गैर सरकारी संगठन Non Government Organization अध्याय -3 कानून एवं एन.जी.ओ

गैर सरकारी संगठन Non Government Organization अध्याय -3 कानून एवं एन.जी.ओ

कानून एवं एन.जी.ओ.

NGO की मदद के लिये और कार्य संचालन हेतु पृथक से भी अनेक कानून बनाये गये हैं। NGO अपने उद्देश्यों की पूर्ति के लिए इन कानूनों को एक महत्वपूर्ण
साधन के रूप में प्रयोग में ला सकते हैं। इनमें से अधिकतर कानून मूलतः किसी व्यक्ति के साथ दुर्व्यवहार किये जाने या उसे शारीरिक एवं मानसिक क्षतिकारित अथवा उसकी संपत्ति को अपहृत करने या उसके हितों को दुष्प्रभावित करने से प्रतिबंधि
ति करते हैं। कानून के तहत, पीड़ित व्यक्ति उपचार के कुछ तरीके अपनाने का अधिकार रखता है । अगर कोई पीड़ित व्यक्ति कानून का दरवाजा खटखटाने की स्थिति में नहीं हैं तो स्वयंसेवी संगठन या NGO उसकी मदद कर सकते हैं। NGO की मुख्य भूमिका या कर्त्तव्य है, उन व्यक्तियों के कानूनी अधिकारों की रक्षा करने में सहायता करना।

बच्चों, महिलाओं के कल्याण, उपभोक्ताओं के अधिकार, नशीली और मादक दवाइयां या वस्तुएं, पशुओं के साथ अत्याचार, वन्य जीवों, पर्यावरण, प्रदूषण आदि से संबंधित विभिन्न कानूनों पर मूल अधिनियम, मार्गदर्शक (guidlines) और सामान्य पुस्तकें विभिन्न पुस्तक विक्रेता प्रतिष्ठानों से भी प्राप्त की जा सकती है।

बाल कल्याण

भारतीय संविधान में बाल कल्याण संबंधित अनेक संवैधानिक प्रावधान किए गए हैं जो निम्नलिखित हैं-

अनच्छेद 24 : चीदह वर्ष से कम आयु का कोई भी बालक किसी फैक्टरी या जोखिम वाले कार्यों में नियोजित नहीं किया जा सकता।

अनुच्छेद 39 (e) : कर्मचारियों, पुरुषों और महिताओं के स्वास्थ्य और शक्ति तथा बच्चों की नाजुक उम्र का दुरुपयोग नहीं किया जाएगा तथा नागरिकीं का उनकी आर्थिक विवशता के चलते गलत लाभ प्राप्त कर उनके जीवन और शक्ति हेतु हानिकारक उपव्यवसायों में सलंग्न करने में जोर-जबरदस्ती नहीं की जायेगी।

अनुच्छेद 39 (f) : बच्चों को स्वस्थ ढंग से और स्वतंत्रता तथा सम्मान के वातावरण में विकास करने के अवसर और सुविधाएं दी जाएंगी और उनके बचपन एवं युवावस्था को शोषण से तथा नैतिक और भौतिक उपेक्षा से बचाया जाएगा।

अनुच्छेद 41 : शासन अपनी आर्थिक सामर्थ्य और विकास की सीमाओं के अन्तर्गत, काम करने के अधिकार, शिक्षा पाने के अधिकार और बेरोजगारी,
वृद्धावस्था, बीमारी, अपंगता और जरूरतमंदों की आवश्यकताओं के अन्य मामले में सार्वजनिक सहायता उपलब्ध कराने के प्रभावशाली इंतजाम करेगा।

अनुच्छेद 45 : शासन संविधान के लागू होने से दस वर्ष की अवधि के भीतर सभी बच्चों को उनके चौदह वर्ष की आयु पूर्ण होने तक, निःशुल्क और अनिवार्य
शिक्षा प्रदान करने का प्रयत्न करेगा।

अनुच्छेद 47 : शासन अपने लोगों के पोषण के स्तर को बढ़ाने और जीवन स्तर को ऊँचा उठाने और जनता के स्वास्थ्य में सुधार लाने को उसके प्राथमिक कत्तव्य समझेगा और खास तौर पर शराब के सेवन एवं मादक औषधियों का प्रयोग आषधि से अन्य रूप में प्रतिबंधित करने का पूरा प्रयास करेगा। शासन की यह जिम्मेदारी है कि वह यह सुनिश्चित करे कि बच्चों का
दुरुपयोग न किया जाए और नागरिकों को उनकी आर्थिक आवश्यकताओं की मजबूरी का अनुचित लाभ उठाकर उन्हें आयु और स्वास्थ्य अनुपयुक्त कार्य करने हेतु विवश न किया जाए।

बाल मजदूरी (निषेध और विनियमन) अधिनियम 1986

इस अधिनियम का प्रमुख उद्देश्य बाल मजदूरी को प्रतिबंधित करना। यह कानून यह प्रावधान करता है कि 14 वर्ष से कम उम्र के बच्चों को फैक्टरियों या जोखिम वाले कामों में न लगाया जाए। इसमें 18 उद्योगों की एक सूची तैयार की गई है जो खतरनाक हैं क्योंकि वे स्पष्ट रूप से बच्चों के लिए हानिकारक हैं। इनमें बीड़ी बनाना, कालीन बुनना, सीमेंट उद्योग, माचिस, विस्फोटक पदार्थ और पटाखे आदि शामिल हैं।

इस अधिनियम के अनुसार अन्य संस्थानों में काम करने वाले बच्चों के लिए काम का समय (घंटे), काम की अवधि, साप्ताहिक अवकाश आदि का भी प्रावधान किया गया है।

NGO के कार्यकर्ताओं को अवश्य ही सरकारी कर्मचारियों के साथ सहयोग करना चाहिए तथा बच्चों को जोखिम वाले कार्यों से पृथक करने के लिये वैकल्पिक तरीके तलाश करने चाहिए। जमीनी स्तर पर लोगों को बाल मजदूरी को समाप्त करने और बाल मजदूरों के पुनर्वास के लिए पहल करनी चाहिए।

हिन्दू दत्तक और संरक्षण अधिनियम 1956 (Hindu Adoption and Main - tenance Act,1956)

इस अधिनियम की धारा 20 में यह प्रावधान है कि प्रत्येक हिंदू व्यक्ति चाहे वह पुरुष हो या महिला, अपने जीवन काल में अपने वैध या अवैध संतति के पालन
पोषण हेतु दायित्वाधीन है। एक वैध/अवैध बच्चा जब तक नाबालिग (18 वर्ष से कम आयु का) होता है तब तक अपने पिता या माता से भरण-पोषण (संरक्षण) की मांग कर सकता है। 'भरण-पोषण' (संरक्षण) की परिभाषा में खाद्य सामग्री, वस्त्र, रिहायश, शिक्षा और चिकित्सा देखभाल एवं उपचार शामिल हैं। अविवाहित पुत्री के मामले में, उसके विवाह पर होने वाला उपयुक्त खर्च भी इसमें शामिल है।

भारतीय वयस्कता अधिनियम 1875

इस अधिनियम में यह व्यवस्था की गई है कि भारत का प्रत्येक निवासी, निम्नलिखित मामलों को छोड़कर, 18 वर्ष की आयु पूर्ण कर लेने पर वयस्क (बालिग) हो जाता है ।

(i) वे व्यक्ति जिनके बारे में या जिनकी सम्पत्ति या दोनों के बारे में अभिभावक (guardian) नियुक्त किया गया हो,

(ii) वे व्यक्ति जिनकी सम्पत्ति के बारे में देख-रेख की जिम्मेदारी किसी अभिभावकों के न्यायालय ने ली हो,
इन मामलों में 21 वर्ष पूरे होने पर ही व्यक्ति बालिग माना जाएगा।

किशोरों के लिए न्याय (बच्चों की देखभाल और सुरक्षा) अधिनियम 2000

इस अधिनियम में किशोरीं के विकास की जरूरतों को पूरा कर उन्हें समृचित देखभाल, सुरक्षा और सद्व्यवहार प्रदान करने, बच्चों के सर्वोत्तम हित से संबंधित पामलों में विचार और फैसला करते समय मैत्री भाव रखने तथा विभिन्न संस्थाओं के माध्यम से उनको पुनर्वासित करने का प्रावधान किया गया है। अधिनियम एक किशोर या बच्चे, जिसने 18 वर्ष पूरे न किये हों, की देखभाल और सुरक्षा के लिये है। कानून की नजर में एक बाल अथवा किशोर अपराधी वह होता है जिस पर कोई अपराध करने का आरोप हो। इस अधिनियम में NGO की भूमिका इस प्रकार है-

(i) कानून से संघर्ष कर रहे अल्प वयस्कों के अस्थायी आवास के लिए निरीक्षण गृह स्थापित करना जिनमें उन्हें उनके विरूद्ध चल रही जाँच के दौरान रखा जाए,

(i) कानून से संघर्ष कर रहे अल्प वयस्कों के आवास और पुनर्वास के लिए विशेष प्रयास किये जाएं।

(iii) अल्प वयस्क न्याय बोर्ड के समक्ष अल्प वयस्क पर एक सामाजिक जाँच रिपोर्ट प्रस्तुत करना ताकि बोर्ड उस पर यथोचित आदेश पारित करे,

(iv) बाल कल्याण समिति के समक्ष किसी बच्चे को पेश करना जिसे देखभाल और की सुरक्षा

(v) किसी जाँच के चलते जिन बच्चों को देखभाल और सुरक्षा की जरूरत है। और बाद में उनकी उपचार, शिक्षा, प्रशिक्षण विकास और पुनर्वास के लिए बाल गृह स्थापित करना, आवश्यकता है।

