गैर सरकारी संगठन - Non Government Organization - अध्याय -5 एन.जी.ओ के कार्यों के लिए धन का प्रबंध

गैर सरकारी संगठन -  Non Government Organization - 
अध्याय -5 एन.जी.ओ के कार्यों के लिए धन का प्रबंध

गैर-सरकारी संगठन की वित्तीय व्यवस्था आतरिक तया वाह्य स्रोतों पर निर्धर करती है। आंतरिक स्रोतों में इससे संबद्ध सदस्यों के सहयोग तथा बाह्य स्रोतों कें
देश के भीतर कार्यरत संस्थाएं व संबंद्ध व निकाय शामिल हैं। कुछ विदेशी संगठन व निकाय भी इसे सहयोग देते हैं। गैर-सरकारी संगठन के प्रमुख स्रोतों को नीचे उत्लेखित किया जा रहा है-

(क) आन्तरिक स्रोत
आंतरिक स्रोतों के तहत् निम्नवत स्रोत शामिल हैं-

1. सदस्यों द्वारा दिया गया अंशदान,
2. प्रयोजन शुल्क,
3. विक्री (जैसे कि ग्रीटिंग कार्ड, मोमबत्ती/हैं, डोक्राफ्ट आइटम, होममेड फूड आइटम, पुस्तकें आदि की बिक्री),
4. व्याज,
5. समुदाय के अनुदानकर्ता संरक्षक सदस्य आदि और
6. व्यक्तिगत दान।

इसके अतिरिक्त संगठन वेतनभोगी कर्मचारियों के बदले वालंटीयर्स की सेवाओं का लाभ उठाकर भी अपने संसाधन बचा सकते हैं।

(ख) वाह्य स्रोत
भारत के भीतर

भारत में गैर-सरकारी संगठनों के प्रमुख स्रोत निम्नवत हैं-

1. ग्रांट इन एड (केन्द्रीय या राज्य सरकार द्वारा)।
2. वस्तुओं के रूप में दान, जैसेकि दवाईयां, पुस्तकें, खाद्य सामग्रियाँ आदि।
3. प्राइवेट संस्थाओं से सहायता या ग्रांट जैसे-मूल एन.जी. ओ, कर्पोरेट निकाय, औद्योगिक वराने इसके अलावा फंड उगाहने के लिए शो या खेलों जैसे कि
चैरिटी शो, म्युजिकल नाइट्स आदि के लिए प्रायोजकों का सहयोग लेना और टिकटों की बिक्री से धन एकत्रित करना, विज्ञापन, निकाय जैसे-संगठन
निजी व्यक्ति, दान पेटिकाएं तथा ट्रिस्ट/विजिट्स।

विदेशी स्रोत

इस स्रोत में जैसे-द्विपक्षी धन प्रबंधन, बहुपक्षी धन प्रबंधन, निजी संस्थानात्मक धन प्रबंधन, भारत के बाहर प्रवासी समुदाय द्वारा कियाजाने वाला अनुदान
अन्तर्राष्ट्रीय दानकर्ता/प्रतिष्ठान/ संगठन जैसे-यूनिसेफ (UNICEF) आदि ।

निश्चित किये गये उँश्यों को उनके खातों (Contributlons Regulation Act, 1976, (FCRA), के नियंत्रणाधीन रहते हैं। इसके अतिरिक्त जो भी संस्थान इस तरह के फंडे प्राप्त करते हैं, उन्हें आवश्यक दस्तावेज और रिटर्न प्रस्तुत करने होते।
हैं परन्तु, कुछ विदेशी अंशदानों को FCRA के प्रावधानों से छूट दी गई है। इनके वारे में दस्तावेज और रिटर्न प्रस्तुत करने की जरूरत नहीं है।

धन प्रबन्धन के उपाय

NGOs द्वारा धन उगाहने की रणनीतियों की योजना और क्रियान्वयन उपयुक्त विक्री-कला तकनीकों के जरिये किया जाना चाहिये। इसे NGO द्वारा उनके लक्ष्, कार्यक्रमों,क्षमताओं और अक्षमताओं को समझते हुए सही प्रकार से बनाए गए जन-संपर्की
मे प्रा किया जाना चाहिए। इसके लिये धन का पूर्व प्रबंधन करना अनिवार्य है।

