गैर सरकारी संगठन - Non Government Organization - अध्याय -1 एन. जी. ओ . की संरचना

गैर सरकारी संगठन
Non Government Organization

अध्याय -1
एन. जी. ओ . की संरचना

एन.जी.ओ. एक ऐसा संगठन है जिसकी संरचना कुछ व्यक्तियों द्वारा मिलकर की जाती है। यह संगठन पंजीकृत या अपंजीकृत दोनों हो सकता है लेकिन जब यह संस्था या संगठन कोई कल्याणकारी अथवा किसी अन्य सामाजिक उद्देश्यों को पूरा करने के लिए बाहर से वित्तीय सहायता प्राप्त करना चाहता है तो धन देने वाली एजेंसियां (अन्तर्राष्ट्रीय या राष्ट्रीय) निश्चित रूप से उस संगठन से यह अपेक्षा करेंगी कि वे अपना एक वैध स्वरूप धारण करें। वैध स्वरूप तभी मिल सकता है जब व्यक्तियों के समूह को किसी लागू कानून के अंतर्गत पंजीकृत करा लिया गया हो।

लागू अधिनियम

कुछ व्यक्तियों द्वारा बनाई गई एक संस्था को जिसका उद्देश्य लाभ अर्जित करना न हो, नीचे वर्णित किसी भी भारतीय अधिनियम के अंतर्गत पंजीकृत कराया
जा सकता है-

1. एक धर्मर्थ ट्रस्ट के रूप में ।
2. सोसाइटी पंजीकरण अधिनियम के तहत एक सोसाइटी के रूप में।
3. कम्पनी अधिनियम, 1965 की धारा 25 के अंतर्गत एक लाइसेंस प्राप्त कम्पनी के रूप में।

एन.जी.ओ. की एक ट्रस्ट के रूप में संरचना

भारतीय ट्रस्ट अधिनियम की धारा 3 में ट्रस्ट के स्वामी या मालिक पर विश्वास करके, उसको सम्पत्ति का मालिक बना कर, उसको एक दायित्व सौंपा गया है। वह इस दायित्व को स्वीकार करता है अथवा यह घोषणा करता है कि उसको सौंपी गई सम्पत्ति का प्रयोग, वह किसी अन्य व्यक्ति के हित के लिए या किसी अन्य व्यक्ति और स्वयं अपने हित के लिए करेगा ।
भारतीय ट्रस्ट अधिनियम की धारा 7 में यह प्रावधान किया गया है कि यदि कोई भी व्यक्ति जो कोई करार या वादा करने के लिए समर्थ है तथा किसी नाबालिग
की तरफ से ट्रस्ट चलाना चाहता है, वह एक ट्रस्ट की स्थापना कर सकता है।

धर्मार्थ ट्रस्ट (न्यास)

न्यास अथवा धर्मार्थ ट्रस्ट वह संगठन है जिसका उद्देश्य जनसाधारण और मानव के कल्याण के कार्य करना है। आमतौर पर हिन्दू लोग एक धर्मार्थ/धार्मिक अक्षय निधि की स्थापना करते हैं और मुस्लिम लोग उसी उद्देश्य के लिए एक वक्फ बनाते हैं। इन दोनों मामलों में कुछ सम्पत्ति समाज के हित के लिए समर्पित कर दी जाती है जैसे कि कोई टैंक, कुएं, खाद्य सामग्री, धर्मशाला, स्कूल, प्याऊ, निर्धनों और रोगियों को सहायता देने वाली सुविधाएं आदि। इसके लिए एक संस्थान बना दिया जाता है और इन कामों को पूरा करने का दायित्व दे दिया जाता है।

कोई भी वयस्क व्यक्ति जो मानसिक या बौद्धिक दृष्टि से स्वस्थ हो वह न्यास या धर्मार्थ कार्यों हेतु एक वसीयत करके या स्वेच्छा से उत्साहित होकर उपहार के तौर पर देकर एक धर्मार्थ अक्षय निधि की स्थापना कर सकता है। इस उद्देश्य के लिए, वह जरूरी नहीं है कि एक ट्रस्ट ही बनाया जाए । इस प्रकार समर्पित की गई सम्पत्ति जिस भी व्यक्ति के पास रहती है, वह उसे एक विश्वास के अधीन धारण करता है और वह इसका इस्तेमाल समर्पित करने वाले व्यक्ति द्वारा निर्धारित उद्देश्यों के लिए ही करता है। इसके अलावा जो भी व्यक्ति स्वयं की सम्पत्ति धर्मार्थ जैसे कल्याणकारी कार्यों के लिए प्रदान करता है उसके लिए यह अच्छा होगा कि वह लिखित दस्तावेज के माध्यम से ट्रस्ट की स्थापना करे तथा ट्रस्टियों की एक समिति नियुक्त करे। ट्रस्टियों की यह। जिम्मेदारी होती है कि वे इस अक्षय निधि का प्रबंध, नियंत्रण और उसके कार्यकलापों
का संचालन करें और निश्चित किये गये उद्देश्यों की पूर्ति करें।