(vi) जिन बच्चों को तुरन्त सहायता की आवश्यकता है उनके लिए आश्रय गृह स्थापित करना जो उनके लिए ड्राप-इन-सेंटर का काम करेंगे,

(vii) गोद लेने, पालन पोषण देखभाल, प्रयोजन और बच्चे को किसी परिचर्या संगठन में भेजकर, बाल गृह या विशेष गृह में रह रहे बच्चों के पुनर्वास और सामाजिक की व्यवस्था करना,

(viii) बच्चों या अल्प वयस्कों के बाल गृह या विशेष गृह छोड़ने के बाद उनकी देखभाल के उद्देश्य से परिचर्या संगठन स्थापित करना जिससे कि वे वयस्कता प्राप्त हाने पर सत्यनिष्ठा के साथ श्रम करते हुए समाजोपयोगी जीवन व्यतीत कर सकें।

यह अधिनियम निम्नलिखित स्थितियों में दण्ड का प्रावधान करता है-

(अ) किसी अल्प वयस्क या बच्चे पर प्रहार या उसके साथ नृशसता का व्यवहार 

(ब) किसी बच्चे को काम पर रखना या उसका अपने हितार्थ अनुचित प्रयोग करना या उससे भीख मांगने का काम कराना,

(स) किसी अल्प वयस्क या बच्चे को मादक शराब या कोई प्रमादक औषधि या मनश्चेतक वस्तु देना या देने के लिए मजबूर करना,

(द) किसी खतरनाक नौकरी पर लगाने के लिए किसी अल्प वयस्क या वच्चे का दुरुपयोग करना, उसे बंधक रखना और उसकी कमाई राशि उसे न देना या राशि
को अपने लिए प्रयोग में लाना।

बाल विवाह निषेध अधिनियम 1929

इस अधिनियम के अंतर्गत बाल विवाह को निषिद्ध घोषित किया गया है। 'बाल विवाह' एक ऐसा विवाह है जिसमें पुरुष ने 21 वर्ष की आयु पूरी न की हो और महिला ने 18 वर्ष की आयु पूरी न की हो । इस अधिनियम में निम्नलिखित के लिए दण्ड का प्रावधान है-

(a) पुरुष वयस्क जो बाल विवाह का संबंध बनाता है,

(b) व्यक्ति जो बाल विवाह करवाता है या उसका निर्देश देता है,

(c) नाबालिग बच्चे के माता-पिता या संरक्षक जो बाल विवाह कराते हैं।

इसके अतिरिक्त, न्यायालय को यह जानकारी मिले या शिकायत प्राप्त हो कि बाल विवाह की व्यवस्था की जा रही है या वह होने वाला है तो न्यायालय उस विवाह को स्थगित कर सकता है।

महिला कल्याण

भारतीय संविधान में महिला कल्याण से संबंधित कल्याण से संबंधित कई अधिनियम बनाएं है जिनमें से कुछ अधिनियम निम्न प्रकार है-

प्रसूति लाभ अधिनियम 1961

इस अधिनियम का उद्देश्य शिशु जन्म के पूर्व तथा जन्म के पश्चात् कुछ के समय-काल में महिला कर्मचारियों के रोजगार को नियंत्रित करना और मैटर्निटी और कुछ अन्य लाभों की व्यवस्था करना है। इस अधिनियम के अंतर्गत सभी फैक्टरियां, खदानें, बागान, घुड़सवारी, कलाबाजी और अन्य कर्तब के प्रदर्शन में कार्यरत संस्थाएं और दुकान और आती हैं, जहां एक वर्ष के दीौरान किसी एक समय पर 10 या इससे अधिक व्यक्ति काम पर रखे गए हों (सिवाय उनके जो ESIAct के दायरे में आते हैं।

यह अधिनियम व्यवस्था देता है कि वह प्रत्येक महिला कर्मी जिसने अपने शंभावित प्रसव से तुरंत बारह महीनों की अवधि के दौरान न्यूनतम 80 दिन कार्य
किया हो तो वह अग्रलिखित लाभ लेने का हक रखती है-

(i) 12 सप्ताह की अवधि के लिए प्रसूति अवकाश जो कि प्रसव (delivery) से पहले या बाद में ली जा सकती है और 

(ii) औसत दैनिक वेतन की दर पर, अपनी वास्तविक अनुपस्थिति की अवधि के लिए प्रसूति लाभ ।

इसके अतिरिक्त एक महिला कर्मचारा गर्भपात, चिकित्सकीय गर्भ समाप्ति (medical termination of pregnancy) ट्यूबैक्टोमी आपरेशन, गर्भ धारण, डिलिवरी, बच्चे का समय-पूर्व जन्म या ट्यूबेक्टोमी आपरेशन से संबंधित रोग के होने पर भी प्रसूति लाभ प्राप्त करने का अधिकार रखती है।

महिला कर्मचारी जो प्रसूति लाभ की अधिकारी है, उसको 250 रुपये का मेडिकल बोनस भी दिया जाएगा।

इसके अतिरिक्त प्रत्येक महिला जब बच्चे के जन्म के उपरांत अपने कार्य पर लौटती है तो उसे बच्चे के 15 माह के होने तक प्रत्येक कार्य दिवस में 15-15 मिनट के परिचय्या विश्राम प्रदान किये जायेंगे।

यह अधिनियम नियोक्ता के लिये निम्नलिखित दायित्व निर्धारित करता

(i) प्रसूति लाभ और मेडिकल बोनस का भुगतान,

(ii) बच्चे की देखभाल हेतु परिचर्या विश्राम देना,

(ii) महिला कर्मचारी को उसके प्रसव, गर्भपात या चिकित्सकीय गर्भ समाप्ति की तारीख के तुरन्त बाद 6 सप्ताह की अवधि तक काम पर नहीं रखना,

(iv) किसी गर्भवती महिला कर्मचारी से कोई श्रम-साध्य काम जिसमें लम्बे समय तक खड़ा रहना पड़े या कोई ऐसा काम जो उसके गर्भावस्था पर विपरीत प्रभाव डाले या गर्भपात का कारण बने या उसकी सेहत पर बुरा असर डाले, संभावित प्रसूति
से पहले से छह हफ्ते से एक मास पूर्व की अवधि के दौरान काम नहीं करवाना ।

(v) प्रसूति छुट्टी के दौरान उस गर्भवती महिला कम्मचारी को नौकरी से नहीं निकालना या नौकरी से बर्खास्त नहीं करना।

उक्त प्राविधानित दायित्वों की उपेक्षा करने पर नियोक्ता को दण्डित किया जा सकता है।

परन्तु, ठेकेदार या प्राइवेट नियोक्ताओं (employers) द्वारा उपरोक्त दायित्वों की निर्वाह किया जा रहा है, इस हेतु कुछ भी निश्चित नहीं किया जा सकता है।
कई मामलों में प्रसूति अवकाश नहीं दिया जाता और गर्भवती भहिलाओं को अपनी

नौकरी छीड़नी पड़ती है। इसके अतिरिक्त न तो क्रव सुविधाएं दी जाती हैं और न ही माताओं की शिशुशओं की स्तन पान कराने की इजाजत दी जाती है। समान पारिश्रमिक अधिनियम 1970 इस अधिनियम के तहत पुरुषों और महिला कर्मचारियाँ को एक ही काम पर या समान प्रकार के काम पर रखने पर समान पारिश्रमिक दैने की व्यवस्था है और साथ ही रोजगार के मामले में लिंग के आधार पर महिलाओं के साथ मेदमाव वरतने पर रोक है। यह अधिनियम लगभग सभी तरह की संस्थाओं पर लागू होता है।

दहेज निषेध अनिघनियम 1961

इस अधिनियम में दहेज देने या लेने पर प्रतिबंध लगाया गया है। दहेज का अर्थ है कोई सम्पत्ति या मूल्यवान प्रतिभूति जी विवाह से पूर्व या विवाह के।
सीधे या परोक्ष रूप में, विवाह से संबंधित किसी एक पक्ष (या वर-वधु माँ-बाप या किसी अन्य व्यक्ति) द्वारा किसी दूसरे पक्ष (या वर-वधु के मॉ-बाप या किसी अन्य व्यक्ति) को दी गई हो या देना स्वीकार किया गया हो।

इस अधिनियम में निम्नलिखित के लिए दण्ड का प्रावधान है-

1. दहेज देना या लेना या दहेज देने या लेने के लिए प्रेरित करना, 

2. किसी दुल्हन या दूल्हे के माँ-बाप, रिश्तेदारों या संरक्षक से दहेज की मांग करना,

3. दहेज देने के प्रस्ताव से संबंधित विज्ञापन प्रकाशित करना।

4. दहेज की पेशकश करने वाले किसी विज्ञापन को छापना, प्रकाशित करना या वितरित करना,

5. दुल्हन के अतिरिक्त किसी दूसरे व्यक्ति द्वारा प्राप्त किए गए दहेज को दुल्हन को हस्तांतरित न करना।

दहेज देने और लेने से संबंधित कोई भी करार रद्द माना जायेगा ।

इसके अंतर्गत यह भी अधिनियम बनाया गया है कि दुल्हन के अलावा किसी भी अन्य व्यक्ति से प्राप्त दहेज की वस्तु, अधिनियम के प्रावधानों के मुताबिक दुल्हन
की हस्तांतरित कर दी जाएगी और जब तक वह हस्तान्तरित नहीं की जाती है, उस दुल्हन के हितार्थ धघरोहर के तौर पर सुरक्षित रखा जाएगा । 

