन्हें बोर्ड के सामान्य या विशेष आदेश द्वारा प्राधिकृत किया गया हो और अपनी आय का उपयोग कथित उद्देश्य की पूर्ति के लिए भारत के बाहर कर रहे हों। 

कर में छूट प्राप्त करने के अयोग्य ट्रस्ट

जो ट्रस्ट धारा 11 व 12 के तहत छूट नहीं प्राप्त कर सकते उनका विवरण निम्न प्रकार है-
1. निजी धार्मिक उद्देश्य के लिए बना ट्रस्ट जिसमें जन सामान्य के हितों के प्रति निश्चय न हो,
2. 1, अप्रैल, 1962 को या उसके बाद किसी विशेष धार्मिक समुदाय या जाति (अनुसूचित जाति, जनजाति, पिछड़े वर्ग या महिलाओं और बच्चों के
अतिरिक्त) के लिए बनाया गया या स्थापित किया गया ट्रस्ट।
3. धर्मार्थ या धार्मिक उद्देश्यों के लिए बना एक ऐसा ट्रस्ट या इंस्टीट्यूशन जिसकी आय या सम्पत्ति का कोई भाग धारा 13(3) के अन्तर्गत उल्लिखित किसी व्यक्ति के हित के लिए सीधे या परोक्ष रूप से प्रयोग में लाया जाता है या खर्च किया जाता है।

कार्पस दान पूरी तरह से छूट प्राप्त है।

जब कोई व्यक्ति किसी ट्रस्ट को किसी विशेष निर्देश पर दान देता है तो इस प्रकार के दान प्राप्तकर्ता ट्रस्ट के कार्पस का हिस्सा होंगे। केवल दानकर्ता ऐसा
विशिष्ट निर्देश दे सकता है कि उसके द्वारा दिया गया डोनेशन ट्रस्ट के कार्पस का हिस्सा होंगे। ट्रस्टियों को किसी दान को अपनी इच्छानुसार कार्पस दान के रूप में माल लेने का कोई अधिकार नहीं है । बेहतर होगा, इस तरह का निर्देश दानकर्ता ट्रस्ट को संबोधित पत्र द्वारा दें। अगर उसने ऐसा नहीं किया तो ट्रस्टी का यह अधिकार होगा कि वह दाता से इस प्रकार का निर्देश लिखित रूप में देने का निवदेन करें। कार्पस दान चूंकि प्राप्तकर्ता ट्रस्ट के लिए पूंजीगत प्राप्तियां हैं, ये ट्रस्ट की आय नहीं होती। धारा 11(1)(d) में कार्पस डोनेशन को स्पष्ट रूप से छूट की मंजूरी दी गई है ताकि स्थिति स्पष्ट हो जाए और किसी प्रकार का कोई संशय न रह ।
           कार्पस डोनेशन चूंकि प्राप्तकर्ता ट्रस्ट के लिए प्रयोग में न लाकर इन्हें ट्रस्ट के कार्पस में हिस्से के रूप में रखा जा सकता है और इस पर कर की कोई देनदारी शहीं आती तो भी ट्रस्टियों को चाहिए कि वे कार्पस से प्राप्त होने वाली आय का उपयोग इस्ट के धरमर्थि उद्देश्यों के लिए अवश्य कर लें। कार्पस फंड को अवश्य ही धारा |1 (5 ) में उल्लिखित मद या रूप में निवेश या जमा कर देना चाहिए।

छूट के लिए पात्र आय

धार्मिक ट्रस्ट की कुछ प्रमुख आय को कर से मुक्त रखा गया है। ये आय निम्नलिखित हैं-
1. स्वैच्छिक अंशदान (ट्रस्ट के कार्पस के लिए दिए गए दान को छोड़कर) के रूप में आय।
2. जिस संपत्ति पर ट्रस्ट का अधिकार है उससे प्राप्त आय को आयकर से मुक्त रखा गया है। जहां तक इसका प्रयोग धर्मार्थ या धार्मिक उद्देश्यों के लिए किया
जाता है या इसका संचय या इसे अलग से उपयुक्त उद्देश्य के लिए प्रयोग में लाने के लिए रख दिया जाता है, परन्तु इसके लिये कुछ शर्तों और सीमाओं का पालन करना अनिवार्य है ।
3. किसी पात्र व्यापार के लाभ और अनुलाभ के रूप में प्राप्त आय अर्थात ऐसे व्यापार की आय जो ट्रस्ट के उद्देश्यों से प्रासंगिक हो और उसके खाते अलग से रखे जाते हों।
4. पूंजीगत परिसम्पत्तियों के हस्तांतरण पर पूंजी लाभ के रूप में हुई आय, जहां बिक्री की रकम को किसी अन्य पूंजीगत परिसम्पत्ति का अधिग्रहण करने के लिए उपयोग में लाया गया हो।