ट्रस्ट विलेख

जिस दस्तावेज के जरिए एक ट्रस्ट का ज्ञापन किया जाता है, उसे ट्रेस्ट का आलेख या विलेख कहते हैं। चूंकि एक ट्रस्ट का ज्ञापन एक वरसीयत या स्वेक्षा से किये गए एक करार द्वारा किया जा सकता है, इसलिए ट्रस्ट डीड एक Testamen- tary Instrument के रूप में अर्थात् एक वसीयत के रूप में हो सकती है। कुछ ट्रस्ट बिना लिखित आलेख के बनाए जाते हैं, तो भी वह सुझाव दिया जाता है कि
हमेशा एक लिखित ट्रस्ट डीड के अधीन ही बनाया जाना चाहिए।

ट्रस्ट विलेख की विषय वस्तु

किसी भी भाषा में ट्रस्ट विलेख बनाया जा सकता है। परन्तु उसके अन्तर्गत उसके अर्थ को स्पष्ट करना आवश्यक है। इसके लिए किन्हीं तकनीकी शब्दों की आवश्यकता नहीं है। एक ट्रस्ट विलेख में आमतौर पर निम्नलिखित तथ्यों का समावेश होता है-

1. ट्रस्ट की स्थापना करने वाले व्यक्तियों के नाम,
2. टरस्टियों के नाम,
3. लाभान्वित होने वाले व्यक्तियों के नाम या इस आशय का उल्लेख कि यह ट्रस्ट आम जनता के हित के लिए बनाया गया है।
4. ट्रस्ट को दिया गया एक नाम जिससे ट्रस्ट जाना जाएगा।
5. उस स्थान का नाम जहां ट्रस्ट का मुख्य या अन्य कार्यालय काम करेगा।
6. उस सम्पत्ति का विवरण जो ट्रस्ट के अधीन ट्रस्टियों को सौंपी गई है। जिसका उपयोग लाभान्वित व्यक्ति/व्यक्तियों के लिए किया जाएगा।
7. ट्रस्ट की सम्पत्ति को ट्रस्टियों को सौंपने के आशय का विवरण।
8. ट्रस्ट के उद्देश्य।
9. ट्रस्टियों की नियुक्ति, उन्हें हटाने या उनके बदले में अन्यों को नियुक्त करने की प्रक्रिया और उनके अधिकार, कर्तव्य और शक्तियों आदि का उल्लेख।
10. लाभान्वित व्यक्ति/व्यक्तियों के अधिकार और उनके दायित्व।
11. ट्रस्ट किस प्रकार और किस परिकल्पना से बनाया गया है, इसका विवरण एक सामान्य धर्मार्थ ट्रस्ट की ट्रस्ट विलेख का एक प्रारूप अनुलग्न में दिया गया

पंजीकरण

सार्वजनिक धर्मार्थ ट्रस्टों के सन्दर्भ में चाहे वे चल सम्पत्ति हों या अचल सपति अथवा चाहे वे वसीयत के तहत ही क्यों न बनाए गए हों उनका पंजीकरण कराना उनकी इच्छा पर निर्भर करता है लेकिन ट्रस्ट का पंजीकरण करा लेना अच्छा डता है। अचल सम्पत्ति के बारे में बनाये गए ट्रस्ट के संबंध में यदि आयकर
अधिनियम की धारा 11 के अधीन छूट प्राप्त करनी हो तो यह अनिवार्य है कि ट्रस्ट के आलेख का पंजीकरण करा लिया जाए।

टस्ट विलेख का भारतीय पंजीकरण अधिनियम के तहत पंजीकरण

किसी अचल सम्पत्ति जिसकी कीमत 100 रुपये से अधिक हो, उसके सन्दर्भ में यदि किसी दस्तावेज या आलेख के जरिये किसी भी प्रकार का अधिकार प्रदान
किया जाता है तो उस दस्तावेज या आलेख का पंजीकरण अधिनियम 1908 के अधीन कराना जरूरी होता है। अतः जो ट्रस्ट विलेख अचल सम्पत्ति के बारे में हो उसका पंजीकरण कराना अनिवार्य है। 

किसी भी ट्रस्ट विलेख के सम्पादित किये जाने के चार माह के अन्दर उसको उस रजिस्ट्रार के कार्यालय में पंजीकरण के लिए पेश कर दिया जाना चाहिए जिसके सब-डिवीजन में वह पूरी सम्पत्ति या उसका कोई भाग स्थित हो। अगर ट्रस्ट विलेख का कागजात किन्हीं अत्यावश्यक कारणों से या अप्रत्याशित घटना के कारण उपयुक्त अवधि के दौरान पंजीकरण के लिए प्रस्तुत न किया जा सके हो, तो उसे आगे और चार महीनों के भीतर पंजीकरण के लिए प्रस्तुत कर दिया जाना चाहिए। परन्तु इसके साथ उन्हें जुर्माने के तौर पर एक शुल्क देना होगा जो कि पंजीकरण शुल्क की रकम की दस गुना रकम से अधिक नहीं होगा। राज्य सरकार द्वारा निर्धारित पंजीकरण शुल्क का भुगतान पंजीकरण दस्तावेज प्रस्तुत करते वक्त करना होगा ।