यह अधिनियम यह भी व्यवस्था देता है कि, इस अधिनियम के अंतर्गत आने वाले विवादों का निपटारा मेट्रोपोलिटन मेजिस्ट्रेट प्रथम श्रेणी के मेजिस्ट्रेट के सम्मुख या इनके उच्च श्रेणी के न्यायालयों में ही किया जाएगा। न्यायालय किसी अपराध का संजञान (congizance) स्वयं या पुलिस प्रतिवेदन या किसी पीड़ित व्यक्ति या उसके किसी रिश्तेदार या किसी स्वयंसेवी संगठन की शिकायत पर कर सकता है।

सती प्रथा (निषेध) अघिनियम 1987

यह अधिनियम सती प्रथा का उन्मूलन करने के लिये बनाया गया है। अधिनियम की धारा 2 (c) में 'सती' की परिभाषा में निम्नलिखित व्यक्ति को जिन्दा
अग्नि में जलाना या जमीन में गाड़ दिया जाना, आता है-

1. विधवा को उसके मृतक पति या उसके किसी रिश्तेदार या उसके पति से या उत रिश्तेदार से जुड़ी किसी वस्तु, पदार्थ या मद के साथ;

2. किसी स्त्री को उसके किसी रिश्तेदार के शव के साथ, चाहे यह जलाना या जमीन में गाड़ना उस विघवा या उस महिला की अपनी मर्जी से किया जा रहा हो या अन्यथा हो।

निम्नांकित परिस्थितियों में यह अधिनियम दंड का प्रावधान करता है-

1. कोई व्यक्ति जो महिला को सती होने के लिए विवश करता है या सती होने के लिए कोई कार्रवाई करता है,

2. कोई व्यक्ति, जो महिला को सती होने के लिए प्रेरित करता है या

निम्नलिखित कार्रवाई के द्वारा सती होने की कोशिश के लिए उकसाता है-

(अ) किसी विधवा या किसी स्त्री को उसके मृतक पति के शव या उसके किसी रिश्तेदार के शव के साथ आग में जलने या जीवित ही जमीन में दफन होने के लिए सहमत करना।

(ब) किसी विधवा या स्त्री को यह विश्वास दिलाना कि सती होने का परिणाम यह होगा कि उसको या उसके मृतक पति को या रिश्तेदार को आध्यात्मिक लाभ
पहुँचेगा या उसके परिवार का इससे कल्याण होगा,

(स) किसी विधवा या स्त्री को सती होने के निर्णय पर डटे रहने हेतु उत्साहित करना और इस प्रकार उसको सती होने के लिए उकसाना,

(द) सती होने से संबंधित किसी जुलूस में भाग लेना या किसी विधवा या किसी स्त्री को सती होने के अपने निर्णय लेने में सहायता देते हुए उसे, उसके मृतक
पति या रिश्तेदार के शव के साथ दाह संस्कार स्थल या कब्रिस्तान में लेकर जाना।

(य) जिस स्थान पर सती कांड हो रहा हो, वहाँ उस क्रियाकलाप में सक्रिय भागीदारी और तत्संबंधी किसी संस्कार में सहभागिता निभाना।

(र) किसी विधवा या स्त्री को उसके अग्नि में जलने या जिन्दा जमीन में गाड़ने से बचाने में बाधा डालना और रुकावट पैदा करना,

(ल) अगर किसी महिला को सती होने से बचाने के लिए पुलिए अपनी डयटी निभाते हुए कोई कदम उठाती है तो उसमें बाधा डालना और दखल देना,  

3. कोई भी व्यक्ति अगर सती होने के क्रियाकलापों को बढ़ावा देता है, जैसे कि सती संबंधी किसी संस्कार में दर्शक बनता है या सती के उसमें सहयोग देता है, सती प्रथा को सही ठहराता है या उसका प्रचार करता है या जो महिला सती हो चुकी है, उसकी प्रशंसा के लिए समारोह आयोजित करता है।

इस अधिनियम के तहत गठित अदालतें, घटना के तथ्यों की शिकायत प्राप्त होने या उन तथ्यों पर पुलिस की रिपोर्ट प्राप्त होने पर अपराध का संज्ञान करेंगी।

व्यभिचार (निषेध) अधिनियम 1986

इस अधिनियम के अन्तर्गत यौन शोषण एवं महिलाओं और बच्चों का दुरुपयोग रोकने, देह-व्यापार के शिकार व्यक्तियों तथा चारित्रिक खतरे में पड़े व्यक्तियों को बचाने तथा उनके पुनर्वास के बारे में प्रावधान किया गया है।

इस अधिनियम में 'वेश्यावृत्ति' की परिभाषा में, यौन शोषण या किन्हीं व्यक्तियों का व्यापारिक उद्देश्य के लिए दुरुपयोग करना बताया गया है। स्पष्ट है। कि किसी स्त्री द्वारा अपना शरीर किराये पर देने के अलावा किसी पुरुष या बच्चे का यौन शोषण अथवा उनकी खरीदफरोक्त भी वेश्यावृत्ति घोषित की गयी है।

इस अधिनियम में बच्चे की परिभाषा में वह व्यक्ति आता है जिसने 16 वर्ष की आयु पूरी नहीं की है। नाबालिग वह व्यक्ति है जो सोलह साल का हो गया है।
लेकिन 18 वर्ष की आयु पूरी नहीं की है और बालिग वह व्यक्ति है जिसने 18 वर्ष की आयु पूरी कर ली है । यह आयु-भेद बड़ा महत्वपूर्ण है क्योंकि नाबालिगों के साथ व्यभिचार के संदर्भ में बालिगों की अपेक्षा अधिक कड़ा दंड दिये जाने का प्रावधान है।

वेश्यावृत्ति हालांकि कानूनी तौर पर पूर्णतः निषिद्ध नहीं है। यदि वेश्या 18 वर्ष की से ऊपर है और वह शान्तिपूर्वक और स्वेच्छा से किसी से यौन संबंध आयु बनाती है तथा उसकी गतिविधियां सार्वजनिक स्थलों एवं तत्संबंधी अधिसूचित स्थानों से पृथक हैं तो यह कानून के विरुद्ध नहीं है । तथापि वेश्यावृत्ति निम्नलिखित मामलों में गैर-कानूनी है- 

1. वेश्यालय संचालन करना,

2. वेश्यालय चलाने हेतु किसी को उकसाना,

3. वेश्यावृत्ति की कमाई पर जीना,

4. वेश्यावृत्ति के लिए किसी व्यक्ति को लाना और उसे उकसाना,

5. जाहाँ दैहिक व्यापार हो रहा हो, उस स्थान पर किसी व्यक्ति को बन्धक रखना,

6. सार्वजनिक स्थानों पर या उसके दायरे में वेश्यावृत्ति चलाना,

7. सार्वजनिक स्थानों पर वेश्यावृत्ति के लिए उकसाना,

8. वेश्यावृत्ति के उद्देश्य से फुसलाना और भड़काना,

9. अपनी परिरक्षा में आये हुए किसी व्यक्ति का दैहिक शोषण करना।

इस अधिनियम के उद्देश्यों के लिए विशेष पुलिस, अवैध देह व्यापार पुलिस अधिकारियों और विशेष अदालतों की नियुक्ति की गई है इनके अतिरिक्त इस
में प्रावधान है कि गैर-सरकारी सलाहकार निकायों की सेवाओं का लाभ कानून उठाया जाए जिसमें इलाके के अधिक से अधिक पाँच समाज सेवक शामिल हों।
ये समाज सेवक और सामाजिक संगठन, विशेष पुलिस अधिकारियों को सलाह देंगे और मजिस्ट्रेटों को रक्षित पीड़ित व्यक्तियों की आयु, चरित्र और पूर्व वृत्तान्त जानने में सहायता करेंगे और उन लोगों के पुनर्वास और उन्हें सुरक्षित गृहों या सुधारक संस्थानों में रखने की व्यवस्था करेंगे।

महिलाओं का अश्लील प्रदर्शन (निषेध) अधिनियम 1986

इस अधिनियम के अन्तर्गत, विज्ञापनों या प्रकाशनों, लेखों, चित्रों या किसी अन्य तरीके से महिलाओं के अश्लील प्रदर्शन के निषेध और उनसे संबंधित मामलों
के लिए प्रावधान है।

अधिनियम की धारा 2 (c) में 'महिला के अश्लील प्रदर्शन' की परिभाषा में किसी महिला के शरीर, उसकी शारीरिक बनावट उसके शरीर के किसी अंग को ऐसे तरीके से पेश करना जो महिलाओं को अश्लील या अपमानजनक या अवमानित
तन करता हो या जनता के चरित्र या आचार व्यवहार को भ्रष्ट, दूषित करता हो या क्षतिकारित करता हो, शामिल है ।

इस अधिनियम की किसी भी धारा के उल्लंघन करने वाले व्यक्ति को आर्थिक दंड एवं कारावास की सजा दोनों देने का प्रावधान है।

चिकित्सकीय गर्भ समापन अधिनियम 1971

इस अधिनियम में प्रत्यक्ष गर्भपात से संबंधित चयन के अधिकारों को प्रावधानित किया जाता है । धारा 4 के अंतर्गत, चिकित्सा द्वारा गर्भ नष्ट करने का कार्य सिर्फ उन परिस्थितियों में किया जाता है जब गर्भवती स्त्री का जीवन बचाने हेतु ऐसा आवश्यक हो अथवा बलात् गर्भधारण करवाया गया ही या भ्रूण अपसामान्य प्रतीत होता हो या गर्भावस्था को जारी रखना मानसिक तनाव का कारण हो सकता है । इस अधिनियम के तहत गर्भपात सरकार द्वारा अनुमोदित स्थान या अस्पताल में ही कराया जा सकता है और वह भी किसी प्रशिक्षित मेडिकल प्रैक्टिशनर द्वारा ।
यह सुविधा पर्याप्त रूप में ग्रामीण या किसी दूरदराज के इलाकों में रहने वाली महिलाओं के लिए उपलब्ध नहीं है तथा इस बारे में अक्सर संबंधित पुरुष ही चयन
करता है कि गर्भ गिराया जाए या नहीं।