भारत सरकार राज्य सरकारों से Grant-in-Aid

भारत सरकार/राज्य सरकारों से मिलने वाली grant-in-aid धन का प्रमुख स्रोत हैं। केन्द्र सरकार के विभिन्न मंत्रालयों/विभागों ने अनेक योजनाएं/कार्यक्रम शुरू किये हैं जिनके जरिये NGOs grant-in-aid प्राप्त करती हैं, जिससे दयनीय स्थितियों में रह रहे करोड़ों लोग सामाजिक-आर्थिक एवं मनोवैज्ञानिक उत्थान के अपने लक्ष्यों को उदार तरीके से प्राप्त कर सकते हैं।

जनता से दान

व्यक्तिगत दान के जरिये प्राप्त धन का यह लाभ होता है कि यह वर्तमान एवं लगातार चल रहे प्रोजेक्टों को एक व्यापक आधार देते हैं। इसकी तुलना NGOs के आंतरिक ग्रोत समान्यतः सीमित होते हैं।

औद्योगिक/व्यापारिक घरानों के प्रतिष्ठानों से धन

भारत के जाने-माने औद्योगिक/व्यापारिक घरानों ने बहुत से धर्मार्थ प्रतिष्ठान स्थापित किये हैं जो कि गैर सरकारी संगठन के लिए धन के अच्छे स्रोत हैं। धीरूभाई अबानी प्रतिष्ठान, अजीम प्रेमी प्रतिष्ठान, डॉ. रेड्डी प्रतिष्ठान, टाटा स्मारक सामाजिक केन्द्र आदि ऐसे कुछ उद्योग-समर्थित funding agencies है।

अन्तर्राष्ट्रीय संगठनों से धन

गैर-सरकारी संगठनों की आय के स्रोतों में राष्ट्रीय ही नहीं अपितु अंतराष्ट्रीय संगठन भी सहयोग देते हैं। ये संगठन मानवता के कल्याण के निमित्त, भूख, बीमारी, प्राकृतिक आपदाओं, गरीबी, असाक्षरता आदि के कारण होने वाली मानवीय तकलीफों को दूर करने हेतु दान देने के लिए तत्पर रहते हैं।

गैर-सरकारी संगठनों को विभिन्न माध्यमों से धन की प्राप्ति होती है। जहां एक तरफ अपने निर्धारित लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए धन की आशा रखने वाली हजारों NGOs हैं तो वहीं दूसरी तरफ भारतीय समाज को रहने लायक बनाने के कि सभी प्रकार के सामाजिक कार्यों के लिए धन के हजारों स्रोत हैं। फिर भी, इस समीकरण को प्राप्त करना इतना सरल नही है। इच्छित धन को उगाहने के लिए यह आशा की जाती है कि वे अपने कर्तव्य पूरी निष्ठा और ठोस प्रबंधन के साथ करें और यह प्रयास करें कि जिस उद्देश्य के लिए उन्हें बनाया गया है उसके लिए
इस धन का पूरा उपयोग हो।

वित्त-प्रबंधन की प्रक्रिया

दान के रूप में धनः गैर-सरकारी संगठनों द्वारा धन उगाही के लिये विज्ञापनों का भी प्रयोग किया जाता है। कुछ ऐसे भी संगठन होते हैं जोकि इससे सहयोगी
भूमिका का निर्वहन करते हैं। NGOs जनता से ऐसे वालन्टीयरों का समर्थन ले सकती है जो उनके उद्देश्यों के लिए सेवा करना चाहते हैं । ऐसे वालन्टीयर NGOs
की पृष्ठभूमि, उसके उद्देश्यों आदि की जानकारी देने वाले दस्तावेजों के साथ भावी दानकर्ताओं से निवेदन कर सकते हैं। इसके अतिरिक्त NGOs ऐसे व्यक्त्यों की मदद भी ले सकती है जो उनके द्वारा चलाए गए पिछले प्रोजेक्टों से लाभान्वित हुए हैं। सेवानिवृत्त लोगों की मदद से ली जा सकती है जो सामाजिक कार्य के लिए समय दे सकते हैं और मानव कल्याण को बढ़ावा देने के इच्छुक हैं। प्रत्येक इलाके में विशाल हृदय वाले कुछ अमीर व्यक्ति होते हैं। इनसे भी नियमित और आवर्ती दान के लिए निवेदन किया जा सकता है।