अचल सम्पत्ति से जुडे ट्रस्ट विलेख का पंजीयन करवाने हेतु उस विलेख के अन्तर्गत सम्पत्ति का पूरा विवरण होना आवश्यक है ताकि उसकी सरलता से जांच पहचान की जा सके। अगर उस डीड में लिखी पंक्तियों के बीच में भी कुछ लिखा गया हो, खाली जगह छोड़ी गई हो, कुछ मिटाया गया हो या कुछ फेरबदल किया गया तो डीड निष्पादित करने वाले व्यक्ति द्वारा उस पर हस्ताक्षर करके सत्यापन
किया जाना चाहिए।

पंजीकरण अधिकारी जब इस बात से संतुष्ट हो जाएगा कि पंजीकरण के लिए प्रस्तुत किये गए दस्तावेजों में पारित किये गये कानूनों के नियमों का पालन हुआ ।
है तो वह उन पर एक प्रमाण-पत्री दर्ज कर देगा जिसमें पंजीकृत शब्द लिख देगा। साथ ही कार्यालय की पुस्तक में उसकी जो प्रतिलिपि चढ़ा दी जाएगी उसका नम्बर ( पृष्ठ संख्या भी उस पर लिखी होगी। इस प्रमाण पत्र पर पंजीकरण अधिकारी हस्ताक्षर करेगा और उस पर कार्यालय की मुहर लगा दी जाएगी और तारीख डाल दी जाएगी। यह इस बात का अन्तिम् प्रमाण माना जाएगा कि दस्ताविज का और पंजीकरण कर दिया गया ।

पंजीकरण अधिनियम 1908 की धारा 47 के आधार पर एक पंजीकृत ट्रस्ट डीड को अगर पहले पंजीकृत कराने की जरूरत न समझी गई हो या पंजीकरण न
कराया गया हो तो वह ट्रस्ट डीड उसी दिन से प्रभावी मानी जाएगी जिस दिन मे उसने काम करना शुरू कर दिया हो न कि उस दिन से जिस दिन उसका पंजीकरण किया गया हो। दूसरे शब्दों में एक पंजीकृत ट्रस्ट डीड, उस ट्रस्ट के निष्पादन किए जाने की तारीख से ही प्रभावी मानी जाएगी।

सार्वजनिक ट्रस्ट अधिनियम के तरह ट्रस्ट का पंजीकरण

किसी धर्मार्थ ट्रस्ट को भारतीय रजिस्ट्रेशन अधिनियम के अंतर्गत पंजीकृत कराने की आवश्यकता नहीं है। फिर भी कुछ राज्यों, जैसे-महाराष्ट्र और गुजरात
में एक पब्लिक ट्रस्ट एक्ट लागू है जिसके अनुसार ऐसी सभी स्वैच्छिक संगठनों को सार्वजनिक ट्रस्ट अधिनियम के अधीन पंजीयन करवा लेना चाहिए। बाम्बे पब्लिक ट्रस्ट एक्ट, 1950 के अनुसार सभी धर्मार्थ और धार्मिक संस्थानों को सार्वजनिक ट्रस्ट
के रूप में पंजीकरण कराना जरूरी है और वे चैरिटी कमिश्नर की देख-रेख के अंतर्गत आएंगे।

व्यापक रूप से जानकारी हासिल करने के लिए निम्नलिखित किसी भी राज्य के ट्रस्ट सम्बन्धित अधिनियमों को देखें-

1. बिहार हिन्दू रिलीजियस ट्रस्ट एक्ट, 1950,
2. मद्रास हिन्दू रिलीजियस एण्ड चैरिटेबल एंडवरमेंट एक्ट, 1959,
3. पुरी श्री जगन्नाथ टेम्पल (एडमिनिस्ट्रेशन) एक्ट, 1952,
4. बाम्बे पब्लिक ट्रस्ट एक्ट, 1950,
5. मध्य प्रदेश पब्लिक ट्रस्ट एक्ट, 1951,
6. उड़ीसा हिन्दू रिलीजिसय एंडवामेंट एक्ट, 1951
7. ट्रावणकोर कोचीन हिन्दू रिजीजिसय इंस्टीट्यूशन एक्ट, 1970,
8. राजस्थान पब्लिक ट्रस्ट एक्ट, 1959,
9. उत्तर प्रदेश हिन्दू पब्लिक रिलीजियस इंस्टीट्यूशन (प्रिवेंशन आफ डिस्सीपेशन आफ प्रापर्टीज-टेम्परेरी पावस) एक्ट, 1962,
10. आन्ध्र प्रदेश चैरिटेबल एण्ड हिन्दू रिलीजियस इंस्टीट्यूशन एण्ड एंडवामेंट
एक्ट, 1966

ट्रस्टों पर लागू अधिनियम

ट्रस्टों पर लागू किये गए प्रमुख अधिनियम निम्नवत हैं-

चैरिटेबल एण्ड रिलीजियस ट्रस्ट अधिनियम 1920

चैरिटेबल एण्ड रिलीजियस ट्रस्ट, 1920 के नाम का सिर्फ एक केन्द्रीय कानून है। इसके अंतर्गत ऐसी सुविधाएं उपलब्ध हैं जिनके माध्यम से सार्वजनिक
धर्मार्थ और धार्मिक अक्षय निधियों और न्यासों के संबंध में जानकारी प्राप्त की जा सकती है और ट्रस्टी कुछ मामलों में और उनके खिलाफ दायर किये गए कुछ मुकदमों पर किये गए खर्च के मामले में न्यायालय के निर्देश प्राप्त कर सकते हैं।