प्रसवपूर्व जाँच तकनीक नियमन और रोकथाम अधिनियम 1994

यह एक ऐसा अधिनियम है जिसके अंतर्गत प्रसव से पहले गर्भ में लिंग की जाँच और उसका निर्धारण करने के लिए प्रयोग में लाई जाने वाली विभिन्न प्रकार
की तकनीक, जिसमें अल्ट्रासाउंड भी शामिल है, को नियमित करने के लिए प्रावधान है और सिर्फ लिंग के आधार पर लड़की पैदा होने की संभावना पर गर्भ को गिराने वाले डॉक्टरों को दण्ड देने का उल्लेख भी किया गया है। इसके अलावा भी इस प्रकार के नियमों के कुख्यात उल्लंघन, अधिकांश मामलों में बिना दण्ड पाये ही रह जाते हैं। यह अधिनियम, लिंग का पहले चयन करने की धीरे-धीरे बढ़ती हुई प्रवृत्ति को
नियंत्रित करने में सफल नहीं हो सका।

वृद्ध लोगों का कल्याण

भारतीय संविधान में वृद्ध एवं असहाय व्यक्तियों के कल्याण हेतु अधिनियम बनाया गया है जो निम्नलिखित हैं-

हिन्दू दत्तक ग्रहण और संरक्षण अधिनियम 1956

इस अधिनियम की धारा 20 में यह प्रावधान किया गया है कि प्रत्येक व्यक्ति का दायित्व बनता है कि वह अपने बूढ़े या असहाय माता-पिता की देखभाल करें,
ऐसी हालत में अवश्य ही, जब वे अपनी आय या अपनी सम्पत्ति से अपना भरण-पोषण करने में असमर्थ हों । 'माँ-बाप में वह सम्तेली माँ भी आती है जिसक पास कोई औलाद न हो। देखभाल में भोजन, कपड़े, आवास, शिक्षा और चिकित्सा सहायता और अपचार आदि को सम्मिलित किया जाता है । पालन पोषण के लिए रकम का निर्णय अदालत द्वारा उनकी स्थिति एवं प्रतिष्ठा, माता-पिता की उपयुक्त आवश्यकताएं, उनकी सम्पत्ति का मूल्य और उससे प्राप्त होने वाली आय आदि को ध्यान में रखकर किया जाएगा।

आपराधिक प्रक्रिया संहिता 1973

किसी भी जुड़िशियल न्यायाधीश को कोड आफ क्रिमिनल प्रोसीजर, 1973 की धारा 125 यह अधिकार प्रदान करती है कि वह अपनी पल्नी, बच्चों व अथवा माता-पिता हेतु जो अपना जीवनयापन करने में सक्षम न हों के पालन-पोषण करने के निमित्त आदेश जारी करे । इस प्रावधान के तहत दी जाने वाली राहत दीवानी प्रकार की है तथा आपराधिक प्रक्रिया इसलिये अपनायी जाती है ताकि असहाय पली, बच्चे या माता-पिता को किसी प्रकार की समस्याओं का सामना न करना पड़े।

यह आदेश उन व्यक्तियों को दिया जाता है जिनके पास भरण-पोपण की रकम देने के लिए पर्याप्त साधन हों। भरण-पोषण भत्ते के रूप में अधिक से अधिक
500 रुपये प्रति माह की रकम का फैसला दिया जा सकता है।

मानसिक तौर पर रोगी व्यक्ति का कल्याण

मानसिक तौर पर रोगी व्यक्ति के कल्याण हेतु मानसिक स्वास्थ्य अधिनियम बनाया गया है जिस पर संक्षिप्त प्रकाश नीचे डाला जा रहा है-

मानसिक स्वास्थ्य अधिनियम 1987

भारतीय संविधान में सन् 1987 में मानसिक स्वास्थ्य अधिनियम बनाया गया जिसके अंतर्गत मानसिक तौर पर रोगी व्यक्तियों के इलाज और उनकी देखभाल की
व्यवस्था करने, उनकी सम्पत्ति और मामलों तथा इससे संबंधित मामलों के लिए विशेष रूप से प्रावधान किया गया इस अधिनियम के आधार पर पुलिस चौकी का
इंचार्ज प्रत्येक अधिकारी (थानेदार) विभिन्न प्रकार के रोगी व्यक्तियों को सुरक्षा प्रदान करने के अधिकार रखता है जो निम्नलिखित हैं-

1. कोई व्यक्ति जो उसकी पुलिस चौकी की सीमाओं में है जिसके बारे में उसे यह विश्वास हों कि वह मानसिक रोगी होने के कारण खतरनाक हो सकता है।

2. कोई व्यक्ति जो उसकी पुलिस चौकी के इलाके की सीमाओं में घूमता फिरता हुआ नजर आये और जिसके बारे में उसे यह विश्वास करने के कारण हों, कि वह मानसिक तौर पर रोगी है और अपनी देखभाल स्वयं नहीं कर सकता। 

उपरोक्त मानसिक पीड़ित लोगों को 24 घंटे में मजिस्ट्रेट के सामने प्रस्तुत किया जायेगा। इसके अलावा मजिस्ट्रेट उस व्यक्ति की समझ बूझ की जाँच करेगा और चिकित्सा अधिकारी से उसकी जाँच करायेगा और आवश्यक पूछताछ करगा।

मजिस्ट्रेट उस व्यक्ति को अन्तरंग रोगी के रूप में इलाज कराने के लिए किसी मानस रोग अस्पताल या नर्सिंग होम में दाखिल करने का आदेश जारी कर सकता है इसके अलावा इस अधिनियम में यह भी प्रावधान किया गया है कि यदि किसी व्यक्ति को किसी तरीके से यह पता लग जाए कि अमुक व्यक्ति मानसिक रोगी है और वह उचित देखभाल और नियंत्रण में नहीं है या उसके रिश्तेदार उसके साथ अच्छा व्यवहार नहीं करते हैं तो वह ऐसे व्यक्ति के संदर्भ में मजिस्टेट से शिकायत कर सकता है।

उपभोक्ता अधिकार

उपभोक्ता संबंधित कुछ प्रमुख अधिकार निम्न प्रकार है-

उपभोक्ता सुरक्षा अधिनियम, 1986

इस अधिनियम का प्रमुख उद्देश्य उपभोक्ताओं के हितों को बेहतर सुरक्षा प्रदान करना और उपभोक्ताओं के विवादों और उनसे संबंधित मामलों का समाधान
करना है। इस अधिनियम के अनुसार 'उपभोक्ता' का अर्थ है-कोई भी व्यक्ति जो कोई वस्तुएं खरीदता है या कोई सेवा प्राप्त करता है या उसका उपयोग करता है तथा उसका पूर्ण भुगतान करके या किश्तों में या hire purchase आधार अथवा कोई व्यक्ति बिना किसी भुगतान के सामान का प्रयोग करता है या सेवाओं का लाभ उठाता है। इनके अतिरिक्त वे लोग जिन्हें हाउसिंग एण्ड डिवेलपमेंट बोर्ड द्वारा प्लाट अलॉट किए गए हैं, सरकारी अस्पतालों/प्राइवेट नर्सिंग होम में इलाज कराने वाले रोगी, स्टाक-ब्रोकर के जरिये शेयर खरीदने/बेचने वाले व्यक्ति, रेलवे यात्री आदि को
भी उपभोक्ता की संज्ञा प्रदान की गयी है। उपभोक्ता सुरक्षा अधिनियम 1986 के अनुसार उपभोक्ताओं को विभिन्न अधिकारों को प्रचारित करने और उनकी रक्षा करने के बारे में प्रावधान किया गया है जिसे निम्नलिखित पंक्तियों में स्पष्ट किया गया है-

1. जहाँ भी संभव हो, वह विभिन्न प्रकार की वस्तुओं और सेवाओं को प्रतियोगी मूल्यों पर प्राप्त करें, इस आश्वासन का अधिकर;

2. यथोचित फोरम पर सुनवाई और उपभोक्ताओं के हितों के प्रति उपयुक्त ध्यान दिया जाएगा, इस आश्वासन का अधिकार;

3. जो वस्तुएं या सेवाएं जीवन या सम्पत्ति के लिए घातक हों, उनकी मार्केटिंग के खिलाफ उपभोक्ता की सुरक्षा का अधिकार;

4. वस्तुओं और सेवाओं की गुणवत्ता, मात्रा, शक्ति, शुद्धता, मानक और मूल्य जैसी भी स्थिति हो, की जानकारी प्राप्त करने का अधिकार है ताकि अनुचित
व्यापारिक प्रथाओं के विरुद्ध उसको बचाया जाए और रक्षा की जाए;

5. उपभोक्ता को शिक्षित करने का अधिकार ए्वं

6. अनुचित व्यापारिक पद्धतियों, या प्रतिबंधी व्यापारिक पद्धतियों, या धोखाधड़ी द्वारा शेषण के खिलाफ उसकी क्षतिपूर्ति की मांग करने का अधिकार।

सैवा संबंधी शिकायत

उपभोक्ता सुरक्षा अधिनियम 1986 के अनुसार किसी वस्तु अथवा सेवा के संदर्भ में विभिन्न व्यक्तियों द्वारा शिकायत की जा सकती है जो निम्नलिखित हैं-

1. एक या एक से अधिक उपभोक्ताओं द्वारा, अगर उनके समान हित हों,

2. उपभोक्ता की मृत्यु होने पर उसके उत्तराधिकारी या प्रतिनिधि द्वारा।

3. उपभोक्ता द्वारा स्वयं;

