श्री बसंत सिंह जी ने माननीय सुधाकर सिंह जी, सांसद (बक्सर) के साथ अखिल भारतीय चरखा संघ की स्थापना के शताब्दी वर्ष के पूर्व संध्या पर KVIC, पटना और शदाकत आश्रम पटना में महात्मा गांधी जी के प्रतिमा पर माल्यार्पण किया।

श्री बसंत सिंह जी ने माननीय सुधाकर सिंह जी, सांसद (बक्सर) के साथ अखिल भारतीय चरखा संघ की स्थापना के शताब्दी वर्ष के पूर्व संध्या पर KVIC, पटना और शदाकत आश्रम पटना में महात्मा गांधी जी के प्रतिमा पर माल्यार्पण किया।
अखिल भारतीय चरखा संघ की स्थापना के शताब्दी वर्ष के पूर्व संध्या पर KVIC, पटना और शदाकत आश्रम पटना में महात्मा गांधी जी के प्रतिमा पर माल्यार्पण किया।

कल अखिल भारतीय चरखा संघ की स्थापना के 100 वर्ष पूरे होने जा रहे हैं। यह संस्था, जो महात्मा गांधी के स्वदेशी और आत्मनिर्भरता के सिद्धांतों का प्रतीक है।

22 और 23 सितंबर, 1925 को, पटना के सदाकत आश्रम में, गांधी जी ने अखिल भारतीय चरखा संघ का विधान लिखा था। यह एक साधारण सी घटना नहीं थी, बल्कि भारत के स्वतंत्रता संग्राम और सामाजिक-आर्थिक पुनर्जागरण की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम था। गांधी जी की दूरदर्शिता को समझते हुए, 24 सितंबर, 1925 को अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी की कार्यसमिति ने इस प्रस्ताव को मंजूरी दे दी, जिससे चरखा संघ को औपचारिक रूप से अस्तित्व में आने का मार्ग प्रशस्त हुआ।
चरखा, गांधी जी के लिए केवल एक उपकरण नहीं था। यह स्वावलंबन, सादगी, और ग्रामीण अर्थव्यवस्था के पुनरुत्थान का प्रतीक था। चरखे के माध्यम से, गांधी जी ने न केवल भारत की आर्थिक स्वतंत्रता की नींव रखी, बल्कि एक ऐसे समाज की कल्पना की जो शोषण से मुक्त हो और जहाँ प्रत्येक व्यक्ति की गरिमा सुनिश्चित हो।
हमारे समक्ष अब एक महत्वपूर्ण प्रश्न है: क्या हम गांधी जी के इस सपने को आगे ले जाने में सफल रहे हैं? क्या हमने चरखे के माध्यम से स्वावलंबन और ग्रामीण विकास के लक्ष्य को प्राप्त किया है? निःसंदेह, बहुत कुछ किया गया है, लेकिन अभी भी बहुत कुछ किया जाना बाकी है।
आज के वैश्वीकृत और तकनीकी रूप से उन्नत युग में, चरखे की प्रासंगिकता पर प्रश्न उठाया जा सकता है। लेकिन हमें याद रखना चाहिए कि चरखा केवल एक उपकरण नहीं, बल्कि एक विचारधारा है। यह स्थानीय उत्पादन, टिकाऊ विकास, और समुदाय-आधारित अर्थव्यवस्था का प्रतीक है - ऐसे मूल्य जो आज भी उतने ही प्रासंगिक हैं जितने वे एक सदी पहले थे।
हमें ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार सृजन, कौशल विकास, और स्थानीय उद्यमिता को बढ़ावा देने के लिए नवीन तरीके खोजने होंगे। हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि चरखा संघ के माध्यम से उत्पादित वस्तुएँ न केवल गुणवत्ता में उत्कृष्ट हों, बल्कि वैश्विक बाजार में भी प्रतिस्पर्धी हों।
साथ ही, हमें चरखे के पीछे के दर्शन - सादगी, आत्मनिर्भरता, और सामुदायिक सशक्तिकरण - को भी बढ़ावा देना होगा। यह केवल एक आर्थिक मॉडल नहीं, बल्कि एक जीवन शैली है जो पर्यावरण के अनुकूल और सामाजिक रूप से न्यायसंगत है।

आइए, हम सब मिलकर गांधी जी के इस महान विरासत को आगे बढ़ाएं और एक ऐसे भारत का निर्माण करें जो आत्मनिर्भर, समृद्ध और न्यायसंगत हो…

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