छूट की रकम

ट्रस्ट को छूट दिये जाने की एक सीमा होती है जो भिन्न-भिन्न स्थितियों में भिन्न-भिन्न प्रकार की हो सकती है। इस संदर्भ में विशेष जानकारी निम्न प्रकार दी
गयी है-
1. ट्रस्ट के कार्पस के लिए स्वैच्छिक अंशदान के रूप में आय को 100% छूट दी गई है।
2. ट्रस्ट के अधीन धारण की गई सम्पत्ति से उत्पन्न आय (इसमें पूर्णतया धर्मार्थ या धार्मिक ट्रस्ट के मामले में ट्स्ट के कार्पस के लिए प्राप्त स्वैच्छिक अंशदान को छोड़कर अन्य अशंदान और पात्र व्यापार से लाभ और अनुलाभ भी शामिल हैं) को निम्नलिखि सीमाओं तक छूट प्राप्त है-
(क) वर्ष के दौरान भारत में धर्मार्थ और धार्मिक उद्देश्यों के लिए प्रयोग में लाई गई आय का 100%,
(ख) ऐसे उद्देश्यों के लिए भारत में प्रयोग करने के लिए संग्रह की गई या अलग से रख दी गई आय, ट्रस्ट के अधीन धारण की गई सम्पत्ति से आय के अधिकतम 15% तक,
(ग) 1 अप्रैल, 1952 से पहले स्थापित किए गए धर्मार्थ या धार्मिक ट्रस्ट के मामले में जिन्हें बोर्ड ने छूट दे रखी हो, उपर्युक्त उद्देश्यों के लिए भारत के बाहर प्रयोग की गई आय।
(घ) 1 अप्रैल, 1952 को या इसके बाद स्थापित किए गए धर्मार्थ ट्रस्ट के मामले में भारत के बाहर अन्तर्राष्ट्रीय कल्याण को प्रोत्साहित करने के उद्देश्य जिसमें भारत की रुचि हो, के लिए प्रयोग की गई आय।
3. पात्रता व्यापार की लाभ और अनुलाभ के रूप में आय को भी उपर्युक्त पैरा के मुताबिक छूट प्राप्त होगी ।
4. पूंजी परिसम्पत्ति के हस्तांतरण से उदित पूंजी लाभों के लिए छूट की राशि निम्न प्रकार होगी-
जब पूंजी परिसम्पत्ति के हस्तांतरण से उदित पूंजी लाभों के लिए छूट की राशि निम्न अनुसार होगी-
(क) अगर सम्पूर्ण शुद्ध प्रतिफल किसी नई पूंजी परिसम्पत्ति के अधिग्रहण के लिए प्रयोग में लाई गई हों तो पूरे के पूरे पूंजी लाभ को छूट प्राप्त होगी
और
(ख) अगर उस शुद्ध बिक्री मूल्य का सिर्फ एक भाग इस तरह प्रयोग में लाया जाता है तो कर मुक्त पूंजी लाभ की रकम नीचे लिखे अनुसार निकाली जाएगी-
नए पूंजी परिसम्पत्ति के अधिग्रहण की लागत में से हस्तांतरित पूंजी परिसम्पत्ति की लागत को घटाकर
(ग) जब पूंजी परिसम्पत्ति ट्रस्ट द्वारा केवल आंशिक रूप से धर्मार्थ या धार्मिक उद्देश्यों के लिए धारण की गई हो-
(क) अगर संपूर्ण शुद्ध प्रतिफल को किसी नई पूंजी परिसम्पत्ति के अधिग्रहण के लिए प्रयोग में लाईगई हो तो पूंजी लाभ की छूट प्राप्त रकम इस प्रकार होगी-

[A/B×कुल पूंजी लाभ]

(ख) अगर शुद्ध प्रतिफल का केवल एक भाग ही इस तरह प्रयोग में लाया गया है, तो पूंजी लाभ की छूट प्राप्त रकम इस प्रकार होगी-

[A/ B×{नई पूंजी परिसम्पत्ति के
अधिग्रहण की लागत} - A/B× [हस्तांतरित पूंजी परिसम्पत्ति की लागत]

जहाँ,
A = हस्तांतरित की गई पूंजी परिसम्पत्ति से होने वाली आय, जिसे हस्तांतरण से पहले धर्मार्थ या धार्मिक उद्देश्यों के लिए प्रयोग में लाया जाता था,
B = हस्तांतरण से पहले पूंजी सरिसम्पत्ति से प्राप्त कुल आय।

रकम जिसे छूट प्राप्त नहीं है

1. किसी धर्मार्थ या धार्मिक ट्रस्ट द्वारा धारा 13 3) के अन्तर्गत निर्धारित किसी व्यक्ति को निःशुल्क या रियायती दरों पर दी गई चिकित्सा या शैक्षिक सेवाओं
के मूल्य को ट्रस्ट की कर-योग्य आय समझा जाएगा और यह आय धारा 11(1) के अन्तर्गत छूट पाने के योग्य नहीं हैं।
2. संचित आय में से जो रकम धारा 12AA में रजिस्टर्ड किसी दूसरी ट्रस्ट या धारा 10 (23C)(iv), (v), (vi) या (via) में संदर्भित किसी फंड/संस्थान/विश्वविद्यालय/शैक्षिक संस्थान/अस्पताल/चिकित्सा संस्थान के खाते में क्रेडिट की जाती है या उसे भुगतान की जाती है, वह रकम धर्मार्थ या धार्मिक उद्देश्यों के लिए प्रयोग में लाई गई नहीं मानी जाएगी, अतः इस
पर धारा 11(2) के तहत छूट प्राप्त नहीं होगी (धारा 11(2) का स्पष्टीकरण) ।
3. धारा 115BBC में संदर्भित गुप्त दान के रूप में कोई आय।

संदर्भ
एन. जी. ओ. एवं समाजकार्य - संगीता नटराजन "मार्क पब्लिसर्स" जयपुर (पृष्ठ-१६५-१८९)


संपादन व संकलन

आनंद श्री कृष्णन
एम.एस.डब्लू, एम.बी.ए, पी.जी.डि. गांधी अध्ययन, 
हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा, भारत

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