4. किसी मान्यता प्राप्त उपभोक्ता संघ द्वारा;

5. कैन्द्रीय या राज्य सरकार द्वारा ।

उपरोक्त वर्णित शिकायत यदि मुआवजे की मांग 20 लाख रुपये से अधिक न हो तो डिस्ट्रिक्ट फोरम के समक्ष (जिला स्तर पर स्थापित) या जब मुआवजे की रकम की मांग 20 लाख रुपये से अधिक हो लेकिन 1 करोड़ रुपये से अधिक न हो तो राज्य आयोग (राज्य स्तर पर स्थापित) के समक्ष और अन्य मामलों में राष्ट्रीय आयोग के समक्ष प्रस्तुत की जा सकती है। उक्त अधिकारी यदि शिकायत के संदर्भ में संपूर्ण रूप से
जाँच पड़ताल करने के बाद यदि संतुष्ट हो जाते हों तो वे दूसरे पक्ष को उपयुक्त आदेश दे सकते हैं जिसमें पीड़ित पक्ष को मुआवजा और खर्च देना शामिल होगा।

खाद्य अपमिश्रण रोकथाम अधिनियम 1954

किसी भी खाने वाली वस्तु या खाद्य सामग्री में मिलावट को रोकना इस अधिनियम का प्रमुख उद्देश्य है। खाद्य सामग्री का अर्थ है, कोई वस्तु जो मानव के
खाने या पीने के रूप में उपयोग में लाई जाती है। सिवाय दवाइयों और पानी के और इसमें वह वस्तुएं भी शामिल है जो सामान्यतः मानव खाद्य सामग्री बनाने और तैयार करने में प्रयोग में लायी जाती हैं, जैसे कि सुगंध पैदा करने वाले पदार्थ, मसाले और कन्द्र सरकार द्वारा घोषित अन्य चीजें। निम्नलिखित खाद्य वस्तुओं में मिलावट करार दिया जाएगा-

1. किसी रोगी जानवर या पशु से प्राप्त की गयी खाद्य सामग्री को भी मिलावट की श्रेणी में रखा जाएगा।

2. यदि वस्तु में कोई जहरीला या अन्य ऐसा कोई तत्व हो जो स्वास्थ्य के लिए घातक हो;

3. यदि वस्तु का कन्टेनर किसी जहरीले या घातक विषैले तत्व से बना हो, जिससे उसमें रखी गयी वस्तुएं स्वास्थ्य के लिए घातक हों;

4. यदि वस्तु में प्रतिबंधित रंग तत्व या परिरक्षक तत्व हो या कोई स्वीकृत रंग तत्व या परिरक्षक तत्व निर्धारित सीमा से अधिक हो;

5. यदि वस्तु की गुणवत्ता या शुद्धता निर्धारित मानक (स्टैंडर्ड) से नीचे के स्तर की हो, या उसके घटक निर्धारित औसत में न हों, भले ही उनका सेहत पर घातक प्रभाव पड़े या न पड़े,

6. यदि विक्रेता द्वारा बेची गई वस्तु खरीदार की मांग के मुताबिक या जैसा उस होना चाहिए, उस प्रकृति, वस्तु तत्व या गुणवत्ता की नहीं है;

7. यदि किसी वस्तु में कोई ऐसे पदार्थ की मिलावट की गयी हो जिनके कारण गुणवत्ता व विशेषता पर प्रतिकूल असर पड़ता है अथवा उसके बनाने की वस्तु की विधि उसकी प्रकृति, वस्तु तत्व या गुणवत्ता पर घातक प्रभाव डालता हो;

8. यदि वस्तु को पूर्णतया या आंशिक रूप से किसी घटिया या सस्ती परिवर्तित कर दिया गया हो अथवा वस्तु के किसी पदार्थ को पूर्णतया या आंशिक रूप से निकाल लिया गया हो जिसके कारण उस वस्तु की प्रकृति, वस्तु तत्व या गुणवत्ता पर घातक प्रभाव पड़ता हो;

9. यदि वस्तु को किसी अच्छे व साफ वातावरण में बनाया या डिब्बाबंद किया गया हो अथवा रखा गया हो जिससे वह स्वास्थ्यवर्धक हो गयी हो।

10. यदि वस्तु पूर्ण या आंशिक रूप से किसी गंदे, सड़े हुए, घृणित, बदबूदार, गले हुए रोगी पशु या सब्जी के तत्व से बनी हो या उस पर मच्छर भिनभिनाते हों या वह अन्यथा मानव उपयोग के लिए अनुपयुक्त हो।

अनेक खाद्य सामग्रियों की विशेषता एवं गुणवत्ता
के मानक खाद्य अपमिश्रण रोकथाम नियम, 1955 के अपेंडिक्स बी. में विनिर्दिष्ट किये गए हैं, जो खाद्य पदार्थ इन मानकों पर खरे नहीं उतरते, उन्हें मिलावटी कहा जाएगा, भले ही उनमें मामूली व्यतिक्रम हो, क्योंकि उस पदार्थ की गुणवत्ता या शुद्धता निर्धारित मानक से गिर जाती है।

खाद्य वस्तुओं के आयात पर निषेध

वाच अपमिश्रण रोकंथाम अधिनियम 1954 के अनुसार निम्नलिखित वस्तुओं पर निषेध लगाया गया है-

1. कोई मिलावटी खाय पदार्थ या कोई गलत ब्रांड का खाद्य पदार्थ आयात करना या आयात लाइसेंस के तहत लाइसेंस की शर्तों के अनुसार पूरी न उतरने वाली
खाद्य वस्तुओं का आयात करना या अधिनियम के तहत बने नियमों के विरुद्ध किसी खाद्य पदार्थ का निर्माण करना।

2. विशेष रूप से इन वस्तुओं के उत्पादन, भण्डारण, बिक्री अथवा वितरण पर रोक लगाया गया है जिन वस्तुओं में कोई मिलावटी खाद्य पदार्थ, कोई गलत व्रांड का खाद्य पदार्थ, लाइसेंस के तहत बेची जाने वाली खाय सामग्री जो उस लाइसेंस की शर्तों को पूरा न करती हो, कोई ऐसा खाद्य पदार्थ जिसकी बिक्री का सार्वजनिक स्वास्थ्य के हितों को देखते हुए फूड (हेल्थ) अथारिटी ने निषेध किया हो तथा कोई ऐसा खाद्य पदार्थ जो अधिनियम के तहत बने नियमों की अवहेलना करता हो। इनके अतिरिक्त नियमों में कुछ ऐसे निषेध तथा रोक भी जिनका पालन प्रत्येक
व्यक्ति को अनिवार्य रूप से दायित्व एवं कर्त्तव्य होता है।

कोई भी व्यक्ति किसी खाद्य वस्तु को खरीदकर या पंजीकृत उपभोक्ता संघ, किसी खाद्य पदार्थ का निर्धारित शुल्क का भुगतान करके पब्लिक अनेलिस्ट से उसका परीक्षण करा सकता है लेकिन खरीदते समय विक्रेता को इस कार्रवाई के संबंध में सूचित कर देना होगा। यदि खाद्य वस्तु में मिलावट पायी जाती है तो खरीददार या संघ द्वारा भुगतान किया गया शुल्क वापस कर दिया जाएगा।

खाद्य अपमिश्रण निषेध अधिनियम 1954 में वर्णित नियमों का अनुसरण न करने वाले व्यक्तियों को दण्ड भी दिया जा सकता है। इस दण्ड में कारावास और
आर्थिक दोनों प्रकार के दण्ड शामिल हैं। इसके अतिरिक्त जिस खाद्य पदार्थ के संबंध में नियमों का उल्लंघन हुआ है, सरकार उसको जब्त कर सकती है।

औषधि और जादुई दवाएं (आपत्तिजनक विज्ञापन) अधिनियम 1954

कुछ मामलों में औषधियों के विज्ञापनों पर नियंत्रण रखना और कुछ उद्देश्यों के लिए तथाकथित जादुई असर करने वाली दवाइयों के विज्ञापनों का निषेध करना, और उनसे संबंधित मामलों के लिए प्रावधान करना इस अधिनियम का प्रमुख उद्देश्य है।

विज्ञापन पर प्रतिबंध

अधिनियम में निम्नलिखित विज्ञापन छापने या प्रकाशित करने पर रोक लगायी गयी है-

1. मिसकैरिज, गर्भ रोकने, यौन शक्ति बढ़ाने, मासिक धर्म की अनियमितता को ठीक करने और विशिष्ट बीमारियों की पहचान, उपचार, शमन, इलाज या
रोकथाम करने के निमित्त किसी औषधि के प्रयोग के लिए परामर्श देने या फुसलाने वाले विज्ञापन;

2. किसी औषधि के बारे में भ्रांत धारण पेश करने या झूठे दावे करने वाले या अन्यथा मिथ्या कहने या गुमराह करने वाले विज्ञापन,

3. किसी जादुई दवाई जिसके बारे में दावा किया जाए कि वह उपर्युक्त क्लाज में विनिर्दिष्ट किसी उद्देश्य के लिए प्रभावकारी है, को संदर्भित करने वाले विज्ञापन।

इस अधिनियम में वर्णित नियमों या प्रावधानों का उल्लंघन करने वाले व्यक्ति को कारावास तथा आर्थिक जुर्माना दोनों लगाया जा सकता है।