धार्मिक अक्षय निधि अधिनियम, 1863

इस अधिनियम के अनुसार सरकार किसी भी ऐसे धार्मिक संस्थानों के प्रबन्धन से अपने आप को अलग कर सकती है जो उसके नियंत्रण में थे या हैं।

भारतीय ट्रस्ट अधिनियम 1882

यह अधिनियम प्राइवेट और फैमिली ट्रस्ट पर लागू होता है परन्तु वक्फ और धर्मार्थ या धार्मिक अक्षय निधियों को इस क्षेत्र से दूर रखा गया है, फिर भी ट्रस्ट
अधिनियम के प्रावधानों की संरचना करने वाले मूलभूत सिद्धान्त सार्वजनिक ट्रस्टों पर भी लागू किये जा सकते हैं, इसके अतिरिक्त, अधिनियम के सामान्य प्रावधान जैसे कि धारा 46, जिसमें एक बार ट्रस्ट का भार संभालने के बाद उसके ट्रस्टियों द्वारा उसे त्याग देने के मामले आते हैं और धारा 47, जिसमें किसी ट्रस्टी द्वारा अपने पद का भार किसी अन्य व्यक्ति को सौंपने के मामले आते है। इसी प्रकार के अन्य मामलों में भी ये पब्लिक ट्रस्टों पर बराबर से होंगे।

एन.जी.ओ. की एक सोसाइटी के रूप में स्थापना

गैर सरकारी संगठन (एन.जी.ओ.) को एक सोसाइटी के रूप में भी स्थापित किया जा सकता है। सोसाइटी को एक ऐसी कम्पनी या इकाई का नाम दिया जा।
सकता है जिसे कुछ व्यक्तियों या समूहों द्वारा मिलकर एक ही सामान्य उ्देश्य पर्ति के लिए आपसी सहमति से मिलकर विचार करने का निर्णय लेने और करने की दृष्टि से स्थापना की गयी है।

सोसाइटी पंजीकरण अधिनियम 1960 के आधार पर एक सोसाइटी नीचे वर्णित किसी भी उद्देश्य की पूर्ति के निर्मित्त कम से कम सात (या अधिक) ऐसे व्यक्तियों द्वारा बनाई जा सकती है जो करार करने के लिए योग्य हों-

1. विज्ञान, साहित्य या ललित कला को प्रोत्सान देना,
2. धर्मार्थ सहायता के लिए अनुदान देने,
3. सैनिक अनाथ फंड स्थापित करने,
4. उपयोगी ज्ञान की शिक्षा और प्रसारण,
5. राजनीतिक शिक्षा का प्रसारण,
6. सदस्यों और जन समुदाय के लोगों के प्रयोग के लिए लाइब्रेरी और रीडिंग रूम की स्थापना या उनका रख-रखाव,
7. सार्वजनिक संग्रहालय (अजायबघर) और चित्रकला (पेटिंग) तथा अन्य कला कृतियों की गैलरियां स्थापित करना या उनका रख-रखाव,
৪. प्राकृतिक इतिहास संबंधी जानकारी और वस्तुएं एकत्रित करना,
9. मेकेनिकल यंत्रों और दर्शनशास्त्र संबंधी खोज तथा
10. यंत्र या डिजाइन एकत्रित करना।

इनके अतिरिक्त राज्य सरकारों को यह अधिकार है कि वे इस सूची में और भी विषय शामिल कर सकती हैं।

एन.जी.ओ. को एक सोसाइटी के रूप में स्थापित करने का एक सबसे बड़ा फायदा यह होता है कि यह उस संगठन को एक निगमित शक्ल देता है तथा उसमें
अधिक लचीलापन होता है। सोसाइटी के मैमोरेंडम और उपनियमों में संशोधन करना आसान है जबकि ट्रस्ट में ऐसा नहीं है क्योंकि टस्ट डीड में उसकी शर्तों का स्पष्ट उल्लेख होता है। ट्रस्ट के मुकाबले सोसाइटी की संरचना में कार्यप्रणाली संबंधी औपचारिकताएं अधिक पूरी करनी पड़ती हैं। 

सोसाइटी बनाने के पात्र व्यक्ति

कोई भी व्यक्ति (जिनमें नाबालिग शामिल नहीं हैं पर विदेशी नागरिक मिल हैं), पार्टनरशिप फर्म, कम्पनियां और पंजीकृत सोसाइटियां एक सोसाइटी बनाने के लिए पात्र हैं।

दतस्तावेज

सोसाइटी को प्रारंभ में प्रमुख दो दस्तावेजों की आवश्यकता पड़ती है, जो निम्नलिखित हैं-

1. मेमोरेंडम आफ एसोसिएशन

इस दस्तावेज में सोसाइटी के नियम और उसके कार्य संचालन का उल्लेख और उसका विवरण होता है। इन दस्तावजों का प्रारूप बड़ी सतरकेता से बनाया जाना
चाहिए ताकि ऐसे सभी अधिकार (शक्तियां) सोसाइटी को सौंप दिए जाएं जो उसके उद्देश्यों को पूरा करने के निमित्त आवश्यक हैं। मेमोरेंडम आफ एसोसिएशन में
निम्नवत भाग होते हैं-