गैर-सरकारी संगठन इस राशि पर कर रियायत की दरों की सूचना दे सकती है तथा दान के लिये निवेदन करते समय रसीद जारी कर सकती है। धन के लिए प्रार्थना पत्र के साथ उपयुक्त कर रियायत फार्म संलग्न किया जा सकता है। दान के लिए निवेदन करते समय शिष्टाचार का पुरा ध्यान रखा जाना चाहिये ताकि उन्हे
ऐसा महसूस न हो कि उनकी गोपनीयता भंग हुई हैं। भावी दानकर्ताओं और उन्हे निवेदन करने के तरीके के चयन में सावधानी बरतने से इच्छित धन आसानी से
उगाया जा सकता है। धन मिलने के बाद दानकर्ता को उचित मान देने से उन्हें भविष्य में भी दान देने के लिए उत्साहित किया जा सकता है तथा उनके जरिये अन्य दानकर्ता भी मिल सकते हैं। ऐसा NGOs द्वारा एक संपूर्ण तरीका अपना कर प्राप्त किया जा सकता है। जिनके दीर्घगामी उद्देश्य हों और जो लम्बे समय तक काम करना चाहती हैं। किसी सामाजिक उद्देश्य के लिए गेम शो, फिल्मी नाइट, स्पोर्ट शो जैसी सामाजिक गतिविधियों पर ख्याति प्राप्त व्यक्तियों को आमंत्रित करके प्रायोजकों से मदद प्राप्त करना धन उगाहने का एक और प्रभावी तरीका है। ऐसे शो के दौरान दान-पेटियों और सावनियर की बिक्री से भी धन एकत्र किया जा सकता है तथा इसके लिए शैक्षिक संस्थानों के वालन्टीयरों को शामिल किया जा सकता है।

Funding Agencies से धन उगाहनाः साधारणतः ऐसी एजेन्सियों को आवेदन निर्धारित या निश्चित नमूना नहीं होता । ऐसी स्थिति में NGOs को धन के लिए निवेदन के अपने प्रोजेक्ट प्रस्ताव को प्रस्तुत करते समय Immovative होना चाहिये। यह महत्वपूर्ण है कि NGOs अपने प्रस्तावों को सावधानीपूर्वक ड्राफ्ट करें जिसमें संगठन की संक्षिप्त भूमिका, उनके उद्देश्य और मिशन, उनका पिछला और उपलब्धियां, उनके संगठन की संरचना, उनका प्रभुत्व क्षेत्र, अनुभव उनकी दक्षता आदि का उल्लेख हो । पूर्ण तथ्यों का उल्लेख NGOs और उसके प्रमुख कार्यकर्ताओं की साख बनाने में बहुत उपयोगी होगा प्रस्ताव को संक्षिप्त
और सही तरीके से ड्राफ्ट करने से अनुकूल प्रतिक्रिया मिलना आसान हो जाता

सरकार से Grant-in-aid : सरकार के विभिन्न विभागों/मंत्रालयों ने अपनी योजनाओं को क्रियान्वित करने के लिए प्रस्तावों को जमा करने और अतिरिक्त
जानकारी देने के लिए फार्म निर्धारित किये हैं । यह महत्वपूर्ण है कि सारी जानकारी सत्य रूप से और समर्थक संलग्नकों के साथ एक ही बार में दे दी जाए ताकि कोई कमी पेशी न हो। इससे न केवल अनावश्यक देरी से बचा जा सकता है, बल्कि इससे
NGOs की साख भी बनती है । सरकार द्वारा निर्धारित नियम एवं शर्तों को भली-भांति समझ लेना चाहिये जिससे उन्हें सही प्रकार और समय से पूरा किया जा सके। सरकार की योजनाओं में पात्रता, उद्देश्य, घटकों आदि काफी स्पष्ट लिखे होते हैं।
यह NGOs और योजना के लाभार्थियों के हित में है कि सरकारी विभागों से संपर्क करते समय भी आवश्यकताओं को पूरा कर लिया जाए। योजना में निर्धारित तरीके से धन का सही उपयोग करने पर सरकारी तंत्र से भविष्य में मिलने वाले धन का
रास्ता खुला रहेगा। NGOs द्वारा कोई भी गलती भावी के सभी अवसर समाप्त कर
देगी । 
विभिन्न भारतीय तथा विदेशी स्रोतों के होते हुए भी आय के साधन सीमित ही होते हैं। अतः यह अत्यन्त महत्वपूर्ण है कि सभी धन का, चाहे किसी भी सोत
से उगाहा गया हो, इसके लिये यह अनिवार्य है कि वर्तमान एवं भावी प्रोजेक्टों के लाभ के लिए प्राप्त धन का अनुकूलतम उपयोग किया जाए।