कालाबाजारी की रोकथाम और अनिवार्य वस्तुओं की आपूर्ति अनुरक्षण अधिनियम 1980

इस अघिनियम का प्रमुख उद्देश्य हैं सभी समुदाय के लिए अनिवार्य वस्तुओं की आपूर्ति को बरकरार रखना तथा कालाबाजारी को नियंत्रित करना। इस अधिनियम के अनुसार प्रशासन विशिष्ट व अनिवार्य वस्तुओं की आपूर्ति को बरकरार रखने से रोकने वाले व्यक्ति को हिरासत में ले सकती है । किसी व्यक्ति अनिवार्य वस्तुओं की आपूर्ति को रोकने का काम करने वाला तब कहा जाएगा, जब लाभ कमाने के उद्देश्य से वह
व्यक्ति स्वयं अनिवार्य वस्तुएँ अधिनियम, 1955 या इसी प्रकार के किसी अन्य कानून के तहत दण्डनीय अपराध करता है या अपराध करने के लिए किसी व्यक्ति को भड़काता है या वह किसी अनिवार्य वस्तु में व्यापार करता है।

जो प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से उपरोक्त अधिनियम या कानून के प्रावधान को विफल करते हों।

मानव अंग प्रत्यारोपण अधिनियम, 1994

चिकित्सीय दृष्टि से इस अधिनियम से मानव के अंगों को शरीर से निकालने, स्टोरेज करने और उन्हें प्रतिरोपित करने की क्रिया और उससे संबंधि मामलों को नियमित करने के उद्देश्य से बनाया गया है। इस अधिनियम के अनुसार कोई भी मानव अग डोनर के शरीर से उसकी मृत्यु के पहले निकाला नहीं जा सकता और प्राप्तकत्त्ता के शरीर में प्रतिरोपित नहीं किया जा सकता। जब कोई डोनर अपनी मृत्यु के पश्चात् अपने शरीर के किसी मानव अंग को निकालने के लिए प्राधिकृत करता है या किसी मृतक के शरीर से मानव अंग को निकालने का अधिकार देने के लिए सक्षम या सशक्त व्यक्ति किसी अंग के निकालने के लिए अधिकार देता है, तो वह मानव अंग शरीर से निकाल कर किसी दूसरे जरूरतमन्द प्राप्तकत्त्ता के शरीर में प्रतिरोपित किया जा सकता है। 

मानव अंगों के व्यापार पर प्रतिबंध

यह अधिनियम मानव अंगों के व्यापार पर प्रतिबंध लगाता है। इस संदर्भ में प्रमुख जानकारी निम्न प्रकार दी गई है-

1. मानव अंग के व्यापार करने हेतु रुपये के भुगतान करने की व्यवस्था करना अथवा वा्तालाप करना;

2. ऐसे विज्ञापन का प्रकाशन या वितरण करना जो लोगों को पैसों के लिए मानव अंग सप्लाई करने का आह्वान करे, पैसों के बदले मानव अंग सप्लाई करने
की पेशकश करे तथा यह संकेत दे कि मानव अंग के व्यापार करने के लिए रकम की अदायगी के प्रबंध हेतु राजी है।

3. किसी मानव अंग की सप्लाई के लिए कोई भुगतान करना या प्राप्त करना; 

4. पैसों के लिए मानव अंग सप्लाई करने के लिए राजी किसी व्यक्ति को ढूँढ़ना;

5. पैसों के लिए कोई मानव अंग सप्लाई करने की पेशकश करना।

मानवाधिकार

मानव अधिकार सुरक्षा अधिनियम 1993

अधिनियम 1993 की धारा 2 (d) के अनुसार मानव अधिकार का अर्थ है किसी व्यक्ति के जीवन, स्वतंत्रता, समानता और प्रतिष्ठा से संबंधित अधिकार जो संविधान द्वारा गारंटी किये गए हैं या अन्तर्राष्ट्रीय प्रतिज्ञा पत्रों में धारित किए गए हैं और भारत की अदालतों द्वारा लागू किए जा सकते हैं। अधिनियम के तहत देश में मानव अधिकारों की बेहतर सुरक्षा के लिए राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग, राज्यों में राज्य मानवाधिकार आयोगों और मानवाधिकार अदालतें स्थापित की गई है।

आयोग के प्रमुख कार्य

राज्य मानवाधिकार आयोग द्वारा कुछ प्रमुख कार्य भी किये जाते हैं जिसे निम्नलिखित पंक्तियों में स्पष्ट किया गया है-

1. स्वतः या किसी पीड़ित व्यक्ति या उसकी तरफ से किसी अन्य व्यक्ति द्वारा प्रस्तुत की गई याचिका पर विभिन्न शिकायतों की जाँच करना। उदाहरण
के लिए, किसी सरकारी कर्मचारी द्वारा मानवाधिकार का उल्लंघन करने या उल्लंघन करने के लिए उकसाना या ऐसे उल्लंघन को रोकने में किसी सरकारी कर्मचारी द्वारा लापरवाही बरतना;

2. मानवाधिकार के हनन का आरोप वाले अदालत में चल रहे मामले में अदालत की अनुमति लेकर उसकी कार्रवाई में सहयोग देना;

3. राज्य सरकार के नियंत्रण में किसी जेल या अन्य संस्थान जहां लोगों को उपचार, सुधार या सुरक्षा के लिए रोका या बन्धक रखा जाता है, राज्य सरकार को सूचित करके उनमें रखे गए व्यक्तियों के जीवन के संदर्भ में जानने हेतु उन स्थलों पर जाकर निरीक्षण करना और उन पर अपनी सिफारिशें देना;

4. मानवाधिकार के क्षेत्र में अनुसंधान करना या उसे प्रचारित करना;

5. प्रकाशनों, मीडिया, सम्मेलनों और अन्य उपलब्ध साधनों के जरिये समाज के विभिन्न अंगों में मानवाधिकार संबंधित जानकारी देना और मानवाधिकार की रक्षा के लिए जो सुरक्षा प्रबंध उपलब्ध हैं, उनके प्रति जागरूकता प्रचारित
करना;
6. मानवाधिकार के क्षेत्र में काम कर रहे गैर-सरकारी संगठनों और संस्थानों के प्रयासों को बढ़ावा देना। इसके अलावा कोई भी ऐसी कार्रवाईयां करना जो मानवाधिकारों को बढ़ाने के लिए वह आवश्यक समझे ।
7. मानवाधिकार की रक्षा करने के निमित्त संविधान या यथा समय लागू किए गए सुरक्षा उपायों पर पुनर्विचार करना और उनके प्रभावी कार्यान्वयन के उपाय वताना;

8. मानवाधिकारों के उपभोग में आने वाली समस्याओं जिनमें आतंकवाद की कार्रवाई भी शामिल है, पर पुनर्विचार करना और उनके उपचार के लिए उपयुक्त उपायों की सिफारिशें करना;

9. मानवाधिकारों पर किए गए करारों और अन्य अन्तर्राष्ट्रीय दस्तावेजों का अध्ययन करना और उनके प्रभावकारी कार्यपालन के लिए सिफारिशें करना ।

नशीले पदार्थ और ड्रग्स

नशीली दवाएँ और सायकोट्रापिक तत्व अधिनियम 1985

यह अधिनियम सभी नशीली दवाओं एव सायकोट्रापिक तत्वों पर रोक लगाता है। इन दवाओं को उगाने, उत्पादन, पास रखने, बेचने, खरीदने, परिवहन, भंडारण, इस्तेमाल, उपभोग, आयात, निय्यात या वाहनान्तरण की कार्रवाई का निषेध
करता है, मात्र चिकित्सा या विज्ञान के स्वीकृत उद्देश्यों को छोड़कर। ऊपर बताई गई कार्रवाईयों के अतिरिक्त नशीली दवाओं और सयाकोट्रापिक तत्वों के अवैध  व्यापार में कई तत्वों को सम्मिलित किया जाता है जिनमें से कुछ इस प्रकारहै-

1. नशीली दवाओं और सायकोट्रापिक पदार्थों की गतिविधियों में भाग लेना;

2. ऊपर वर्णित किसी भी कार्रवाई का प्रबंध या उसके लिए किसी स्थान को किराये पर देना;

3. उक्त किसी भी कार्रवाई के लिए सीधे या परोक्ष रूप से धन लगाना; 

4. उपरोक्त कार्रवाईयों को आगे और बढ़ाने या उनमें मदद करने के लिए उकसाना या षडयंत्र रचना; 

5. उपर्युक्त कार्यों में संलग्न व्यक्तियों को आश्रय देना ।

हालांकि इस अधिनियम में अपराधियों हेतु कड़े दण्ड/सजा निर्धारित की गई है तो भी जो लोग इसके आदी (व्यसनी) हैं, वे अगर स्वेच्छा से आदत छुड़ाने या व्यसन-मुक्त होने के लिए किसी अस्पताल या स्वयंसेवी संगठन से इलाज कराने हेतु राजी हों तो उनकी सजा में कुछ रियायत की जा सकती है ।

नशीली दवाओं और सायकोट्रापिक पदारर्थों के अवैध-व्यापार पर रोकथाम अधिनियम 1988

इस व्यापार ने मानव स्वास्थ्य एवं कल्याण के लिए एक बड़ी समस्या उत्पन्न कर दी है। इस व्यापार से जुड़े लोगों की गतिविधियां राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था पर घातक
प्रभाव डालती हैं। इस तरह की गतिविधियां बड़े पैमाने पर गुपछुप तरीके से संचालित जाती हैं। इसलिए इस अधिनियम के अन्तर्गत इस तरह की गतिविधियों को प्रभावी हंग से रोकने के लिए कुछ मामलों में व्यक्तियों को कारावास में रखने का प्रबंध किया गया है।