1. सोसाइटी का नाम,
2. सोसाइटी का पंजीकृत/प्रमुख का्यालय,
3. सोसाइटी के उद्देश्य,
4. संचालन समिति के सदस्यों के नाम, पते और उनके व्यवसाय, चाहे वे गर्वनर, काउंसिलर, डाइरेक्टर आदि हो, जिन्हें सोसाइटी के नियमों के अनुसार उसको
कार्य व्यापार का प्रबंधन सौंपा गया हो
5. उन व्यक्तियों (कम से कम सात) के नाम और पते और कारोबार का उल्लेख जो मेमोरेंडम का अनुमोदन करते हैं । इन सब्सक्राइबरों के हस्ताक्षरों की
पहचान और उनका सत्यापन किसी ओथ कमिश्नर/नोटरी पब्लिक/गजेटिड आफीसर/एडवोकेट/चार्टर्ड एकाउंटेन्ट/प्रथम श्रेणी मजिस्ट्रेट द्वारा विधिवत कराया जाना चाहिए।

2. नियम और विनियम

सोसाइटी के कार्य व्यापार पर और उसके आन्तरिक संचालन पर नियंत्रण रखने तथा उसके सदस्यों का मार्गदर्शन करने के उद्देश्य से बनाए जाते हैं। नियमों तथा विनियमों में सामान्य रूप से निम्नवत बातों का
समावेश होता है-

1. सदस्यों के प्रवेश की शर्ते,
2. कुछ खास परिस्थितयों में सदस्यों पर जुर्माना लगाने और उनकी जब्तियों के प्रति उनका दायित्व,
3. सोसाइटी का विषटन और विघटन पर सोसाइटी की सम्पत्ति का प्रयोग करने की विधि,
4. सोसाइटी की प्रकृति और उसके उद्देश्यों के संदर्भ में जो मामले उपयुक्त समदे जाएं उन पर कार्यवाही,
5. सदस्यों द्वारा त्यागपत्र देने या उनके निष्कासन या उनकी मृत्यु होने पर सदस्यता की समाप्ति,
6. निधि का निवेश खाते रखना और खातों का लेखा परीक्षण करना,
7. उद्देश्यों और नियमों में बदलाव लाने की विधि,
8. ट्रस्टियों की नियुक्ति तथा उनकी बर्खास्तगी और उनके अधिकार,
9. गवर्निंग बाडी के सदस्यों की नियुक्ति और उनकी बर्खास्तगी,
10. मीटिंग्स करने और प्रस्ताव पारित करने के संबंध में नोटिस जारी करना और कोरम आदि,
11. बाईलाज में उल्लिलिख किए जाने वाले विषय ।

सोसाइटी के बाई-लाज, उसके नियमों और विनियमों के अनुपूरक हैं और ये सामान्यतः निम्नलिखित व्यवस्था प्रदान करते हैं-
1. सोसाइटी के कार्य व्यापार की अवधि,
2. सोसाइटी के उद्देश्यों का विस्तार, प्रसार करने के लिए गतिविधियां,
3. दैनिक कार्य व्यापार की व्यवस्था, उस पर व किये जाने वाला खर्च, कर्मचारियों की नियुक्ति और उनकी सेवा की शर्ते,
4. सोसाइटी के फंड का आरक्षण, प्रयोग और निवेश की विधि एवं उसके निवेश की सीमा व शर्तें,
5. सदस्यों को प्रवेश देने, उनके निष्कासन, अधिकार, प्रयोग और उनके विशेषाधिकार,
6. सोसाइटी द्वारा अपना कार्य व्यापार चलाने की विधि,
7. सोसाइटी की आम सभाएं आयोजित करना और संबंधी कार्यविधि,
8. सोसाइटी के संगठन और कार्य व्यापार संबंधी अन्य समय-समय पर उठने वाले मामले, सोसाइटी की कार्यशीलता और उसके कार्य व्यापार का प्रबंधन
जैसा भी आवश्यक समझा जाए।

पंजीकरण की प्रक्रिया

किसी एन.जी.ओ. को जब एक सोसाइटी के रूप में स्थापित किया जाता तब उसका सोसाइटीज पंजीकरण अधिनियम 1960 के अधीन पंजीयन कराना अनिवार्य होता है। सोसाइटी के मेमोरेंडम, नियमों और विनियमों का प्रारूप तैयार लेने, उन पर निर्धारित रूप से हस्ताक्षर करने, गवाहों के हस्ताक्षर हो जाने के बाद सदस्यों को चाहिए कि वे उसका पंजीकरण करा लें। पंजीकरण कराने के लिए रजिस्टार आफ सोसाइटीज के कार्यालय में निम्नलिखित दस्तावेज अथवा कागजात भरकर प्रस्तुत करना पड़ता है-