विदेशी अंशदान

विदेशी अंशदान वह अंशदान है, जो विदेशी स्रोतों द्वारा गैर-सरकारी संगठनों को प्राप्त होता है। इसकी व्याख्या विदेशी अंशदान की परिभाषा सैक्शन 2 (1) (c) 2 में दी गयी है। इसका अर्थ यह है कि किसी भी विदेशी स्रोत (i) भारतीय या विदेशी मुद्रा, (ii) कोई वस्तु (इनमें दस लाख रुपये तक के मूल्य के व्यक्तिगत उपहार शामिल नहीं हैं) और (iii) कोई विदेशी सीक्योरिटी, (दान, डिलीवरी या ट्रांसफर के रूप में
हो) प्राप्त करना। इस विषय में यह कहा गया है कि ऐसे दान जो भारतीय मुद्रा रुपयों में लेकिन विदेशी स्रोत से प्राप्त हुए हों, जिसमें भारतीय, मूल के विदेशी भी शामिल हैं या ऐसे फंड जो विदेशी अंशदान के पहले प्राप्तकर्ता द्वारा देश के भीतर ही किसी दूसरे संगठन को हस्तांतरित किये गए हों, वे भी DFCRA के तहत विदेशी अंशदान माने जाते हैं और जो ब्याज विदेशी अंशदान की जमा राशि पर अर्जित किया जाता
है, वह भी विदेशी अंशदान ही माना जाना चाहिए।

टिप्पणीः प्रवास में रह रहे भारतीय नागरिक द्वारा, उसकी अपनी निजी बचत में से, सामान्य बैंकिंग चैनल के जरिये प्राप्त किया गया अंशदान विदेशी अंशदान
नहीं माना जाता। यह बेहतर रहेगा कि ऐसा अंशदान प्राप्त करने से पहले संबंधित भारतीय नागरिक के पासपोर्ट संबंधी विवरण प्राप्त कर लिया जाए।
विदेशी अंशदान में भारत में स्थित एक या एक से अधिक संगठनों से प्राप्त अंशदान भी शामिल है, उदाहरण के तौर पर, विदेशी स्रोत A अपने फंड किसी अन्य संगठन B को अन्तरिक कर देता है। B आगे उस फंड में से कुछ किसी दूसरे संगठन C को अंतरिक कर देता है और वह आगे फिर उन फंडों में से कुछ फंड किसी अन्य संगठन D को अन्तरित कर देता है। अतः ये सभी लेन-देन विदेशी अंशदान के ही होते हैं, इसलिए संगठन B के अतिरिक्त संगठन C और D ने भी विदेशी अंशदान ही प्राप्त किया है । फंड अंतरित करने वाले संगठन का यह कर्तव्य है कि वह यह
सुनिश्चित करें कि विदेशी अंशदान किसी ऐसे संगठन के नाम अंतरित न किया जाए जो FCRA के अंतर्गत रजिस्टर्ड न हो या जिसने इसके लिए पूर्व अनुमति प्राप्त न की हो। बहुराष्ट्रीय कंपनी द्वारा प्राप्त किया गया अनुदान, यदि उस कम्पनी का मिलकीयत और उसके नियंत्रण के अधिकार एक विदेशी स्रोत में निहित हों, विदेशी अंशदान माना जाएगा।

विदेशी स्रोत

विदेशी स्रोत की परिभाषा सैक्शन 2 (1) (E) 2 में दी गई है । इसमें एक विदेशी सरकार और उसकी एजेंसियां, कोई अन्र्राष्ट्रीय एजेंसी, एक विदेशी कम्पनी
और इसकी सहायक कम्पनी भी शामिल है। एक विदेशी कार्पोरेशन, एक बहु-राष्ट्रीय कार्पोरेशन, एक कम्पनी जिसमें 50% से अधिक इक्विटी विदेशी हों, किसी विदेशी राष्ट्र में कोई ट्रेड यूनियन, एक विदेशी ट्रस्ट या फाउंडेशन, एक सोसायटी, क्लब या
अन्य व्यक्तियों द्वारा बनाई गई एसोसिएशन जिसकी संरचना या रजिस्ट्रेशन भारत से बाहर किया गया हो और विदेशी नागरिक आते हैं।

विदेशी एजेंसियों से प्राप्त होने वाली ग्रांट-इन-एड

विदेशी एजेंसियों से प्राप्त अंशदान और मेजबानी जो एसोसिएशनस स्वीकार और उपयोग करती हैं, चाहे वे पंजीकृत हों या न हों, फौरन कंट्रीब्यूशन (रेगुलेशन)
एक्ट, 1976 के अंतर्गत नियमित हैं ।

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