पशुओं के साथ नृशंसता का व्यवहार

पशुओं के साथ नृशंस व्यवहार रोकथाम अधिनियम 1985

विभिन्न प्रकार के पशुओं को अनावश्यक पीड़ा देने या कष्ट देने से रोकने के लिए इस अधिनियम में प्रावधान किया गया है। जिन लोगों पर पशुओं की देख-रेख एवं नियंत्रण रखने की जिम्मेदारी है, उसका कर्त्तव्य है कि वह उस पशु को ठीक-ठाक रखने और उसे किसी प्रकार के कष्ट या प्रहार से बचाने के लिए सभी
उपयुक्त कदम उठाएं।

इस अधिनियम के तहत पशुओं को पीड़ा पहुँचाने वाले व्यक्ति को सजा देने का प्रावधान किया गया है। अपने पशुओं को कोड़े लगाना, ठोकर मारना, दौड़ा-दौड़ा कर थकाना, अधिक भार लादना, घोर यंत्रणा देना, पशु से ऐसी मेहनत का काम कराना जिसके लिए वह योग्य न हो, पशु को घातक औषधि या कोई पदार्थ खिलाना, पशु को ऐसे ढंग से भेजना या ले जाना जिससे उसको अनावश्यक पीड़ा हो, पशु को अनुपयुक्त आकार के पिंजरे में रखना या बन्द करना, पर्याप्त खाना या पानी या रहने की जगह न देना आदि को नृशंसता या अनावश्यक पीड़ा देना कहा जाता है।

वन्य जीवन और पर्यावरण

वन्य जीवन (सुरक्षा) अधिनियम 1972

इस अधिनियम का प्रमुख उद्देश्य जंगली जानवरों, पक्षियों और पौधों को सुरक्षा प्रदान करना है। यह वन्य पशुओं, या पशु-जन्य वस्तुओं या विनिर्दिष्ट पौधों या
उसके किसी भाग या उससे व्युत्पन्न चीजों के परिवहन पर प्रतिबन्ध लगाता है। यह काम सिर्फ चीफ वाइल्ड लाइफ वार्डन या अन्य प्राधिकृत अधिकारी की अनुमति लेकर ही किया जा सकता है । यह अधिनियम निम्नलिखित तत्वों पर भी प्रतिबंध लगाता है।

1. किसी तरीके से व्यापार करना जैसे-अनुसूचित पशु से बनी वस्तुओं का निर्माता या व्यापारी या आयातित हाथी दन्त या उससे बनी वस्तुओं का व्यापारी या ऐसी वस्तुओं का निर्माता या अनुसूचित पशुओं या ऐसे पशुओं के अंगों के संबंध में चर्म प्रसाधक ( चर्म में भूसा भर कर जीव का रूप देने वाला) या अनुसूचित पशु से व्युत्पन्न trophy या uncured trophy का व्यापारी, या बंधक पशुओं जो की अनुसूचित पशु हो, का व्यापारी या किसी अनुसूचित पशु से व्युत्पन्न मांस का व्यापारी।

2. किसी अनूसूचित पशु से निकाले गए मांस को किसी भोजनालय पकाना या उसको परोसना।

पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम 1986

मानव संबंधी पर्यावरण के संरक्षण और उसमें सुधार लाना इस अधिनियम का प्रमुख उद्देश्य है। मानव संबंधी पर्यावरण में विभिन्न तत्वों के बीच पाये जाने वाले आंतरिक संबंधों को शामिल किया जाता है जिनमें पानी, हवा, जमीन और मानव अन्य जीव जन्तुओं, पौधों, सूक्ष्म जीवों और सम्पत्ति आदि प्रमुख हैं। यह अधिनियम निम्नलिखित कार्यों पर प्रतिबंध लगाता है-

1. किसी खतरनाक तत्व को धारण करना या किसी से धारण करवाना, सिवाय उन परिस्थितियों को छोड़कर जब निर्धारित प्रक्रिया अपनाई गई हो और निर्धारित सुरक्षा के उपाय अपनाए गए हों,

2. कोई उद्योग संक्रिया या प्रक्रिया चला/कर रहे व्यक्ति द्वारा, पर्यावरण को प्रदूषित करने वाला तत्व छोड़ना या निर्धारित मानक से अधिक मात्रा में ठोड़ने
की अनुमति देना।

इस अधिनियम में वर्णित नियमों का पालन या अनुसरण न करने वाले व्यक्ति को दंडित भी किया जा सकता है। सरकार की ओर से या किसी व्यक्ति की ओर से की गई शिकायत पर अदालत उस अपराध पर विचार करेगी, अगर उस व्यक्ति ने तथाकथित अपराध के संबंध में कम से कम 60 दिन का नोटिस दिया
हो और शिकायत करने की अपनी मंशा प्रकट की हो।

अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति

नागरिक अधिकार संरक्षण अधिनियम 1955

अस्पृश्यता अथवा छुआछूत को संविधान के अनुच्छेद 17 में निशिष्ट या समाप्त कर दिया गया है। इस सत्यनिष्ठ बचनवद्धता को लागू करने के लिए नागरिक अधिकार संरक्षण अधिनियम, 1955 बनाया गया है।

किसी भी भारतीय अधिनियम में छुआछूत की परिभाषा नहीं प्रदान की गयी है। इसमें कठोर भारतीय जाति प्रथा के अन्तर्गत स्वीकृत रूढ़, रिवाज शामिल हैं, जिनके अनुसार अनुसूचित जाति के लोगों को हिन्दू मन्दिरों, सार्वजनिक स्थानों, गलियों सार्वजनिक वाहनों, भोजनालयों, शिक्षा संस्थानों आदि में प्रवेश से वचित रखा गया था ।

यह अधिनियम छूआछूत के आधार पर विभिन्न परंपराओं व रिवाजों पर प्रतिबंध लगता है उदाहरण के लिए मन्दिर में प्रवेश और पूजा अर्चना करने, दुकानों
और भोजनालयों में जाने, कोई पेशे या व्यापार करने, पानी के स्रोतों, सार्वजनिक स्थलों और आवासीय स्थानों, सार्वजनिक परिवहन, अस्पताल, शिक्षा संस्थानों का प्रयोग करने, आवासीय स्थानों का निर्माण और उनमें रहने, धार्मिक संस्कार कराने, आभूषणों और सुन्दर वस्तुओं को धारण करना आदि। इसके अलावा किसी अनुसूचित जांति के व्यक्ति को कूड़ा कर्कट उठाने या सफाई के लिए झाडू लगाने,
किसी शव को उठाकर ले जाने, किसी जानवर की खाल खींचने या इसी तरह का कोई अन्य काम करने के लिए मजबूर करना इस अधिनियम के तहत निषिद्ध है और दण्डनीय है। इसके साथ ही, अगर कोई व्यक्ति प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप में किसी भी तरह, छुआछूत या इसके किसी भी रूप में व्यवहार करने पर उपदेश देता है या ऐतिहासिक, आध्यात्मिक या धार्मिक आधार पर या जाति प्रथा के आधार पर या किसी भी अन्य आधार या कारणों से छुआछूत के व्यवहार को सही ठहराता है तो वह दण्डनीय अपराध है।

अनुसूचित जाति और जनजाति (नृशंसता निषेघ) अधिनियम 1989

इस अधिनियम में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के सदस्यों पर नृशंसता का व्यवहार करने पर रोक लगाने और इस प्रकार के अपराधों की सुनवाई के लिए विशेष न्यायालय स्थापित करने और इन अपराधों से पीड़ित लोगों को राहत और पुनर्वास करने की व्यवस्था की गई है। अधिनियम की धारा 3 में किसी गैर SC/ST व्यक्ति द्वारा किये जाने वाले नृशंसता के व्यवहार जिसके लिये सजा हो सकती
है, की सूची में निम्न तत्वों को सम्मिलित किया गया है-

1. किसी अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के सदस्य की भूमि या उसे अलॉट की गई या सक्षम प्राधिकारी द्वारा अलॉट किये जाने के लिए अधिसूचित
भूमि को गैर कानूनी ढंग से कब्जा करना या उस पर खेती करना या उसको अलॉट की गई जमीन को अपने नाम हस्तान्तरित करा लेना;
2. अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के सदस्य को उसकी जमीन या परिसर से गैर कानूनी ढंग से बेदखल करना या किसी भूमि, स्थान या पानी का प्रयोग करने में अवरोधक उत्पन्न करना;

3. इस जाति के किसी भी व्यक्ति को बेगार करने या इसी तरह की कोई लेबर या बंधुआ मजदूर का काम करने के लिए मजबूर करना या प्रलोभन देना, सिवाय उन अनिवार्य सेवाओं को जो सरकार द्वारा समाज सेवा के रूप में उसको सौंपी गई हों;

4. अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के सदस्य को धमकी देकर मतदान करने से मना करना या किसी एक खास व्यक्ति को मतदान देने के लिए विवश करना या कानून के खिलाफ किसी भी ढंग से मतदान के लिए कहना;

5. किसी अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के सदस्य को खराब या घृणित वस्तु खाने या पीने के लिए मजबूर करना;

6. अनुसूचित जाति या किसी अनुसूचित जनजाति के सदस्य को चोट पहुँचाने, अपमान करने या खिजाने, परेशान करने के लिए उसके परिसर या पड़ोस में
मल-मूत्र, कूड़ा-कर्कट, शव या किसी अन्य घृणित तत्व का ढेर लगाना;

7. किसी अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के सदस्य के जवरदस्ती कपड़े उतारना या उसको नग्न करके या मुँह या जिस्म पर कालिख पोत कर खुले आम परेड कराना या मानव सम्मान को ठेस पहुँचाने वाला अन्य कोई काम करना;

8. अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के किसी सदस्य को किसी अपराध, जिसके लिए मृत्युदण्ड की जगह सात साल या इससे अधिक के जेल की सजा दी जा सकती है, में फंसाने की नीयत से झूठे सबूत पेश करने या जालसाजी करने पर ऐसे व्यक्ति को कारावास जो छः महीने से कम नहीं होगा, लेकिन सात वर्ष या उससे अधिक हो सकता है और ज़ुर्माना के दण्ड का भागी होगा;

9. अगर कोई व्यक्ति अग्नि या विस्फोटक पदार्थ के द्वारा कोई ऐसी शरारत करता है, यह जानते हुए और मंशा रखकर कि उससे वह किसी अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के सदस्य की सम्पत्ति को हानि पहुँचाएगा, तो वह कम से कम छः महीने और अधिकतम सात वर्ष के कारावास और जुर्माने
के दण्ड का भागी होगा;

10. यदि कोई व्यक्ति अग्नि या विस्फोटक पदार्थ के द्वारा कोई ऐसी शरारत करता है, यह जानते हुए और मंशा रखकर कि उससे कोई ऐसी इमारत ध्वस्त या
नेष्ट हो जाएगी जिसका सामान्यतया उपयोग पूजा पाठ के लिए मनुष्यों के आवास के लिए या सम्पत्ति रखने के लिए अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के सदस्यों द्वारा किया जाता है तो वह व्यक्ति आजीवन कारावास और जुर्माने के दण्ड का भागी होगा;

11. यदि भारतीय दंड संहिता (1860 का 45) के अधीन किसी व्यक्ति या संपत्ति के विरुद्ध कोई ऐसा अपराध करता है जो दस वर्ष या इससे अधिक अवधि
के कारावास से दण्डनीय हो, इस आधार पर कि वह व्यक्ति अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति का सदस्य है या वह सम्पत्ति ऐसे सदस्य की है, तो वह व्यक्ति आजीवन कारावास और जुर्माने के दण्ड का भागीदार होगा;

12. यदि कोई व्यक्ति जानबूझकर या कुछ कारणों से यह विश्वास रखते हुए कि इस अध्याय के तहत कोई अपराध किया गया है उस अपराध के सबूत को नष्ट करता है ताकि कानून सजा न दे सके या कोई जानकारी द्रेता है जो कि वह जानता है कि झूठी है तो वह उस अपराध के लिए दिए जाने वाले दण्ड का भागी होगा;

13. एक सरकारी कर्मचारी होते हुए इस धारा के अधीन कोई अपराध करता है;

14. अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के सदस्य को किसी सार्वजनिक स्थल पर जाने के लिए मना करना या उस सदस्य को किसी सार्वजनिक स्थान
का प्रयोग करने से मना करना जहाँ जनसामान्य के अन्य सदस्यों या किसी एक वर्ग के लोगों का उसे प्रयोग करने का अधिकार हो;

15. अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के सदस्य को अपना घर, अपना गाँव या आवास का अन्य स्थान छोड़ने के लिए विवश करना या ऐसी किसी
कार्रवाई में भाग लेना;

16. अनुसूचित जाति व अनुसूचित जनजाति के किसी सदस्य को किसी अपराध जो वर्तमान अधिनियम के अनुसार मृत्यु दण्डनीय अपराध हो, में फंसाने के
उद्देश्य से झूठे सबूत पेश करने या जालसाजी करने पर उस व्यक्ति को आजीवन कारावास और जुर्माने का दण्ड दिया जा सकता है। ऐसे झूठे या जालसाजी के सबूत के परिणामस्वरूप अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति का कोई निर्दोष सदस्य अपराधी घोषित करके सूली पर चढ़ा दिया जाता है तो जो व्यक्ति वह झूठा सबूत पेश करता है या जालसाजी करता है तो उसको मृत्यु दण्ड दिया जाएगा;

17. अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति की किसी महिला पर उसका अपमान या बलात्कार की दृष्टि से चोट पहुँचाना या उसके विरुद्ध शक्ति का
प्रयोग करना;

18. अनुसचित जाति या अनुसूचित जनजाति की महिला की इच्छा शक्ति पर हावी होने की स्थिति में होते हुए, इस स्थिति का इस्तेमाल करके उसका यौन
शोषण करना, जिसके लिए वह सहमत न हो,

19. अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के सदस्यों द्वारा साधारणतया प्रयोग में लाये जाने वाले पानी के झरने, जलाशय या किसी अन्य ग्रोत के जल को दूषित करना या गंदला करना ताकि वह सामान्य प्रयोग के लिए पूर्णरूप से व्यर्थ हो जाए।

20. अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के सदस्य के खिलाफ झूठा, दुर्भावपूर्ण या कष्टप्रद मुकदमा या आपराधिक कानूनी कार्रवाई करना;

21. अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति सदस्य के विषय में झूठी या ओछी जानकारी किसी सरकारी कर्मचारी को देना और उसके परिणामस्वरूप उस सरकारी कर्मचारी द्वारा उस SC/ST व्यक्ति को चोट पहुँचाने या परेशान करने के लिए कानून के तहत उसे मिली शक्ति का प्रयोग करवाना;

22. अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के सदस्य को सार्वजनिक स्थान पर जानबूझकर अपमानित करना या परेशान करना ताकि उसको नीचा दिखाया जाए;

कैदी

कारागृह अधिनियम 1894

कैदियों के लिए उपयुक्त और स्वस्थ वातावरण प्रदान करना इस अधिनियम का प्रमुख उद्देश्य है। यह अधिनियम मांग करता है कि-

1. निम्नलिखित के लिए कारावास के लिए पृथक स्थान की व्यवस्था की जाए-

(I) पुरुष और महिला कैदियों के लिए

(ii) 21 वर्ष से कम आयु के पुरुष कैदियों के लिए, अन्य पुरुष कैदियों से पृथक,

(iii) दीवानी कैदियों के लिए आपराधिक कैदियों से अलग,

(iv) गैर सजायाफता आपराधिक कैदियों के लिए सजायफता आपराधिक कैदियों से पृथक।

2. एक दीवानी कैदी या गैर-सजायाफता आपराधिक कैदी को अपना रख-रखाव स्वयं करने की आज्ञा या स्वतंत्रता प्रदान की जाए और वह अपने लिए भोजन,
कपड़े, बिस्तर या अन्य आवश्यक वस्तुएं निजी स्रोतों से क्रय कर सके,

3. एक दीवानी कैदी या गैर-सजायाफता आपराधिक कैदी अगर निजी स्रोतों से आवश्यक कपड़े और बिस्तर का प्रबंध करने में समर्थ नहीं है तो उसे इन
वस्तुओं को उपलब्ध कराया जाए,

4. दीवानी कैदियों को अपना व्यापार या पेशा जारी रखने की अनुमति प्रदान की जाए;

5. रौगी या बीमार कैदियों के लिए किसी-अस्पताल में आवश्यक दवाइयों और इलाज का प्रबंध किया जाए।

इसके अतिरिक्त बंधक अधिनियम 1900 की यह मांग है कि पागल कैदियों की किसी पागलखाने या किसी अन्य सुरक्षित स्थान पर रखा जाए।

निर्धनों के लिए कानूनी सहायता

अधिवक्ता अधिनियम 1961

इस अधिनियम में बार काउंसिल आफ इंडिया और स्टेट बार काउंसिल गठित करने का प्रबंध है जो प्राथमिक तौर पर भारत में कार्यरत वकीलों की कार्यवाही को नियमित करे और भारत में कानून व्यवसाय के विकास और उत्थान का काम करे।
इस क्षेत्र में बार काउंसिलों को कुछ खास सामाजिक दायित्व एवं कार्य भी दिये गये हैं। उनसे यह आशा की जाती है कि वे कानून के विषयों पर प्रसिद्ध विधि-वेत्ताओं के सहयोग से सेमिनार का आयोजन करे, सीधे बातचीत की व्यवस्था करे और कानून संबंधी जर्नल और पेपर प्रकाशित करें निर्धनों के लिए विनिर्दिष्ट तरीके में कानूनी सहायता की व्यवस्था करें, निम्न के लिए फंड स्थापित करें-दरिद्र, विकलांग या अन्य एडवोकैटों के लिए कल्याणकारी योजनाओं के संचालन के लिए वित्तीय सहायता दैना; कानूनी सहायता और परामर्श प्रदान करना; इस संदर्भ में बने नियमों के अनुसार, कानूनी पुस्तकालयों की स्थापना करना; इसके अलावा एक या एक से अधिक कानूनी सहायता समितियां गठित करें।

सार्वजनिक सम्पत्ति

सार्वजनिक सम्पत्ति को नुकसान के रोकथाम अधिनियम 1984

इस अधिनियम अनुसार जो व्यक्ति सार्वजनिक सम्पत्ति के संबंध में कोई गैर-कानूनी कार्य करता है वह दण्ड का भागीदार होगा।

सार्वजनिक सम्पत्ति उस चल या अचल सम्पत्ति को कहते हैं, जो केन्द्रीय सरकार; राज्य सरकार; कोई स्थानीय प्राधिकरण; कोई वैधानिक निगम; कोई सरकारी कम्पनी; कोई अघिसूचित संस्थान, फर्म या उद्यम आदि के नियंत्रण में हों।

सूचना का अधिकार

सूचना का अधिकार कानून व समाज दोनों दृष्टि से बहुत ही उपयोगी साबित हुआ है। खास तौर पर गैर-सरकारी संगठनों को इससे विशेष लाभ मिला है। इस
अधिकार को विशेष रूप से विभिन्न सरकारी योजनाओं के उचित रूप से अनुपालन और समाज के निर्धन, पिछड़े और कमजोर वर्गों के लाभ के लिए निर्धारित किए गए कार्यों के अनुपालन को सुनिश्चित करने के लिए किया जा सकता है।

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