1. एक व्याख्या पत्र जिसमें पंजीकरण के लिए आवेदन किया गया हो और उसके साथ विभिन्न दस्तावेज नत्थी कर दिये गए हों। इस पत्र पर मेमोरेंडम के सभी सब्सक्राइबरों के हस्ताक्षर होने चाहिए या किसी ऐसे व्यक्ति द्वारा हस्ताक्षर किया जाए जिसे उन सभी व्यक्तियों के हस्ताक्षर करने के लिए प्राधिकृत
किया हो ।
2. मेमोरेंडम दो प्रतियों में साफ-साफ टाइप किया गया हो और उसके पृष्ठों पर क्रमानुसार संख्या डाल दी गई हो। 
3. सोसाइटी के पंजीकृत कार्यालय के लिए जो स्थान दिखाया गया हो, उसके प्रमाण के रूप में हाउस टैक्स की रसीद, किराया रसीद या मकान मालिक की ओर से जारी किये एतराज न होन का प्रमाण पत्र ।
4. प्रबंधन समिति के सभी सदस्यों द्वारा हस्ताक्षर किया गया एक प्राधिकार पत्र ।
5. प्रबंधन समिति के सभी सदस्यों की ओर से इस आशय का एक घोषणा पत्र कि सोसाइटी के फंड का प्रयोग सिर्फ सोसाइटी के लक्ष्य एवं उद्देश्यों की पूर्ति,
प्रचार-प्रसार के लिए ही किया जाएगा।
6. नियम और विनियम/बाई लाज की दो प्रतियां जिनका संचालन समिति के कम से कम तीन सदस्यों ने सत्यापन किया हो।
7. निर्धारित मूल्य के नान जुडीशल स्टाम्प पेपर पर सोसाइटी के अध्यक्ष/सचिव द्वारा एक हलफनामा दिया जाना चाहिए जिस पर सब्सक्राइबरों के आपसी संबंधों का उल्लेख हो और इसका ओथ कमिश्नर, नोटरी पब्लिक या प्रथम श्रेणी मजिस्ट्रेट द्वारा सत्यापन किया गया हो।

यदि रजिस्ट्रार उक्त सभी फाईल किये गये प्रमाण पत्रों से संतुष्ट हो जाता है तो वह आवेदक से सोसाइटी की पंजीकरण शुल्क जमा कराने के लिए कहेगा। आम-तौर पर यह शुल्क 50 रुपये होता है। इसे नकद या डिमांड ड्राफ्ट किसी भी रूप में जमा कराया जा सकता है। पंजीकरण की सभी औपचारिकताओं को पूरा कर लेने के बाद रजिस्ट्रार जब इस बात से संतुष्ट हो जाता है कि अधिनियम के सभी प्रावधानों को पूरा कर दिया गया है । तो वह सोसाइटी के पंजीकरण का
प्रमाण पत्र तथा नियमों और विनियमों की प्रतियां अपने हस्ताक्षरों द्वारा प्रमाणिक करके जारी कर देगा।

पंजीकरण का प्रभाव

सोसाइटी पंजीकरण अधिनियम 1960 के अधीन पंजीकृत सोसाइटी को एक वैधानिक रूप प्रदान करता है। जो सोसाइटी रजिस्टर्ड नहीं होती उस पर इंचार्ज सभी ट्रस्टी अपनी व्यक्तिगत वैधानिक स्थिति रखते हैं और सोसाइटो की कोई वैधानिक स्थिति नहीं होती, इसलिए न तो सोसाइटी किसी पर मुकदमा कर सकती है और न ही इस पर कोई मुकदमा किया जा सकता है। इसके अलावा सोसाइटी आयकर अधिनियम के अन्तर्गत लाभ प्राप्त करने का दावा नहीं कर सकती।

सोसाइटी की सम्पत्ति को अधियुक्त करने की विधि

अधिनियम की धारा 5 के अनुसार पंजीकृत सोसाइटी की कोई भी सम्पत्ति चाहे चल हो या अचल, अगर वह ट्रस्टियों के हक में सौंपी न गई हो, तो समसामयिक तौर पर वह सम्पत्ति सोसाइटी की संचालन समिति को सौंपी गई मानी जाएगी और सिविल या क्रिमनल, किसी भी कार्रवाई के दौरान उसे संचालन समिति
को मालिकाना हक देकर संचालन समिति की ही सम्पत्ति माना जाएगा।
           एन.जी.ओ. की कम्पनी अधिनियम की धारा 25 के तहत एक लाइसंस प्राप्त कम्पनी के रूप में संरचना
कम्पनी अधिनियम 1956 की धारा 25 के अनुसार निम्मांकित उद्देश्यों या शर्तों का पालन करने के लिए या बनाई जाने वाली संस्था को पंजीकरण की इजाजत
है तथा इन्हें अपने नाम के साथ लिमिटेड या प्राइवेट लिमिटेड जैसे शब्दों को आगे लिखने की आवश्यकता नहीं है-

1. संघ या संस्था के उद्देश्यों को पूरा करने के लिए उसके लाभों और अन्य आय का प्रयोग करने की भावना से।
2. अपने सदस्यों को लाभांश वितरण निषेध करना ।
3. वाणिज्य, कला, विज्ञान, धर्म, धमार्थ या अन्य किसी उपयोगी उद्देश्य को पूरा करने के लिए।

          कम्पनी अधिनियम की धारा 25 के अधीन लाइसेंस प्राप्त करने के लिए किसी संस्था को निम्नलिखित कार्य करने होंगे-

1. सबसे पहले कम्पनी रजिस्ट्रार से यह सुनिश्चित करना होगा कि कम्पनी के लिए जो नाम प्रस्तावित किया गया है, वह उपलब्ध है या नहीं।
2. कम्पनी या संस्था प्रस्तावित नाम का निर्णय कर लेने के बाद उसे मेमोरेंडम आफ एसोसिएशन और आर्टिकल्स आफ एसोसिएशन का प्रारूप बना लेना चाहिए।
3. कम्पनी या संस्था के पंजीकरण के लिए मेमोरेंडम और आर्टिकल्स, निर्धारित फार्मों और अन्य दस्तावेजों के साथ इलाके के कम्पनी रजिस्ट्रार को आवेदन
करना होगा।

          रजिस्ट्रार यदि इस बात से संतुष्ट हो जाता है कि सभी औपचारिकताएं पूरी कर दी गई हैं, तो वह कम्पनी के पंजीकरण का एक प्रमाण पत्र जारी कर देगा और उस दिन से कम्पनी अपने सभी कार्यों को संचालित कर सकती है । 

नामों का चयन 

इसमें निम्नलिखित प्रक्रियाएं करनी पड़ती हैं-

1. प्राथमिकता के आधार पर कम से कम चार ऐसे नामों का चयन करें, जिनमें कम्पनी के मुख्य उद्देश्यों का संकेत मिलता हो।
2. यह सुनिश्चित किया जाए कि इस कम्पनी का नाम किसी अन्य पंजीकृत कम्पनी से मेल न खाता हो और यह एम्बलम एण्ड नेम्स (प्रिवेंशन आफ इम्प्रापर यूज) एक्ट 1950 के प्रावधानों का उल्लंघन न करता हो।
3. प्रस्तावित नाम उपलब्ध है, इस बात को सुनिश्चित करने के लिए ई-फार्म 1-ए में 500 रुपये के शुल्क के साथ आवेदन करें। यह रकम इलेक्ट्रानिक माध्यम या चालान के जरिये सरकारी खजाने में जमा कराई जा सकती है।

एसोसिएशन में मेमोरेंडम एण्ड आर्टिकल्स

इससे संबंधित निम्नलिखित कार्यों को करना पड़ता है-

1. एसोसिएशन के मेमोरेंडम एण्ड आर्टिकल्स का प्रारूप तैयार करने के लिए किसी विधिवेत्ता से संपर्क करें, उसका आर.ओ.सी. से संशोधन करा लें और उसे छपवा लें, कम्पनीज एक्ट में मेमोरेंडम एण्ड आर्टिकल्स का एक नमूना दिया गया है।
2. मेमोरेंडम और आर्टिकल्स पर कम से कम दो योगकर्ताओं के हस्ताक्षर करा लें, उनके पिता का नाम, कारोबार और पता आदि लिखकर उस पर कम से कम एक व्यक्ति की गवाही करा लें।

पंजीकरण की प्रक्रिया

एसोसिएशन अपने इलाके के कम्पनी ला बोर्ड के रिजनल डायरेक्टर की ई-फार्म 24-क में एक आवेदन देगी और आवेदन पत्र के साथ निम्नलिखित दस्तावेज भी प्रस्तुत किए जाएंगे-

1. एसोसिएशन के परमोटर्स के नाम, पतों का ब्यौरा और उनके कारोबार संबंधी सूची।
2. प्रस्तावित कम्पनी के मेमोरेंडम और आर्टिकल्स आफ एसोसिएशन के प्रारूप की टाइप की हुई तीन प्रतिलिपियां। इन पर कोई स्टाम्प डयूटी देय नहीं है।
3. उन कम्पनियों, एसोसिएशनों और अन्य संस्थाओं की सूची जिनमें प्रमोटर डायरेक्टर के तौर पर काम कर रहे हों या जिम्मेदार पद धारण किया हुआ हो।
इसमें उनके द्वारा धारण किये गये पदों का ब्यौरा भी दें।
4. प्रस्तावित बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स के सदस्यों की सूची।
5. परिसम्पत्तियों और दायित्वों का विवरण।
6. आय के स्रोत और वार्षिक आय और व्यय का अनुमानित विवरण।
7. किसी एडवोकेट, अटार्नी, प्लीडर, अकाउंटेंट या एक पूर्णकालिक प्रेक्टिस करने वाले कम्पनी सैक्रेटरी द्वारा निर्धारित फार्म में दिया गया एक घोषणा पत्र,
जो उचित मूल्य के नान जुडीशल स्टैम्प पेपर पर हो ।
8. लेखा, बैलेंस शीट और एसोसिएशन की कार्यशैली के बारे में पिछले दो वित्तीय वर्षों की रिपोर्ट (अगर एसोसिएशन दो साल से कम समय से काम कर रही
हो तो एक साल की)।
9. एसोसिएशन द्वारा पहले किये गए कार्यकरलापों और प्रस्तावित कार्यकलापों के बारे में एक टिप्पणी।
10. धारा 25 के तहत आवेदन पत्र देने के आधारभूत कारण, सक्षेप में।
11. प्रत्येक आवेदक द्वारा हस्ताक्षर किया गया एक घोषणा पत्र ।

           रिजनल डाइरेक्टर को आवेदन करने के एक सप्ताह के भीतर अनुलग्नक 2.XVII में दिए गए फार्म में एक नोटिस इस क्षेत्र के एक अंग्रेजी और एक विदेशी भाषा के समाचार पत्र में प्रकाशित किया जाना चाहिए जहां उसक रजिस्टर्ड कार्यालय हो । नोटिस की एक सत्यापित प्रतिलिपि रिजनल डाइरेक्टॉरेट में जमा कराई जानी चाहिए।
          समस्त नत्यी किये गये दस्तावेजों अन्य संबंधित दस्तावेजों के नाम आवेदन पत्र की एक प्रतिलिपि राज्य के उस इलाको के कम्पनी रजिस्ट्रार के कार्यालय में भेज दी जाए जहां कम्पनी अपना प्रस्तावित प्रधान कार्यालय /पंजीकृत कार्यालय स्थापित करना चाहती है।
          रिजनल डायरेक्टर द्वारा मेमोरेंडम और आर्टिकल्स के प्रारूप को अनुमति देने के पश्चात और फार्म 1-क रैफरेंस नम्बर/सर्विस रिक्वेस्ट नम्बर प्राप्त होने के बाद कम्पनी ई फार्म नं. 1, ई फार्म 13 तथा ई-फार्म 32 में अपने पंजीकरण के लिए कम्पनी रजिस्ट्रार को आवेदन करेगी और रिजनल डाइरेक्टर द्वारा मंजूर किया गया लाइसेंस प्रस्तुत करेगी और उसके साथ मेमोरेंडम और आर्टिकल्स की छपी हुई प्रतियां, रजिस्ट्रेशन के लिए अन्य आवश्यक दस्तावेज पेश करेगी और कम्पनी अधिनियम की अनुसूची X के अनुसार पंजीकरण उस कम्पनी के पंजीकरण का एक प्रमाण पत्र जारी कर देगा।

कम्पनी के रूप में पहले ही पंजीकृत संगठन

जो संस्था या संगठन एक कम्पनी या इकाई के रूप में पहले ही पंजीकृत हो, वह धारा 25के अधीन लाइसेंस प्राप्त करने के लिए ई-फार्म 24 क में (अनुलग्नक 2.XIII) कम्पनी ला बोर्ड को कई दस्तावेज के साथ आवेदन कर सकती है जिनमें से कुछ प्रमुख दस्तावेज निम्नलिखित हैं-

1. संगठन या संघ में मेमोरेंडम और आर्टिकल्स ।
2. कम्पनी के डायरेक्टरों, प्रबंधकों या सैक्रेटरी के नाम, पते, ब्यौरे और उनके व्यवसाय संबंधी सूची।
3. उन कम्पनियों संघों तथा अन्य संगठनों या संस्थाओं के नाम जिनमें आवेदक कम्पनी के डायरेक्टर काम कर रहे हो या कोई जिम्मेदार पद धारण करते हों।
4. पिछले दो वित्तीय वर्षों के लाभ-हानि खातों, बैलेंस शीट, वार्षिक रिपोर्ट और आडिट रिपोर्ट (यदि कम्पनी पिछले दो वर्षों से कम समय से काम कर रही हो तो केवल एक वर्ष के लिए।)
5. धारा 25 के अधीन आवेदन देने के आधारभूत कारण सक्षेप में।
6. प्रत्येक आवेदक द्वारा हस्ताक्षर किया गया एक घोषणा पत्र ।
7. समाचार पत्र में प्रकाशित नोटिस की एक सत्यापित प्रतिलिपि ।
8. कम्पनी की परिसम्पत्तियों तथा कार्यों का व्यौरा ।
9. खर्च और आय के स्रोत का अनुमानित विवरण।
10. कम्पनी द्वारा किए गए कार्य व्यापार और प्रस्तावित कार्य व्यापार का विवरण।

           आवेदनों की जांच करने और इस पर रजिस्ट्रार द्वारा की गई सिफारिशों पर विचार करके रिजनल डायरेक्टर लाइसेंस की स्वीकृति प्रदान कर देते हैं रिजनल डायरेक्टर उस कम्पनी को ऐसे निर्देश भी दे सकते हैं कि वे अपने मेमोरेंडम या आर्टिकल्स, या दोनों में लाइसेंस उन शत्तों को भी शामिल करें जिन्हें रिजनल डायरेक्टर, इस दृष्टि से निर्धारित किया हो।

संदर्भ
एन. जी. ओ. एवं समाजकार्य - संगीता नटराजन "मार्क पब्लिसर्स" जयपुर (पृष्ठ-१५०-१६४)


संपादन व संकलन

आनंद श्री कृष्णन
एम.एस.डब्लू, एम.बी.ए, पी.जी.डि. गांधी अध्ययन, 
हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा, भारत

Comments

  1. How to Play Baccarat - FEBCasino
    In 제왕 카지노 the game of Baccarat, the bettor can use his or 메리트 카지노 주소 her hand to make a single bet. In the game of Baccarat, the bettor 바카라 has to bet the entire bet.

    ReplyDelete

Post a Comment

Popular posts from this blog

अभिप्रेरणा अर्थ, महत्व और प्रकार

गांधी जी का रचनात्मक कार्यक्रम

शोध प्रारूप का अर्थ, प्रकार एवं महत्व